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इलाहाबाद हाईकोर्ट की आज की बड़ी ख़बरें, पढ़ें एक क्लिक में

कोर्ट ने याची के जीपीएफ, पेंशन आदि भुगतान पर बीएसए को एक माह में निर्णय लेने का निर्देश दिया है और अनुपालन रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है यदि इस आदेश का पालन नहीं किया गया तो बीएसए सुनवाई की अगली तिथि को कोर्ट में हाजिर हो।

SK Gautam
Published on: 2 Dec 2019 3:03 PM GMT
इलाहाबाद हाईकोर्ट की आज की बड़ी ख़बरें, पढ़ें एक क्लिक में
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इलाहाबाद हाईकोर्ट

बीएसए संत कबीर नगर को अवमानना नोटिस, आदेश पालन न करने पर कोर्ट में हाजिर होने का निर्देश

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बेसिक शिक्षा अधिकारी संत कबीर नगर सत्येंद्र कुमार सिंह को अवमानना नोटिस जारी की है। कोर्ट ने कहा है कि वह प्रथम दृष्टया अवमानना के दोषी है। कोर्ट ने याची के जीपीएफ, पेंशन आदि भुगतान पर बीएसए को एक माह में निर्णय लेने का निर्देश दिया है और अनुपालन रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है यदि इस आदेश का पालन नहीं किया गया तो बीएसए सुनवाई की अगली तिथि को कोर्ट में हाजिर हो। यह आदेश न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल ने कृष्णावती की अवमानना याचिका पर दिया है।

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याची अधिवक्ता बी.एन. सिंह राठौर का कहना है कि कोर्ट ने विपक्षी को 3 माह के भीतर याची के पति के सेवानिवृत्त के भुगतान का निर्देश दिया था। इस आदेश का पालन न किए जाने पर दाखिल अवमानना याचिका यह कहते हुए कोर्ट में निस्तारित कर दी थी, कि विपक्षी आदेश का अनुपालन कर याची को उसकी सूचना दें। इसके बावजूद आदेश का पालन नहीं किया गया, तो दोबारा दाखिल याचिका पर विपक्षी को कोर्ट ने आदेश पालन का एक माह का अतिरिक्त समय दिया है। याचिका की सुनवाई 1 माह बाद होगी।

पति की मृत्यु के पश्चात जीपीएफ, पेंशन का भुगतान नहीं किया गया

याची के पति स्वर्गीय बबलू, पूर्व माध्यमिक विद्यालय नरियावा, संत कबीर नगर में चपरासी पद पर नियुक्त थे। सेवाकाल में उनकी मृत्यु हो गयी थी। याची के पुत्र श्रवण कुमार को 15 जनवरी 2006 को मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति दी गई । किंतु याची को पति की मृत्यु के पश्चात जीपीएफ, पेंशन का भुगतान नहीं किया गया। जिसको लेकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। और कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का विपक्षी द्वारा पालन न करने के कारण दोबारा यह अवमानना याचिका दाखिल की गई है।

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चिन्मयानन्द ब्लैकमेल की आरोपी विधि छात्रा की जमानत पर 4 दिसम्बर को सुनवाई

प्रयागराज: स्वामी चिन्मयानन्द को ब्लैकमेल करने की आरोपी रेप पीड़िता एल एल एम छात्रा की जमानत अर्जी की सुनवाई 4 दिसम्बर को होगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अशोक कुमार ने व्यक्तिगत वजह से स्वयं को सुनवाई से आज अलग कर लिया । और केस की सुनवाई के लिए अर्जी मुख्य न्यायाधीश के समक्ष कोई अन्य पीठ नामित करने के लिए प्रेषित कर दी है। अर्जी की सुनवाई 4 दिसम्बर को होगी। मालूम हो कि विधि छात्रा चिन्मयानन्द के साथ ब्लैकमेल करने की आरोपी है और वह भी इस आरोप में जेल में बंद हैं। उसका कहना है कि उसे इस मामले में गलत फसाया गया है। वह निर्दोष हैं। बहरहाल कोर्ट अब 4 दिसम्बर को इस केस की सुनवाई करेगी।

महराजगंज- गोरखपुर राजमार्ग चैडीकरण के नाम पर गैरकानूनी तरीके से मकानों के ध्वस्तीकरण पर रोक

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महाराजगंज गोरखपुर राजमार्ग (एनएच 730) पर सड़क चैड़ीकरण के नाम पर मकानों और दुकानों के ध्वस्तीकरण पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा है कि याचीगण संबंधित अधिकारियों को विस्तृत प्रत्यावेदन दें और अधिकारी उस प्रत्यावेदन का नियमानुसार निस्तारण करें। कोर्ट ने कहा कि तब तक किसी भी प्रकार का निर्माण गिराया नहीं जाएगा।

महाराजगंज के दीपक शरण श्रीवास्तव सहित दर्जनों लोगों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति वीके नारायण और न्यायमूर्ति प्रकाश पाड़िया की खंडपीठ ने दिया है। याची के अधिवक्ता विभु राय और सुमित कुमार श्रीवास्तव का कहना था कि याची और अन्य लोगों ने महाराजगंज गोरखपुर मार्ग स्थित वीर बहादुर नगर में नक्शा स्वीकृत कराकर मकान और दुकानों का निर्माण कराया था।

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कुछ दिन पूर्व लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों ने उनके मकान की बाउंड्री पर लाल निशान लगा दिया। बताया गया कि महाराजगंज गोरखपुर राज मार्ग का चैड़ीकरण पुलिस चैकी तिराहा से बल्ली नाला तक किया जाना है। इसके बीच में स्थित मकानों को चैड़ीकरण के लिए तोड़ा जाएगा। अधिवक्ताओं की दलील थी कि याचीगण का मकान बिना अधिग्रहण की कार्रवाई किए और बिना कोई मुआवजा दिए तोड़ा जा रहा है जो कि गैरकानूनी है।

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कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 300- ए में स्पष्ट है कि किसी भी व्यक्ति को गैरकानूनी तरीके से उसकी संपत्ति से वर्जित नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने भी संपत्ति के अधिकार को लेकर के कई आदेश दिए है। किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से सिर्फ कानून के तहत ही वंचित किया जा सकता है। किसी प्रशासनिक आदेश, शासनादेश अथवा सर्कुलर के जरिए नहीं। कोर्ट ने कहा है कि याचीगण अपनी मांगों से संबंधित विस्तृत प्रत्यावेदन संबंधित अधिकारियों को दें और अधिकारी उनका नियमानुसार निस्तारण करें तब तक याची गण के मकान का ध्वस्तीकरण नहीं किया जाएगा।

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