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Varanasi में मौत की इमारतें सीना तान कर खड़ी, ऐसा है पीएम के संसदीय क्षेत्र का हाल
वाराणसी के महिला चिकित्सालय के सुपरिटेंडेंट के कार्यालय की बिल्डिंग 100 साल पुरानी है। इस बिल्डिंग की बदहाली को लेकर कागजी घोड़े दौड़ चुके हैं लेकिन आज भी हालत ज्यों की त्यों है।
वाराणसी: गाजियाबाद के मुरादनगर में श्मशान घाट हादसे के बाद प्रदेश में हड़कंप की स्थिति है। सरकार अब ऐसी ईमारतों को चिन्हित करने में जुट गई है, जो जर्जर हालत में है। न्यूज़ट्रैक के आपरेशन पड़ताल में भी कई ऐसी इमारतें सामने आईं जो मौत को दावत देती दिखी। पीएम के संसदीय क्षेत्र में भी आधा दर्जन से अधिक सरकारी इमारतें बेहद खस्ताहाल हैं, जिसमें महिला अस्पताल के अलावा मण्डलीय अस्पताल के साथ कई पुलिस थाने और प्राथमिक विद्यालय भी हैं।
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हादसे को दावत देता महिला अस्पताल
varanasi-matter (PC: social media)
वाराणसी के महिला चिकित्सालय के सुपरिटेंडेंट के कार्यालय की बिल्डिंग 100 साल पुरानी है। इस बिल्डिंग की बदहाली को लेकर कागजी घोड़े दौड़ चुके हैं लेकिन आज भी हालत ज्यों की त्यों है। ये भवन मेडिकल सुपरिटेंडेंट लीला कुमारी को डराता है लेकिन ड्यूटी है साहब तो जान हथेली पर लेकर करती हैं। दफ्तर के अलावा अस्पताल भी जर्जर हो चुका है। मरीज जैसे-तैसे इलाज कराते हैं, लेकिन डर हमेशा कायम रहता है।
प्राथमिक स्कूलों की इमारतें भी जर्जर
न्यूज़ट्रैक की पड़ताल में कई ऐसे प्राथमिक विद्यालय भी सामने आये, जिनकी इमारतें बेहद जर्जर हैं। पांडेपुर स्थित पिसनहरिया प्राथमिक विद्यालय की इमारत अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है। कमरें ध्वस्त हो चुके हैं। छात्रों के नाम पर भी सिर्फ गिने चुने बच्चे आते हैं तो वहीं अध्यापक भी जैसे-तैसे काम करने के लिए मजबूर हैं।
varanasi-matter (PC: social media)
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खौफ के साये में रहने को मजबूर पुलिसवाले
इसके साथ ही चेतगंज थाने की हालत तो इतनी खराब है कि यहां कब दुर्घटना हो जाये कहा नहीं जा सकता।थाने के भवन जर्जर हालत में कमरे की छत का हिस्सा कब गिर जाए हमेशा इसका डर सताता है। लेकिन कमरे में रखे सामान ये गवाही दे रहे हैं कि यहां पुलिसकर्मी रह रहे हैं तो बड़ा सवाल है कि आखिर सरकारी कर्मचारी और अधिकारी भवनों में डर कर जिंदगी बिता रहे हैं तो तंत्र क्या कर रहा हैं। सिर्फ चेतगंज ही नहीं महिला थाना, कोतवाली थाने की भी यही हालत है। थानों के बैरक में पुलिसवाले मौत के साये में रहने के लिए मजबूर हैं।
रिपोर्ट- आशुतोष सिंह
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