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UP Nikay Chunav 2023: भाजपा के इस मास्टर स्ट्रोक से सपा, बसपा और कांग्रेस की सारी तैयारियां धरी की धरी रह जाएंगी!

UP Nikay Chunav 2023: भाजपा की कोशिश अब मुस्लिमों को भी साथ लाने की है। पार्टी ने प्रदेश के उन इलाकों में मुसलमानों को ज्यादा टिकट दिया है जहां उनकी आबादी अच्छी खासी है। मुख्यतौर पर मुरादाबाद, रामपुर, मुजफ्फरनगर और अमरोहा में ज्यादातर टिकट मुसलमानों को दिया गया है। पार्टी ने वाराणसी एवं गोरखपुर में भी मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं।

Ashish Pandey
Published on: 27 April 2023 7:17 AM GMT
UP Nikay Chunav 2023: भाजपा के इस मास्टर स्ट्रोक से सपा, बसपा और कांग्रेस की सारी तैयारियां धरी की धरी रह जाएंगी!
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UP Nikay Chunav 2023

UP Nikay Chunav 2023: उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव 2023 में भाजपा ने ऐसा प्लान बनाया है जिससे सपा, बसपा और कांग्रेस के होश उड़ जाएंगे। भाजपा ने नगर निकाय चुनाव में काफी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देकर मैदान में उतारा है। अब भाजपा के इस दांव से सपा, कांग्रेस और बसपा की नींद हराम हो गई है। सपा, कांग्रेस और बसपा जहां हमेशा यह कहती आ रही है कि बीजेपी अल्पसंख्यकों का ध्यान नहीं देती है। वह मुस्लिम विरोधी है, लेकिन बीजेपी के इस चाल ने इन पार्टियों को सोचने पर मजबूर कर दिया है।

यूपी में दो चरणों चार मई और 11 मई को मतदान होगा और चुनाव नतीजे 13 मई को आएंगे। लोकसभा चुनावों से पहले नगर निकाय चुनाव को सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है। इसके रिजल्ट लोकसभा चुनाव के लिए काफी अहम साबित होंगे। निकाय चुनाव में वैसे तो मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच माना जा रहा है। हालांकि बीएसपी की उम्मीद उन शहरी क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन की है जहां पर दलित वोटर ज्यादा हैं। लेकिन भाजपा ने जिस तरह से मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, उसका असर तो विरोधी पार्टियों पर जरूर पड़ेगा।

नगर निकाय चुनाव को लेकर यूपी में सियासी रंगत अपनी जोरों पर है। सभी पार्टियां अपने परंपरागत वोट बैंक पर पकड़ बनाए रखने के साथ-साथ उन वर्गों को अपनी तरफ आकर्षित करने में जुटी हैं जहां उनकी पकड़ कमजोर है। मुस्लिम उम्मीदवारों से परहेज करने वाली भाजपा ने इस चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देकर सपा, बसपा और कांग्रेस को चैंका दिया है। भाजपा ने चुनाव में बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है। रिपोर्टों की मानें तो भाजपा अब तक करीब 250 मुस्लिमों को टिकट दे चुकी है। सूत्रों की मानें तो यह संख्या 400 या उससे अधिक तक जा सकती है। भाजपा ने जितने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं उनमें 90 प्रतिशत संख्या पसमांदा मुसलमानों की है।

वाराणसी में हुमा तो गोरखपुर में निशा को टिकट-

भाजपा ने सूबे के उन इलाकों में मुसलमानों को ज्यादा टिकट दिया है जहां पर उनकी आबादी अच्छी तादात में है। मुख्यतौर पर मुरादाबाद, रामपुर, मुजफ्फरनगर और अमरोहा में ज्यादातर टिकट मुसलमानों को दिया गया है। पार्टी ने वाराणसी एवं गोरखपुर में भी मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। वाराणसी नगर निगम में मदनपुरा वार्ड से हुमा बानो को, कच्ची बाग से रेशमी बीवी और जमालुद्दीनपुरा से वकील अहमद अंसारी को टिकट दिया है। इसी तरह से गोरखपुर नगर निगम में बाबा गंभीरनाथ सीट जो कि ओबीसी महिला के लिए आरक्षित है, यहां से हकीबुल निशा को टिकट दिया है।

रामपुर, टांडा में भी मुस्लिम उम्मीदवार

कभी आजम खान का गढ़ रहे रामपुर, टांडा एवं अफजलगढ़ नगर पालिका चेयरमैन सीटों पर भी भाजपा ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। मुरादाबाद डिवीजन में नगर पंचायत चेयरमैन पदों के लिए भाजपा ने एक दर्जन से ज्यादा और पार्षद पदों के लिए करीब 100 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। नगर पालिका और नगर पंचायतों की बात करें तो फिरोजाबाद, अमेठी एवं अन्य जिलों में भाजपा ने नगर पालिका अध्यक्ष और नगर पंचायत अध्यक्ष के अलावा सभासद पदों के लिए भी टिकट मुस्लिमों को दिए हैं। आपको बता दें कि भाजपा पसमांदा मुसलमानों के जरिए सपा एवं बसपा के वोट बैंक में सेंधमारी करना चाहती है। मुसलमानों का यह तबका गरीब है और खेती-बारी करके अपना जीवन यापन करता है। बीजेपी लंबे समय से इन मुसलमानों को खुद से जोड़ने की रणनीति पर काम करती आ रही है।

विपक्ष को ऐसे देगी करारा जवाब-

नगर निकाय चुनाव में यदि भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवार जीत दर्ज करते हैं तो भाजपा के ऊपर जो अक्सर यह आरोप लगता है कि वह मुस्लिमों को टिकट नहीं देती और मुस्लिम उसे वोट नहीं करते, विपक्ष के इन दोनों आरोपों का वह बड़े सही ढंग से जवाब दे पाएगी। वहीं लोकसभा चुनाव 2024 में पार्टी मुस्लिम वर्ग को लेकर और विश्वास एवं भरोसे के साथ उतरेगी।

पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने से बीजेपी को कितना होगा फायदा?-

बीजेपी काफी समय से मुसलमानों के बीच अपनी छवि सुधारने की कोशिश में जुटी हुई है। देखा जाए तो पिछले कुछ समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी के बड़े नेता मुस्लिम समुदाय के नेताओं से मिल रहे हैं। इससे ये संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि भाजपा मुस्लिम विरोधी नहीं है। वह खुले दिल से इस समुदाय को गले लगाने के लिए तैयार है।

लोकसभा-विधानसभा में एक भी मुसलमान सांसद और विधायक नहीं है-

लोकसभा और विधानसभा में बीजेपी का एक भी मुसलमान सांसद और विधायक नहीं है। इसे लेकर पार्टी की खासी आलोचना होती रही है। वहीं बीजेपी पर अक्सर ये आरोप लगता रहा है कि वह चुनावों में मुस्लिमों को टिकट नहीं दे रही है, लेकिन पार्टी ने अब इस नैरेटिव को बदलना शुरू कर दिया है और इसकी शुरुआत यूपी के निकाय चुनाव से देखी जा सकती है जहां भाजपा ने कबीर 250 मुसलमान उम्मीदवारों को टिकट दिया है।

यूपी के पसमांदा मुस्लिमों को जोड़ने के लिए बीजेपी ने 17 अक्टूबर 2022 को लखनऊ में ‘पसमांदा बुद्धिजीवी सम्मेलन‘ का आयोजन किया था। सम्मेलन में उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक चीफ गेस्ट थे। यूपी सरकार के एक मात्र मुसलमान मंत्री दानिश आजाद अंसारी भी इसमें शामिल हुए। सम्मेलन में बीजेपी की ओर से राज्य सभा भेजे गए जम्मू-कश्मीर के गुर्जर मुस्लिम नेता गुलाम अली खटाना ने भी भाग लिया था। अमेठी और रायबरेली लोकसभा क्षेत्र में गुर्जर मुसलमानों की अच्छी खासी आबादी है। पसमांदा समुदाय के लोगों का दावा है कि भारत की पूरी मुस्लिम आबादी में उनकी हिस्सेदारी 80 प्रतिशत है। बीजेपी की नजर मुस्लिमों की इसी बड़ी आबादी पर है। भारत में सबसे अधिक मुस्लिम यूपी में हैं। यहां इनकी आबादी लगभग चार करोड़ है। इसमें सबसे अधिक पसमांदा मुसलमान हैं।

सपा, बसपा और कांग्रेस को करती आ रही है वोट-

यूपी में पारंपरिक तौर पर मुसलमान सपा, बसपा, लोकदल और कांग्रेस को वोट देती आई है। लेकिन पिछले कुछ चुनावों के दौरान बीजेपी ने यहां गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों को पार्टी से जोड़ने में सफलता हासिल की है। अब पार्टी पसमांदा मुस्लिमों को भी जोड़ने का प्रयास कर रही है।

भारत में मुसलमान तीन कैटेगरी में बंटे हैं-

इस्लाम में जाति भेद नहीं है, लेकिन भारत में मुसलमान अनौपचारिक तौर पर तीन अशराफ, अजलाफ और अरजाल कैटेगरी में बंटे हैं।
अशराफ समुदाय सवर्ण हिंदुओं की तरह मुस्लिमों में संभ्रांत समुदायों का प्रतिनिधित्व करता है। इनमें सैयद, शेख मुगल, पठान, मुस्लिम राजपूत, तागा या त्यागी मुस्लिम, चैधरी मुस्लिम, ग्रहे या गौर मुस्लिम शामिल हैं।

अजलाफ मुस्लिमों में अंसारी, मंसूरी, कासगर, राइन, गुजर, बुनकर, गुर्जर, घोसी, कुरैशी, इदरिसी, नाइक, फकीर, सैफी, अलवी, सलमानी जैसी जातियां हैं। अरजाल में दलित मुस्लिम शामिल हैं। ये जातियां अशराफ की तुलना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तौर पर पिछड़ी हैं। बीजेपी की नजर अजलाफ और अरजाल समुदाय के इन्हीं मुसलमान वोटरों पर है जिन्हें पसमांदा कहा जाता है।

पसमांदा मुसलमान-

पसमांदा एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ है पीछे छूट गए लोग। भारत में पहली बार पसमांदा मुस्लिम शब्द का इस्तेमाल 1998 में अली अनवर अंसारी ने किया था, जब उन्होंने ‘पसमांदा मुस्लिम महाज‘ नाम के एक संगठन की नींव रखी थी।

क्या है बीजेपी का मकसद?

पसमांदा मुस्लिमों को बीजेपी अपने पाले में लाने की कोशिश शुरू की है, अब यहां सवाल यह उठता रहा है कि आखिर बीजेपी का इसके पीछे असली मकसद क्या है? क्या भाजपा की यह पहल पसमांदा वोटों के लिए है या ये फिर मुस्लिम विरोधी टैग हटा कर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को कोई संदेश देना चाहती है?
इस सवाल पर जानकारों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी के विचारपुरुष पंडित दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय में विश्वास रखते थे। यूपी में पसमांदा मुसलमानों का एक बड़ा समुदाय है।

मुस्लिम आबादी में 80 फीसदी पसमांदा मुसलमान ही हैं। पीएम मोदी और सीएम योगी के नेतृत्व में चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं के साढ़े सात करोड़ लाभार्थी इसी वर्ग के हैं। ऐसे में बीजेपी की यही सोच है कि मुसलमानों की इस पिछड़ी आबादी के लिए काम किया जाए। विश्लेषकों का कहना है कि मुसलमानों में शिक्षा, नौकरियों और कारोबार पर हिंदू सवर्णों की तरह ही सैयद, मुगल, पठान, शेख समुदायों का कब्जा है। राजनीति में ही वे ही नेतृत्व कर रहे हैं। राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक तीनों मोर्चे पर बीजेपी मुसलमानों को बांटकर उसके एक हिस्से को अपने साथ लाना चाहती है। यूपी में यादव नौ फीसदी हैं और मुसलमान 17 फीसदी से अधिक हैं। मुसलमान वोटर सपा के समर्थक हैं। इसलिए बीजेपी की इस चाल से समाजवादी पार्टी को नुकसान हो सकता है।

Ashish Pandey

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