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विकास दुबे एनकाउंटर केस: सुप्रीम कोर्ट ने तय किये जांच अधिकारियों के नाम, यहां देखें

कानपुर के दुर्दांत गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने यूपी सरकार को नसीहत देते हुए कहा कि वे सुनिश्चित करे कि राज्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो।

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Published on: 22 July 2020 4:05 PM GMT
विकास दुबे एनकाउंटर केस: सुप्रीम कोर्ट ने तय किये जांच अधिकारियों के नाम, यहां देखें
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नई दिल्ली/लखनऊ: कानपुर के दुर्दांत गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने यूपी सरकार को नसीहत देते हुए कहा कि वे सुनिश्चित करे कि राज्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो।

कोर्ट ने जांच कमेटी को आदेश दिया कि इस पूरे मामले की जांच कर दो महीने में रिपोर्ट दें। जांच कमेटी में रिटायर्ड जस्टिस बीएस चौहान और यूपी के पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता को भी रखा गया है। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने जांच समिति को भी अप्रूवल दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने जांच कमेटी को एक हफ्ते में गठित करने को कहा है। कोर्ट ने ये भी कहा कि सचिव और अन्य अधिकारी केंद्र सरकार मुहैया कराएगी। दो महीने में आयोग अपनी रिपोर्ट दाखिल करेगा। आयोग हर पहलू पर गंभीरता से जांच करेगा।

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यूपी सरकार ने हलफनामें में कही थी ये बात

बताते चलें कि पूर्व में यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में कहा था कि जांच कमेटी में जस्टिस बीएस चौहान और पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता को शामिल किया जाएगा।

जस्टिस चौहान ही समिति की अध्यक्षता भी करेंगे। जिसके बाद आज सुप्रीम कोर्ट ने इस जांच कमेटी को दो महीने में जांच पूरी करने का आदेश दिया है।

याचिकाकर्ता के वकील घनश्याम उपाध्याय का चीफ जस्टिस के सामने कहना था कि राज्य के अधिकारियों को कमेटी का हिस्सा नहीं होना चाहिए। समिति में केवल बाहर के लोगों को ही रखना चाहिए।

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यूपी में सबूत हैं तो आयोग को दिल्ली में क्यों बैठना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट

इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि हैदराबाद केस में यही समस्या थी, जो हम चाहते थे कि आयोग दिल्ली में बैठे, लेकिन हमने पाया कि सारे सबूत तेलंगाना में हैं। जब यूपी में सबूत हैं तो आयोग को दिल्ली में क्यों बैठना चाहिए?

इतना ही नहीं कोर्ट में सुनवाई के दौरान वकील ने कहा कि जस्टिस चौहान का नाम क्यों सुझाया गया है। हमने 12 जजों के नाम सुझाए थे। इस पर सीजेआई ने कहा कि हम जस्टिस की पसंद खोजने के लिए उन्हें दोष नहीं दे सकते। याचिकाकर्ता के वकील घनश्याम उपाध्याय ने राज्य के अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठाए।

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