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जनतंत्र का मूल तत्व है असहमति: हृदय नारायण दीक्षित
हमारे राष्ट्रीय जीवन में बहुत प्राचीन काल से विचार-विमर्श की जनतंत्रीय परम्परा रही है। जनतंत्र का मूल तत्व है असहमति। इसका मूल तत्व है प्रश्न स्वीकार करने की क्षमता। हमारे राष्ट्रीय जीवन में ऋग्वेदकाल से लेकर अब तक प्रश्नों की महत्ता है।
लखनऊ: हमारे राष्ट्रीय जीवन में बहुत प्राचीन काल से विचार-विमर्श की जनतंत्रीय परम्परा रही है। जनतंत्र का मूल तत्व है असहमति। इसका मूल तत्व है प्रश्न स्वीकार करने की क्षमता। हमारे राष्ट्रीय जीवन में ऋग्वेदकाल से लेकर अब तक प्रश्नों की महत्ता है। तर्क प्रतितर्क प्रश्न-प्रतिप्रश्न की अदभूत परम्परा है। दुनिया की किसी भी सभ्यता और संस्कृति में आस्था के विषयों को प्रश्नाकुल नहीं किया गया है। किन्तु भारत की आस्था के विषय भी प्रश्नाकुल व बेचैनी से भरे हुए है। ऋग्वेद प्रश्नों से भरा पड़ा है। उत्तर वैदिक काल भी प्रश्नों से भरा पड़ा है। गीता एवं उपनिषद भी प्रश्नों से भरा है। भारत स्वाभाविक रूप से जनतंत्री है।
संवैधानिक एवं संसदीय अध्ययन समिति की क्षेत्रीय शाखा के तत्वाधान में तिलक हाल में आयोजित विधान परिषद की 'उपयोगिता तथा योगदान' विषयक आयोजित विचार गोष्ठी का उद्घाटन मुख्य अतिथि विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित द्वारा मां सरस्वती के समक्ष द्वीप प्रज्जवलित कर किया गया।
दीक्षित ने कहा कि भारत के संविधान निर्माताओं ने संसदीय जनतंत्र को अपनाया। हमारी संवैधानिक संसदीय संस्थाएं गतिशील हुई हैं। तब से लेकर अब तक हमने जनतंत्र के विकास का एक लम्बा रास्ता तय किया है। संविधान सभा में द्विसदनीय व्यवस्था के बारे में गंभीर बहस हुई। अंततः द्विसदनीय व्यवस्था को स्वीकार किया गया। दीक्षित ने बताया कि संसदीय जनतंत्र में उच्च सदन विधान परिषद की बहुत बड़ी उपयोगिता है। विधान परिषद में विषय विशेषज्ञों एवं विद्वानों का प्रतिनिधित्व रहता है।
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परिषदों में आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक जीवन के विभिन्न पहलुओं पर सदन में गंभीर दूरदर्शिता एवं निष्पक्ष भाव से विचार करने का अवसर मिलता है। निम्न सदन में जन समस्याओं से जुड़े हुए अनेक विधेयक शोरगुल वातावरण में बिना गहन बहस एवं चिंतन और विचार-विमर्श के पास हो जाता है।
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की विधानसभा में देश के प्रखर मेधावी विद्वान और राष्ट्रीय चिंतन से जुड़े लोगों का अवदान रहा है। इन महाभूतियों ने राष्ट्रीय जागरण व आंदोलन को नई दिशा दी गयी। पं मदन मोहन मालवीय, गंगा प्रसाद वर्मा, पं जवाहर लाल नेहरू, डाॅ तेज बहादुर सप्रू, मौलाना हजरत मोहाली, पं अयोध्या नाथ आदि लोग राष्ट्रीय आंदोलन के अभिन्न अंग रहे है। महादेवी वर्मा जैसी महानतम साहित्यकार एवं कवियत्री का विधान परिषद की कार्यवाही में योगदान गर्व का विषय है।
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दीक्षित ने कहा कि उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा विधानमंडल है। दुनिया के बहुत लोकतांत्रिक देशों में सबसे बड़ा निकाय है। उत्तर प्रदेश की विधान परिषद के सदस्यों को अपने अग्रज/पूर्वजों की परम्परा का अनुसरण करते हुए सदन में बहस के वातायन को वाद-प्रतिवाद के माध्यम से मधुरस बनाना चाहिए। वर्तमान में अपनी सार्थकता खोते जा रहे सदनों में उत्तर प्रदेश की विधान परिषद को अपने इतिहास व परम्परा का अनुसरण करते हुए गुणवत्तापूर्ण बहस के उच्चतम मानकों द्वारा अपनी सार्थकता और उपयोगिता सिद्व करते हुए दूसरे प्रदेशों की विधान परिषदों के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।
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इस अवसर पर उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सभापति रमेश यादव ने उत्तर प्रदेश विधान परिषद के गौरवशाली इतिहास पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में शतरूत प्रकाश, सदस्य विधान परिषद, मधुकर जेटली, सदस्य विधान परिषद, प्रदीप कुमार दुबे, प्रमुख सचिव, विधानसभा, एवं डाॅ राजेश सिंह व अन्य गणमान्य जन भी उपस्थित रहे।