UP उपचुनाव: लोगों ने कम किया मतदान, BJP की जगी उम्मीद

उपचुनाव में विपक्षी दलों ने सत्तारूढ़ दल को घेरने के लिए कई मुद्दों पर घेरा और तीखे हमले किए। चुनाव से पहले कानून-व्यवस्था के मुुद्दे पर सरकार को घेरने में विपक्ष ने कोई कसर नहीं छोड़ी तो सरकार को दलित विरोधी और ब्राहम्ण विरोधी भी साबित करने की मुहिम चलाई।

Newstrack
Published on: 4 Nov 2020 2:51 AM GMT
UP उपचुनाव: लोगों ने कम किया मतदान, BJP की जगी उम्मीद
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चुनाव से पहले कानून-व्यवस्था के मुुद्दे पर सरकार को घेरने में विपक्ष ने कोई कसर नहीं छोड़ी तो सरकार को दलित विरोधी और ब्राहम्ण विरोधी भी साबित करने की मुहिम चलाई।

लखनऊ: यूपी की 7 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में औसत 53.62 प्रतिशत मतदान हुआ। वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर औसत 63.90 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि उपचुनाव के लिए मतदाताओं ने उत्साह नहीं दिखाया। मतदान के बाद जहां विपक्षी दल अपनी जीत का दावां करते हुए इसे सत्तारूढ़ भाजपा के प्रति जनता की नाराजगी बता रहे है तो वहीं सत्तारूढ़ दल भाजपा इसे अपने लिए मुफीद मान रही है। भाजपा नेताओं का कहना है कि कम मतदान का सीधा सा मतलब है कि जनता में बदलाव की कोई इच्छा नहीं है।

उपचुनाव में विपक्षी दलों ने सत्तारूढ़ दल को घेरने के लिए कई मुद्दों पर घेरा और तीखे हमले किए। चुनाव से पहले कानून-व्यवस्था के मुुद्दे पर सरकार को घेरने में विपक्ष ने कोई कसर नहीं छोड़ी तो सरकार को दलित विरोधी और ब्राहम्ण विरोधी भी साबित करने की मुहिम चलाई। इधर, सत्तारूढ़ दल ने भी राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। लेकिन मतदान को देखकर लग रहा है कि जनता के बीच में इन मुद्दों ने खास असर नहीं छोड़ा।

बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का विषय

उपचुनाव के दौरान प्रचार को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा का पलड़ा भारी रहा। 7 में से 6 सीटों पर अब तक काबिज रही भाजपा के लिए उपचुनाव सबसे ज्यादा प्रतिष्ठा का विषय है। इसीलिए भाजपा ने उपचुनाव में पूरी ताकत झोंक दी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उपचुनाव की करीब सभी सीटों पर स्वयं प्रचार किया तो दोनों उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य और दिनेश शर्मा भी प्रचार में जुटे रहे। इनके अलावा भाजपा के तमाम मंत्री व नेता भी लगातार प्रचार कार्य में जुटे रहे। इसके विपरीत विपक्षी दलों सपा, बसपा और कांग्रेस के मुख्य नेताओं ने खुद को उपचुनाव के प्रचार से दूर रखा।

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दरअसल, यूपी में उपचुनावों को आमतौर पर सत्तापक्ष का चुनाव मानने की धारणा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बहुत ही सीमित कार्यकाल के लिए होने वाले उपचुनाव में जनता बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेती है। चूंकि इन चुनावों का राज्य की सत्ता पर कोई बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ता इसलिए जनता सत्तारूढ़ दल को ही चुनती है। जिससे कि आम चुनाव में जो भी समय शेष हो उसमे उनके क्षेत्र में विकास कार्य बाधित न हो। सियासी जानकारों का कहना है कि अगर क्षेत्र के विधायक के खिलाफ जनता में नाराजगी होती है तभी उस विधायक के दल के खिलाफ मतदान होता है।

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यूपी में पिछली दो सरकारों के कार्यकाल में हुए उपचुनावों की बात करे तो वर्ष 2007 से 2012 के बीच बसपा के शासनकाल में 16 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में 11 सीटों पर बसपा ने जीत हासिल की। जबकि 02 सीटों पर हुए उपचुनाव में बसपा ने हिस्सा ही नहीं लिया था। इसके बाद वर्ष 2012 से 2017 के बीच सपा शासनकाल में 22 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में सपा ने 15 सीटों पर कब्जा किया था। भाजपा शासनकाल में लोकसभा चुनाव के बाद 11 सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने 07 सीटों पर अपनी विजय पताका फहराई थी।

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