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Hardoi News: बॉयोमेडिकल कचरा फेंकने से गंभीर संक्रमण का ख़तरा, अधिकारी मूकदर्शक
Hardoi News: सीएमओ ऑफिस परिसर में 100 बेड का अस्पताल है। इसके अलावा यहां पोस्टमार्टम हाउस भी है। यहां जगह-जगह बॉयोमेडिकल वेस्ट पड़ा रहता है।
Hardoi News: सीएमओ ऑफिस परिसर में 100 बेड का अस्पताल है। इसके अलावा यहां पोस्टमार्टम हाउस भी है। यहां जगह-जगह बॉयोमेडिकल वेस्ट पड़ा रहता है। यहां खुले में पड़ने वाले बॉयोमेडिकल वेस्ट से नर्सिंग छात्र संक्रमित हो सकते हैं। 100 बेड अस्पताल के परिसर में है, लेकिन पोस्टमार्टम भवन के करीब वेस्ट फैला हुआ है। इस कचरे पर छुट्टा पशु मुंह मारते हुए दिखाई देते हैं। यहां से रोज नर्सिंग स्टाफ एवं पोस्टमार्टम में आने वाले लोग गुजरते रहते है। ऐसे में यहां डाले यूरिन बैग, ग्लूकोज की खाली बोतलें, आईवी सेट आदि इंजेक्शन की फूटी शीशियां, सुइयां, संक्रामक वेस्ट के संपर्क में आना किसी के लिए भी घातक हो सकता है। अस्पताल और पोस्टमार्टम में बायोमेडिकल वेस्ट निस्तारण के नियमानुसार इंतजाम है।
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बॉयोमेडिकल वेस्ट परिसर भी बना हुआ है, लेकिन मॉनीटरिंग के अभाव में अंदर की बजाय सफाईकर्मी मनमाने तरीके से कचरा बाहर ही फ़ेंक रहे हैं। गौरतलब है कि 100 बेड अस्पताल और पोस्टमार्टम हॉउस आमने-सामने है। प्रशासन ने यहां पोस्टमार्टम भवन के पास बॉयोमेडिकल वेस्ट को अलग-अलग संग्रहित करवाने का व्यवस्था करवाई है। जिसमें एक में प्लेसेंटा और मानव अवशेष, दूसरे में सर्जिकल वेस्ट और तीसरे में साधारण कचरा संग्रहण किया जाता है।
क्या बोले ज़िम्मेदार
सीएमओ डा. राजेश कुमार तिवारी ने बताया कि खुले में बॉयोमेडिकल वेस्ट फेंकने की जानकारी मिली है। इस मामले की जांच होगी दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगी। इसकी मॉनीटरिंग भी नियमित कराई जाएगी। जिससे किसी को नुकसान न हो।
क्या है नियम
पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा निर्मित कानून ‘बायोमेडिकल वेस्ट’ (मैनेजमेंट ऐण्ड हैण्डलिंग) अथवा बॉयोमेडिकल कचरा (प्रबंधन एवं निपटान) कानून 1998 के नाम से ज्ञात है। इसमें पूरे देश में प्रयोग हेतु समान दिशानिर्देश और कोड का वर्णन किया गया है। यह स्पष्ट रूप से व्यक्त किया गया है कि जिन संस्थानों से बॉयोमेडिकल कचरा उत्पन्न हो रहा हो, उनके नियंत्रकों पर यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी होगी कि ऐसे कचरे का निपटान, मानव स्वास्थ्य और परिवेश पर बिना प्रतिकूल प्रभाव के किया जाए।
बड़ी चुनौती है बॉयोमेडिकल कचरे का निपटारा
देश के छोटे-बड़े चिकित्सालयों, मेडिकल कॉलेजों से प्रतिदिन कई टन बायोमेडिकल कचरे का उत्पादन होता है। उसे उपयुक्त तरीके से एकत्र करना और उसका निपटान करना एक बहुत बड़ी चुनौती है। यदि समयबद्ध तरीके से निपटान की व्यवस्था न हो तो चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने से संबद्ध चिकित्सकों, शल्यक्रिया विशेषज्ञों, शल्यकक्ष से जुड़े कर्मियों, वार्ड्स में भर्ती एवं ओपीडी आने वाले रोगियों एवं रोगियों के साथ आने वाले सहायकों को स्वास्थ्य के प्रति बहुत अधिक खतरा उत्पन्न हो सकता है। विभिन्न प्रकार के संक्रमणों से प्रभावित होने का खतरा बढ़ जाता है। इनसे बचने के लिए बॉयोमेडिकल कचरे के निपटान से संबंधित उपयुक्त कार्रवाई करने से इन खतरों को काफी कम किया जा सकता है। इसके लिए अस्पताल प्रशासन, कर्मियों, रोगियों, नगर-निगम विभाग सभी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।