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जानिए उस मंदिर के बारे में सबकुछ, जहां शनि शिला की होती है पूजा

शिंगनापुर (महाराष्ट्र) के शनि मंदिर में श्री शनि पर्वत की शिलापट्ट स्थापित है, उसी प्रकार शिलापट्ट लखनऊ के ‘श्री शनिदेव अहिमामऊ धाम’ में स्थापित हुई है। शनि पर्वत से लाई गई शिला का अपना एक अलग महात्म्य है।

Aditya Mishra
Published on: 15 Jun 2023 6:45 PM IST
जानिए उस मंदिर के बारे में सबकुछ, जहां शनि शिला की होती है पूजा
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श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: सूर्यपुत्र भगवान श्री शनिदेव सुख-शांति, यश-वैभव, धन-सम्पत्ति एवं पद-प्रतिष्ठा के प्रदाता है। शनिदेव महाराज पृथ्वीवासियों को उनके कर्म के अनुसार दण्डित व पुरस्कृत करते हैं। शास्त्रों के अनुसार शनि पर्वत पर ही भगवान श्री शनिदेव ने घोर तपस्या कर मानव कल्याण के लिये शक्ति एवं बल प्राप्त किया।

आज के इस युग में भगवान शनिदेव की पूजा का विशेष महत्व है। भगवान श्री शनिदेव के अनेक मंदिर हैं। श्री शनिदेव के मंदिरों में शिंगनापुर (महाराष्ट्र) का विशेष महत्व है।

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शिला का अपना एक अलग महात्म्य

शिंगनापुर (महाराष्ट्र) के शनि मंदिर में श्री शनि पर्वत की शिलापट्ट स्थापित है, उसी प्रकार शिलापट्ट लखनऊ के ‘श्री शनिदेव अहिमामऊ धाम’ में स्थापित हुई है। शनि पर्वत से लाई गई शिला का अपना एक अलग महात्म्य है।

लखनऊ स्थित ‘श्री शनिदेव अहिमामऊ धाम’ की शिला अलौकिक एवं अद्भुत होने के साथ-साथ अपने आप में चमत्कारिक भी है, जिसकी आराधना करने से भगवान श्री शनि की कृपा मिलती है। इस धाम में भगवान सूर्य की पत्नी यानी शनि भगवान की माता छाया की प्रतिमा भी स्थापित है, जो सम्भवतः लखनऊ के किसी भी मन्दिर में नहीं है।

‘श्री शनिदेव अहिमामऊ धाम’ के पवित्र स्थान पर शनि अमावस्या के दिन विशाल भण्डारे का आयोजन होता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु ‘श्री शनिदेव अहिमामऊ धाम’ के दर्शन कर भण्डारे में प्रसाद ग्रहण करते हैं।

यहां आकर अपार आत्मिक शांति का अनुभव होता है। इस बार शनि अमावस्या के दिन ही पितृ विसर्जन भी है। इस दृष्टि से इसका और भी विशेष महत्व है।

भगवान शनिदेव के उपासक एवं सिद्धहस्त राजस्थान निवासी ब्रह्मलीन स्वामी श्री विरक्तानन्द जी महाराज मध्य प्रदेश के जनपद मुरैना स्थित शनि पर्वत से 1992 में श्री शनिदेव शिला लाये थे और 11 वर्षों तक ध्यान मग्न रह कर साधना (घोर तपस्या) कर शिला की आराधना करते रहें।

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स्वामी विरक्तानन्द जी महाराज ने जताई थी ये इच्छा

इसी मध्य स्वामी विरक्तानन्द जी महाराज की लखनऊ निवासी बद्री नारायण से भेंट हुई। बद्री नारायण प्रत्येक शनिवार को लखनऊ से लगभग 400 कि0मी0 दूर मुरैना (शनि पर्वत) भगवान शनिदेव के दर्शन के लिये जाते थे। स्वामी जी उनकी शनि महाराज के प्रति आस्था एवं भक्तिभाव को देखकर बहुत प्रभावित हुए।

स्वामी विरक्तानन्द जी महाराज ने बद्री नारायण से लखनऊ में किसी स्थान पर सिद्ध ‘श्री शनि शिला’ की स्थापना करने की इच्छा व्यक्त की तो वे स्वामी जी की इच्छा को टाल नहीं सके और लखनऊ के अहिमामऊ क्षेत्र स्थित अपनी भूमि पर ‘श्री शनि शिला' स्थापित करने हेतु सहर्ष तैयार हो गये।

अहिमामऊ में 2003 में हुई सिद्ध शिला की स्थापना

इस प्रकार लखनऊ के अहिमामऊ क्षेत्र में सन् 2003 में इस अद्भुत एवं सिद्ध शिला की स्थापना हुई, जो आज ‘श्री शनिदेव अहिमामऊ धाम' के नाम से प्रसिद्ध है।

भगवान शनिदेव में आस्था रखने वाले श्री बद्री नारायण द्वारा संरक्षक के रूप में आज भी ब्रह्मलीन स्वामी जी की आज्ञा का पालन करते हुए ‘श्री शनि शिला' की नियमित एवं विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर भगवान श्री शनिदेव का आर्शीवाद प्राप्त किया जा रहा है।

‘श्री शनिदेव अहिमामऊ धाम' की कृपा से अहिमामऊ क्षेत्र का तीव्रगति से विकास हो रहा है। प्रत्येक शनिवार को यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण पहुंचते हैं। ‘श्री शनिदेव अहिमामऊ धाम’ का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये एक बार अवश्य दर्शन करें।

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