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Sonbhadra News: कनहर सिंचाई परियोजना के विस्थापितों का आरोप, तत्कालीन हुक्मरानों ने दिखाई बदले की भावना

Sonbhadra News:विस्थापितों का कहना है कि 2014 की सूची से कई ऐसे लोगों का नाम बाहर कर दिया गया जिन्होंने या तो आंदोलन की अगुवाई की थी या फिर बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था।

Kaushlendra Pandey
Published on: 18 Jun 2023 8:19 PM IST
Sonbhadra News: कनहर सिंचाई परियोजना के विस्थापितों का आरोप, तत्कालीन हुक्मरानों ने दिखाई बदले की भावना
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Pic Credit - Newstrack

Sonbhadra News: यूपी के 108 गांवों और झारखंड के एक बड़ी एरिया को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने वाली कनहर सिंचाई परियोजना के चलते विस्थापन का दर्द झेल रहे 11 गांवों के बाशिंदों ने पूर्ववर्ती सरकार के समय में तत्कालीन सरकारी तंत्र पर बदले की भावना से कार्य करने का आरोप लगाया है। विस्थापितों का कहना है कि 2014 की सूची से कई ऐसे लोगों का नाम बाहर कर दिया गया जिन्होंने या तो आंदोलन की अगुवाई की थी या फिर बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था।

पात्र होते हुए भी कई विस्थापितों का नाम सूची से बाहर

कनहर सिंचाई परियोजना के विस्थापितों के आरोपों सच तत्कालीन सरकारी तंत्र ही बता सकता है। लेकिन एक तरफ महिला मुखिया वाले परिवारों को मुआवजे से वंचित करना, दूसरी तरफ पात्र होते हुए भी कई का नाम सूची से बाहर होने का मामला बड़ा मसला है। लगाए जा रहे आरोपों पर, सत्तापक्ष की तरफ से साधी जा रही चुप्पी भी लोगों को हैरत में डाले हुए है। कनहर बांध में इस बार की बारिश के साथ शुरू होने जा रहे जलभराव की जद में आने वाले सबसे पहले गांव सुंदरी निवासी चंद्रमणि सिंह कहते हैं कि उन्हें तो मुआवजा दिया गया है लेकिन उनके बेटों और परिवार के लोगों को सूची से बाहर कर दिया गया है। उनका यह भी दावा है कि महज सुंदरी में ही लगभग 500 परिवार पात्र होते ही भी 2014 में तैयार की गई विस्थापितों की सूची से बाहर कर दिए गए। इसका कारण पूछने पर उनका कहना था कि 2014 में विस्थापितों की तरफ से विभिन्न मांगों को लेकर आंदोलन किया गया था। मांग थी कि वर्ष 1982 और 2014 के बीच काफी फर्क आ गया है। मुआवजे का निर्धारण नए सिरे से किया जाए। उन्होंने तत्कालीन सपा सरकार से जुड़े तंत्र पर बदले की भावना से काम करने का आरोप लगाते हुए कहा कि इस आंदोलन में भाग लेने के कारण ही तमाम लोग विस्थापन लाभ के दायरे से बाहर कर दिए गए।

‘मौजूदा सरकार भी पूर्ववर्ती सरकार की खामियों पर ध्यान नहीं दे रही’

सुंदरी के ही रामस्वारथ प्रजापति भी कुछ इसी तरह का दावा करते नजर आते हैं। कहते हैं कि उनके गांव के दर्जनों लोगों को पात्र होते हुए भी विस्थापन सूची से बाहर कर दिया गया है। कहा कि सबसे ज्यादा हैरत में डालने वाली बात यह है कि मौजूदा सरकार भी पूर्ववर्ती सरकार की खामियों पर ध्यान नहीं दे रही। विंध्यासिनी कहते हैं कि सूची में उनका तथा उनके बच्चों का नाम दर्ज है लेकिन अब तक मुआवजे के नाम पर एक धेला नसीब नहीं हुआ है। जब भी उनकी किसी अफसर या राजस्व कर्मी से मुलाकात होती है, विस्थापन लाभ उपलब्ध कराने की मांग करते हैं लेकिन हर बार अगले बार के वितरण में मुआवजा उपलब्ध कराने का आश्वासन देकर शांत करा दिया जाता है। कहा कि बारिश किसी वक्त बेघर करने की स्थिति पैदा कर सकती है लेकिन अभी तक मुआवजे का नाम सिर्फ आश्वासन ही दिया जा रहा है। यह कहानी या आरोप किसी एक चंद्रमणि, रामस्वारथ, विंध्यवासिनी के नहीं हैं। कई ऐसे विस्थापित हैं जो 2014 में तैयार की गई विस्थापन सूची को खामियों से भरी होने और तत्कालीन तंत्र पर बदले की भावना से काम करने का आरोप लगाते हैं लेकिन पूर्व की सरकारों में आदिवासियों का शोषण-उपेक्षा का आरोप लगाने वाली मौजूदा सरकार के समय में खामियों पर ध्यान क्यूं नहीं दिया जा रहा, यह सवाल हर किसी को जेहन को मथे हुए है।

गुजर गई ही समय सीमा, फिर भी डटे हुए हैं कई विस्थापित

कनहर बांध में जलभराव को देखते हुए, पहले वर्ष के भराव की जद में आने वाले चार गांव के बाशिंदों को हर हाल में 15 जून तक गांव छोड़ने का अल्टीमेटम दिया गया था। तय की गई तिथि के बाद, चिन्हित एरिया के ज्यादातर हिस्सों में वीरानी पसर चुकी लेकिन अभी भी जहां-तहां कुछ परिवार ऐसे हैं, जो किसी चमत्कार की आस में, डूब क्षेत्र में ही जमे हुए हैं। उनका दर्द है कि आखिर घर-बार छोड़कर जाएं तो जाएं कहां? बता दें कि प्रशासनिक अफसर जहां मुआवजा सूची में शामिल लोगों को विस्थापन देने की बात कर रहे हैं। वहीं सरकार की तरफ से अभी, विस्थापन लाभ से वंचित लोगों को लेकर कोई नई पालिसी अब तक सामने नहीं आई है। इसके चलते कई विस्थापित परिवार ऐसे हैं, जिनमें असमंजस की स्थिति बनी हु

ई है।



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