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लॉकडाउन में ‘बेजुबानों’ को पेट भरने में आ रही दिक्कत
लॉकडाउन में जरूरतमंदों और गरीबों के पेट भरने के लिए भले ही जिला प्रशासन ने इंतजाम कर दिए हों, लेकिन गली-मोहल्लों में घूमने वाले निराश्रित मवेशियों के सामने पेट की आग बुझाने का संकट खड़ा हो गया है।
अजय मिश्रा
कन्नौज। लॉकडाउन में जरूरतमंदों और गरीबों के पेट भरने के लिए भले ही जिला प्रशासन ने इंतजाम कर दिए हों, लेकिन गली-मोहल्लों में घूमने वाले निराश्रित मवेशियों के सामने पेट की आग बुझाने का संकट खड़ा हो गया है। उनकी सुधि लेने वाला कोई नही दिख रहा है।
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सैकड़ों जरूरतमंदों को भोजन और राशन बांटा
यूपी के कन्नौज जनपद में तहसीलवार तीन कम्युनिटी किचन चल रहे हैं। जिला प्रशासन का दावा है कि हर रोज यहां से सैकड़ों जरूरतमंदों को भोजन और राशन बांटा जा रहा है। लेकिन जिले में घूम रहे सैकड़ों निराश्रित ‘बेजुबानों’ के लिए हरे चारे की दिक्कत हो गई है।
कई अस्थाई गौवंश स्थलों पर तो मवेशियों को सूखा भूसा भी उनको नसीब नही हो रहा है। पेट की आग बुझाने में नाकाफी प्रयासों की वजह से निराश्रित मवेशी सड़कों पर आ गए हैं। कई स्थानों पर पशु बीमार हो रहे हैं।
25 मार्च से लगातार चल रहे देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से समस्याएं बढ़ी हुई हैं। इंसान तो किसी तरह अपना पेट भर लेता है, लेकिन मवेशियों के सामने समस्या विकराल है।
कई परिवार जो पहले निराश्रित ‘बेजुबानों’ को पेट भरने के लिए कुछ न कुछ खिलाते थे, वह अब बाहर नहीं निकल रहे हैं। जिसकी वजह से निराश्रित मवेशियों के सामने पेट भरने का संकट खड़ा हो गया है।
उधर, अपने पेट की आग बुझाने के लिए कई पशु आश्रय स्थल से भाग निकले हैं। यह जानवर अब गली-मोहल्लों व सड़कों पर घूमने लगे हैं। भूख और प्यास से बेहाल जानवरों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। मुख्य मार्गों और उनके साइडों पर ये मवेशी खूब देखे जा सकते हैं।
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गौशाला में तो बीमार हो रहे जानवर
तहसील सदर भवन कन्नौज के बाहर अस्थाई गौशाला चल रही है। बताया गया है इन दिनों यहां 42 निराश्रित मवेशी हैं। फिलहाल एक मवेशी बीमार है, जो जमीन पर पड़ा था।
यहां तैनात एक कर्मी ने बताया कि इलाज के लिए डॉक्टर तो आते हैं, लेकिन मवेशी को पूरी तरह से आराम नहीं है। यहां मवेशियों के लिए भूसा रखा था। दाना की बोरियां भी होने की बात कर्मियों ने कही। लेकिन हरा चारा नहीं दिखा।
समाजसेवी भी नही दे रहे ध्यान
गर्मी शुरू हो चुकी है। पानी की मांग भी बढ़ रही है। तालाब और पोखरों में पानी कम हो रहा है, फिर भी जिम्मेदार चुप्पी साधे हैं। दूसरी ओर अब तक अपने को समाजसेवी कहने वाले भी जीव-जंतुओं की मदद को आगे नही आए हैं।
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