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नहीं रहे दिग्गज नेता: राजनीति जगत में शोक, दलितों के थे आवाज
दलित राजनीति की बात छिडते ही रामलाल राही का नाम न उछले, यह संभव नहीं रहता था। कम से कम सीतापुर जिले में दलितों के बीच उनकी मजबूत पकड आज भी थी। वे जितने लोकप्रिय दलितों में थे, उतने ही सवर्ण वर्ग में भी।
सीतापुर: दलित राजनीति की बात छिडते ही रामलाल राही का नाम न उछले, यह संभव नहीं रहता था। कम से कम सीतापुर जिले में दलितों के बीच उनकी मजबूत पकड आज भी थी। वे जितने लोकप्रिय दलितों में थे, उतने ही सवर्ण वर्ग में भी। उनका व्यवहार ही ऐसा था। राजनीति के आधार पर इस जिले से सत्ता की जिस सीढी तक रामलाल राही पहुंचे, वहां तक फिलहाल कोई नहीं पहुंच सका।
सीतापुर जिले का मान बढ़ाया
केंद्रीय सत्ता में कई और लोग भी रहे लेकिन जिस रूतबे वाले विभाग में दूसरे नंबर के मंत्री पद पर रहकर सीतापुर जिले का मान बढ़ाया, वह सदैव यादगार बना रहेगा। उनका सरल स्वभाव लोगों को याद रहेगा। विरोधी तो उनका कोई था ही नहीं। पत्रकारों से खासा लगाव रखते थे। प्रेस कांफ्रेंस में आवभगत जिस अपनेपन से करते, वह भी एक अलग अंदाज में। आम लोगों के बीच बैंठ कर उन्हीं की भाषा में बात करना..आदि ये सब खूबियों वाले रामलाल राही नहीं रहे।
इन्टरनेट से टीवी तक फैली खबर
यह खबर गुरूवार की शाम करीब साढे पांच बजे जिसने सुनी, स्तब्ध जरूर हो गया। शोक संवेदना का दौर शुरू हो गया। सोशल मीडिया से लेकर मुख्य धारा की मीडिया में ब्रेकिंग खबर प्रसारित होने लगीं। शहर के जेल रोड स्थित उनके आवास पर शुभेच्छुजनों की भीड जमा होने लगी। हालांकि वे अत्यंत वयोव्रद्ध थे। इधर लंबे समय से बीमार भी चल रहे थे। कोरोना से भी पीडित बताए गए थे लेकिन इलाज के बाद ठीक भी हो गए थे। इसके बावजूद व्रद्धावस्था की पीडा नहीं दूर हो रही थी लिहाजा जिला अस्पताल में फिर भर्ती हो गए। आज निधन हो गया।
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धांधड गांव के निवासी थे
राम लाल राही 1965 के आसपास से सक्रिय राजनीति में रहे। जिले के धांधड गांव के निवासी थे। अत्यंत निर्धन परिवार में जन्म हुआ था। नजदीकी लोग बताते हैं कि रामलाल राही बचपन के दिनों में मजदूरी भी करते थे। सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी से होते हुए कांग्रेस में रहे और मिश्रिख लोकसभा सीट से चार बार सांसद रहे। नरसिंहा राव की सरकार में उन्हें ग्रह राज्य मंत्री बनाया गया। लगातार 1996 तक इस पद पर रहे। हालांकि इसके बाद वे स्वयं राजनीति के रसूख कायम नहीं कर सके अलबत्ता उनके पुत्र रमेश रमेश राही सपा के टिकट पर हरगांव सीट से विधायक रहे। छोटे पुत्र सुरेश राही वर्तमान में हरगांव सीट से भाजपा के विधायक हैं। रमेश राही की पत्नी मंजरि राही पिछले लोकसभा चुनाव में मिश्रिख से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडीं, पराजित हो गईं थीं।
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रामलाल राही की पत्नी बनीं थी जिला पंचायत अध्यक्ष
रामलाल राही की पत्नी सुंदरि राही जिला पंचायत की अध्यक्ष बनीं थीं। कुछ समय पूर्व उनका निधन हो गया था। बहरहाल, रामलाल राही दलितों के बीच सक्रिय रहने के लिए जातीय संगठन भी खडा किया था। जिले भर में सम्मेलन करते रहते थे। मंशा राजनीति में सफल होने की ही रहती थी लेकिन, सच यह भी है कि दलित हितों से समझौता नहीं करते थे। इसके लिए ही सही, या यूं कहिए राजनीतिक स्वार्थ, वे दल बदलने में देर नहीं लगाते थे। कोई ऐसा दल नहीं बचा, जहां उनकी मौजूदगी नहीं रही हो।
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उनके घर पर इस समय तीन राजनीतिक दलों के झंडे मिलते हैं। वे कांग्रेस से सपा में, बसपा में, भाजपा में होते हुए फिर कांग्रेस में आए। कहीं आधिकारिक तौर पार्टी के सदस्य रहे कहीं, सिर्फ हमदर्द के तौर। पुत्र मोह में वे इधर से उधर भटकते रहे। वर्तमान में वे स्वयं कांग्रेस में थे। बडे पुत्र रमेश राही सपा में चले गए। सुरेश राही भाजपा में हैं। निधन की खबर सुनते ही पूर्व एमएलसी भरत त्रिपाठी, क्षत्रिय सभा के सुनील सिंह गौर, कांग्रेस नेता हरीश बाजपेयी समेत तमाम लोगों ने शोक संवेदनाएं व्यक्त कीं।