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यहाँ लाखों साल पुराना हाथी का जबड़ा, शोध में मिलेगी मदद

किसी पत्थर पर हाथी के दांत पड़े रहने से निशान बन जाते हैं। ऐसे हाथी लगभग डायनासोर के समतुल्य ही होते थे। इनके लंबे दांत ही इनकी पहचान थे। ऐसे जीवाश्म पहले भी कई देशों में मिले हैं। इस हाथी के पूर्वज को स्टेगोडॉन कहते हैं। उसके बराबर आज हिप्पो, जिराफआदि जीव माने जाते हैं।

suman
Published on: 20 Jun 2020 12:37 PM GMT
यहाँ लाखों साल पुराना हाथी का जबड़ा, शोध में मिलेगी मदद
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सहारनपुर : यूपी के सहारनपुर जनपद के अंतर्गत आने वाले शिवालिक वन क्षेत्र में वन्य जीवों की गणना का काम पिछले 6 माह से चल रहा है. इस काम के लिए वन्य क्षेत्र में जगह-जगह कैमरे लगाए जा रहे हैं। इस गणना व सर्वेक्षण के दौरान जनपद की वन विभाग की टीम को एक हाथी का 50 लाख वर्ष पुराना फॉसिल्स मिला है।

जनपद के मुख्य वन संरक्षक वीके जैन ने बताया कि हाथी का जबड़ा मिला है। यह लगभग 50 लाख वर्ष पुराना है, जिसकी पुष्टि वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी देहरादून ने अध्ययन कर की है। उन्होंने बताया कि इंस्टीट्यूट द्वारा अध्ययन कर बताया गया है कि यह फॉसिल्स हाथी के पूर्वजों का है, जिसको स्टेगोडॉन के नाम से जाना जाता है। वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलाजी देहरादून के वैज्ञानिक डॉक्टरों ने इस रेंज में पाए जाने वाले विभिन्न फौसिल्स पर अध्ययन किया है।

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बता दें, जनपद सहारनपुर के अंतर्गत शिवालिक वन प्रभाग, सहारनपुर का एक वन क्षेत्र है जिसमें वन्य जीवों की गणना का कार्य पिछले 6 महीने से किया जा रहा है इसी के चलते इस क्षेत्र में वन विभाग विशेष सर्वेक्षण का कार्य कर रहा है. पहली बार कैमरा ट्रैप में ही 50 से अधिक तेंदुओं की शिवालिक में मिलने की पुष्टि भी हुई है।

हालांकि, आज की तारिख में 'स्टेगोडॉन' खत्म हो चुके हैं लेकिन आज का हाथी उनके डीएनए के बदलाव के बाद अफ्रीकन व इंडियन प्रजाति में मौजूद हैं। उत्तर भारत में हाथी के पूर्वज का काफी पुराना जीवाश्म है। मानना है कि शायद ही इतना पुराना जीवाश्म कहीं मिला होगा। इस क्षेत्र में तो यह पहली बार रिपोर्ट है। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी देहरादून के वैज्ञानिकों ने इस फॉसिल्स का बारिकी से अध्ययन से किया।वैज्ञानिकों ने बताया कि यह फॉसिल्स हाथी के पूर्वज का है जिसको 'स्टेगोडॉन' कहते हैं जो कि वर्तमान में विलुप्त हो चुके हैं। यह फॉसिल्स लगभग 50 लाख वर्षों से अधिक पुराना है। यह शिवालिक रेंज की डॉकपठान फार्मेशन का है। 'स्टेगोडॉन' का दांत 12 से 18 फीट लंबा होता था।

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किसी पत्थर पर हाथी के दांत पड़े रहने से निशान बन जाते हैं। ऐसे हाथी लगभग डायनासोर के समतुल्य ही होते थे। इनके लंबे दांत ही इनकी पहचान थे। ऐसे जीवाश्म पहले भी कई देशों में मिले हैं। इस हाथी के पूर्वज को स्टेगोडॉन कहते हैं। उसके बराबर आज हिप्पो, जिराफआदि जीव माने जाते हैं।

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