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'कभी खुशी, कभी गम' की तरह है सपा और रालोद के बीच तालमेल
चौधरी साहब के शिष्य मुलायम सिंह यादव के साथ पहले पार्टी के नेतृत्व और फिर मुख्यमंत्री को लेकर इतने मतभेद हुए. कि चो अजित सिंह ने अलग होकर नई पार्टी बना ली। उन्होंने इसी का नाम बाद में बदलकर राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) कर दिया.।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: यूपी की राजनीति में मुलायम सिंह यादव और चौ चरण सिंह की गिनती प्रदेश के दो बेहद धुंरधर नेताओं में की जाती रही है परन्तु बदलते वक्त और बढती उम्र ने दोनों नेताओं को सक्रिय राजनीति की राह में कुछ कमजोर किया है। यही कारण है कि आज जब मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश यादव और चौ अजित सिंह के पुत्र जयन्त चौधरी के बीच सीटों का तालमेल हुआ तो अतीत के पन्ने फडफडाने लगे। दल भी वही थे, दिल भी वही थे पर इन दोनों नेताओं का स्थान उनके पुत्रों ने लेकर बदलते बदलते वक्त की बात कह दी।
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यूपी में राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी के बीच आज दूसरी बार जब गठबन्धन हुआ तो एक बार फिर उस दौर की याद ताजा हो गयी जब 2003 में चौ अजित सिंह 25 विधायकों ने यूपी की मुलायम सिंह यादव को समर्थन दिया था। यूपी की राजनीति के दो धुंरधरों मुलायम सिंह यादव और चौ अजित सिंह के बीच कभी दोस्ती तो कभी दुश्मनी का रिश्ता रहा है। कई बार यह दोनों नेता एक मचं पर आए और कई बार दोनो ने अपनी राहे भी अलग अलग चुनी।
2002 के विधानसभा चुनव के बाद समाजवादी पार्टी को 143, बीएसपी को 98, बीजेपी को 88, कांग्रेस को 25 और अजित सिंह की रालोद को 14 सीटें आई थीं। किसी भी पार्टी की सरकार न बनते देख पहले तो राष्ट्रपति शासन लगा. फिर भाजपा और रालोद के समर्थन से तीन मई, 2002 को मायावती मुख्यमंत्री बन गईं ।लेकिन दोनों दलों में खटास पैदा हुई। अगस्त 2003 में भाजपा के समर्थन वापस लेने के बाद जब प्रदेश में मुलायम ंिसह यादव को सरकार बनाने मौका मिला तो रालोद अध्यक्ष चौ अजित सिंह ने अपने विधायकों के समर्थन से मुलायम सिंह का साथ दिया था।
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भारतीय राजनीति में किसान नेता के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले चौ चरण सिंह की विरासत को लेकर उनके पुत्र चौ अजित सिंह और उनके शिष्य मुलायम सिंह यादव के बीच मतभेद 1989 के चुनाव के बाद शुरू हुए। जब प्रदेश में जनता दल की सरकार बनी तो प्रदेश के मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों नेताओं के बीच जमकर खीचंतान हुई थी। इस उठापटक में मुलायम सिंह यादव को चौ अजित सिंह को राजनीतिक दांव दिया और प्रदेश के मुख्यमंत्री बन बैठे। चौधरी साहब के शिष्य मुलायम सिंह यादव के साथ पहले पार्टी के नेतृत्व और फिर मुख्यमंत्री को लेकर इतने मतभेद हुए. कि चो अजित सिंह ने अलग होकर नई पार्टी बना ली। उन्होंने इसी का नाम बाद में बदलकर राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) कर दिया.। इसके बाद से रालोद कई दलों से समझौता कर सत्ता के आसपास घूमता रहा है। शायद ही कोई ऐसी पार्टी रही हो जिसके साथ चौ अजित सिंह न रहे हों।
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चौ अजित सिंह का राजनीतिक इतिहास
1986 राज्य सभा सदस्य
1987 लोकदल (अ) बनाया
1988 जनता पार्टी अध्यक्ष
1989 जनता दल के महासचिव
1989 केन्द्रीय उद्योग मंत्री
1995 केन्द्रीय खाद्य मंत्री
1998 राष्ट्रीय लोकदल
2001 केन्द्रीय कृषि मंत्री
2004 यूपी में सपा सरकार को समर्थन
2011 नागरिक उड्डयन मंत्री
2014 का लोकसभा चुनाव हारे