×

तारों के गति की गुत्थी सुलझाएंगे गोरखपुर यूनिवर्सिटी के दो शिक्षक, मिले 10 लाख

तारों की रहस्यमयी दुनिया को लेकर दीन दयाल गोरखपुर यूनिवर्सिटी के दो शिक्षक शोध कर रहे हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद उत्तर प्रदेश द्वारा दोनों शिक्षकों को शोध के लिए 10 लाख रुपये मिले है।

Newstrack
Published on: 13 March 2021 3:19 PM GMT
तारों के गति की गुत्थी सुलझाएंगे गोरखपुर यूनिवर्सिटी के दो शिक्षक, मिले 10 लाख
X
तारों की गति की गुत्थी सुलझाएंगे गोरखपुर यूनिवर्सिटी के दो शिक्षक, मिले 10 लाख

गोरखपुर: तारों की रहस्यमयी दुनिया को लेकर दीन दयाल गोरखपुर यूनिवर्सिटी के दो शिक्षक शोध कर रहे हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद उत्तर प्रदेश द्वारा दोनों शिक्षकों को शोध के लिए 10 लाख रुपये मिले है। गोरखपुर विश्वविद्यालय के गणित विभाग के प्रोफेसर डॉ. सुधीर कुमार श्रीवास्तव और डॉ. राजेश कुमार तारों की दुनिया और विशेष गति को लेकर शोध कार्य कर रहे हैं।

ये भी पढ़ें: जौनपुर जिलाधिकारी के हाथों मिला उपकरण तो खिले दिव्यांग बच्चों के चेहरे

वैज्ञानिक प्रगति के अब तक के चरण में बहुत कुछ समझ लेने के बाद भी ब्रह्मांड की बहुत सी जानकारियों से हम अभी भी अनभिज्ञ हैं। ब्रह्मांडीय/अंतरिक्ष अध्ययन आधुनिक विज्ञान का बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है। ब्रह्मांडीय अध्ययन का महत्व इसी से समझा जा सकता है भौतिकी नोबेल प्राइज अधिकांश ब्रह्मांडीय अध्ययन के क्षेत्र में दिया गया है। हाल ही में 2020 का नोबेल प्राइज तारे में ब्लैक होल के अध्ययन के लिए प्रदान किया गया। यूनिवर्सिटी के दो शिक्षकों को ‘सम न्यू फैक्ट्स ऑन ग्रेविटेशनल कोल्पसिंग स्टार एंड देयर मैथेमेटिकल एनेलसिस’ विषय पर शोध के लिए 10.04 लाख की राशि प्रदान की गयी।

तारों के जीवन चक्र को समझना चुनौतीपूर्ण

डॉ.सुधीर ने बताया कि किसी तारे के जीवनचक्र को समझना आज भी हम वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। किसी तारे का जन्म ब्रह्मांड में मौजूद विशालकाय वैश्विक धूलों (नेबुला) के संगठन से होता है। अंतरिक्ष में मौजूद तारें अधिकांशतः हाइड्रोजन, हीलियम से बने विशालकाय पिंड होते हैं। उनकी केंद्र में नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है। तारों में समय के साथ भौतिक एवं ज्यामितीय परिवर्तन होते रहते हैं। इस प्रक्रिया को ग्रेविटेशनल कोलेप्स कहा जाता है। इन प्रक्रियाओं के दौरान तारे व्हाइट होल, न्यूट्रांन स्टार, ब्लैक होल के रूप मे परिवर्तित होते रहते हैं। दुनिया भर के वैज्ञानिक आज तारों में ग्रेविटेशनल कोलेप्स के भौतिक एवं ज्यामिति गुणों का अध्ययन कर रहे हैं।

तारों की विशेष गति पर कर रहे हैं अध्ययन

डॉ. राजेश ने बताया कि पिछले तीन सालों से वे तारों की एक विशेष गति का अध्ययन कर रहे है और उनके शोध के अनुसार यदि कोई तारा नियत दर से संकुचित (कोलप्से) हो रहा हो तो उसके केन्द्र में एक वैक्युम निर्मित हो जाता है। ऐसे तारे कभी भी ब्लैक होल नहीं बनाते है। उन्होंने बताया कि वर्तमान सैद्धांतिकी भौतिकी के अनुसार इस ब्रह्मांड का लगभग 96 प्रतिशत भाग अदृश्य एवं अज्ञात पदार्थ से निर्मित है। जिन्हें हम डार्क एनर्जी, डार्क मैटर, घोस्ट मैटर, इत्यादि के रूप में जानते हैं।

ये भी पढ़ें:फिक्की फ्लो का छठा वार्षिकोत्सव, लखनऊ में 17 महिलाओं को किया गया सम्मानित

ये अज्ञात पदार्थ अदृश्य रूप में प्रकृति में हमारे चारों तरफ विद्यमान है और इनका प्रभाव हम सब के जीवन पर पड़ता रहता है। डॉ. राजेश ने बताया की वर्तमान में उनकी टीम किसी तारे के जीवन चक्र पर इन अदृश्य/अज्ञात पदार्थों का क्या प्रभाव होता है पर शोध कार्य कर रहे हैं। उन्होंने बताया की उनके अध्ययन का आधार डिफरेंशियल ज्योमेट्री एवं आइंस्टीन थ्योरी ऑफ ग्रेविटेशन (जनरल रिलेटिविटी सिद्धांत) है।

यह सिद्धांत भौतिकी विज्ञान के विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने 1915 में प्रतिपादित किया था जोकि भौतिकी का सबसे अनोखा एवं उपयोगी सिद्धांत रहा। जिसके प्रयोग से हम ब्रह्मांड के बहुत से रहस्यों को हल करने में सफल रहे हैं। प्रोफेसर श्रीवास्तव ने बताया की इस विषय की उपयोगिता को देखते हुए विभाग में स्नातकोत्तर (गणित) के तृतीय एवं चतुर्थ सेमेस्टर में जनरल रिलेटिविटी सिद्धांत वैकल्पिक पेपर के रूप में पढ़ाया जाता है। उन्होंने बताया कि यह शोध परियोजना सीएसटी,उत्तर प्रदेश को भेजी गयी थी और मार्च 2021 मे यह मंजूर हो गयी।

रिपोर्ट- पूर्णिमा श्रीवास्तव

Newstrack

Newstrack

Next Story