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1890 में बना मंदिर अब हो गया खंडहर, बयां कर रहा अपनी कहानी

मुख्यालय से करीब 60 किलो मीटर व बाराचवर ब्लॉक मुख्यालय से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटे से गांव चकिया की, जो विकास से कोसों दूर है, लेकिन इसी गांव में करीब 1890 में बना शिव मंदिर जो आज भी इस गांव की शोभा बढ़ा रहा है।

SK Gautam
Published on: 2 Feb 2020 4:14 PM GMT
1890 में बना मंदिर अब हो गया खंडहर, बयां कर रहा अपनी कहानी
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रजनीश कुमार मिश्र

बाराचवर (गाजीपुर): पुर्वान्चल का गाजीपुर जिला जहां बहुत से रहस्य छुपे हुए हैं। उस जगह पहूंचने पर लगता हैं कि ये जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं है। हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय से करीब 60 किलो मीटर व बाराचवर ब्लॉक मुख्यालय से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटे से गांव चकिया की, जो विकास से कोसों दूर है, लेकिन इसी गांव में करीब 1890 में बना शिव मंदिर जो आज भी इस गांव की शोभा बढ़ा रहा है। ग्रामीण बताते हैं कि ये मंदिर उस वक्त बना था। जब इस देश में गोरे हुकूमत करते थे। स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि इस मंदिर को कुडे़सर के जमींदार ने बनवाया था।

मंदिर बना, लेकिन नहीं हुई किसी देवता की स्थापना

ग्रामीण बताते हैं कि उस वक्त मंदिर का निर्माण तो हो गया लेकिन किसी भी देवी व देवता की स्थापना नहीं किया गया । गांव के 80 वर्षिय राम बिचार तिवारी बताते हैं कि उस वक्त जो ब्राह्मण मुर्ति स्थापना कराने आये थे। उन्होंने जमींदार गिरजा शंकर राय से कहा कि इस मंदिर में भगवान जाना नहीं चाहते, तब गिरजा शंकर राय ने मंदिर का निर्माण करवाना बंद कर दिया।

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लाहौरी ईंटों से हुआ है निर्माण

इस मंदिर को लाहौर ईंटों से बनाया गया है ईंटों को जोड़ने के लिए सिमेंट की जगह सुर्खी व चुने का इस्तेमाल किया गया है। गांव के बुजुर्ग 80 वर्षीय राम बिचार तिवारी बताते हैं कि उस समय राजा या जमींदार ही निर्माण करवाने के लिए सुर्खी और चूने का इस्तेमाल करते थे । उन्होंने बताया कि कुड़ेसर के जमींदार गिरजा शंकर राय ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। गावं के बुजुर्ग बताते हैं कि सन् 1890 में ब्रितानी हुकूमत के जमीदार गिरजा शंकर राय ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। और ये पुरा गाँव उन्ही का छावनी था।

नक्कासी युक्त बना है मंदिर

मंदिर का निर्माण ऐसे हुआ है मानो किसी राजा महराजा की हवेली हो। मंदिर के अंदर उपर के चारो तरफ दिवारों में कलाकृतियां निकाली गई थी। जो अब उखड़ चुकीं है। 1890 से लेकर अब तक ये मंदिर न जाने कितने तुफानो को झेलते हुए। आज भी उसी तरह सीना ताने खड़ा है। ग्रामीण बताते हैं। तब से लेकर आज तक ये मंदिर बहुत से आंधी और तूफ़ान का सामना कर चुका है इसको इतनी मजबुती से बनाया गया था। कि ये तब से लेकर अब तक टिका हुआ है। लेकिन अब कहीं-कहीं दिवाली के सिमेंट मे दरारें पड़ने लगी है।

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भूतल से करीब पांच फिट उपर बना है मंदिर का चबूतरा

मंदिर का निर्माण भूतल से करीब पांच फिट की उंचाई पर किया गया है। जो अब मिट्टी से भर चुका है। लेकिन अब भी चबुतरे का हिस्सा आज भी दिखाई दे रहा हैं।

खंडहर में तब्दील हो रहा है मंदिर

ऐतिहासिक मंदिर अब धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील होता जा रहा है। आने वाले समय में इसका अस्तित्व सिर्फ इतिहास बन कर रह जायेगा। सरकार को चाहिए कि ऐसे धरोहरों का जीर्णोद्धार कराये। ग्रामीणों का कहना है कि ऐसे ऐतिहासिक धरोहरों को बचाने के लिए शासन को अलग से बजट बनाकर जीर्णोद्धार कराये। नहीं तो ऐसे धरोहर धीरे-धीरे समाप्त हो जायेंगे और सिर्फ इतिहास के पन्नों में

काले अक्षरों में ही मिलेंगे। जिसे आने वाली पीढियां सिर्फ किताबों में पढ़ेंगी।

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