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वीरान हवेलीः कभी हथौड़ा स्टेट की शान थी आज माटी के मोल

कभी घुंघरूओ की खनक से आबाद रहने वाली हरदोई की हथौड़ा स्टेट की हवेली अब वीरानियों में खोने लगी है।

Roshni Khan
Published on: 5 Jun 2020 12:39 PM IST
वीरान हवेलीः कभी हथौड़ा स्टेट की शान थी आज माटी के मोल
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वीरान हवेलीः कभी हथौड़ा स्टेट की शान थी आज माटी के मोल

हरदोई: कभी घुंघरूओ की खनक से आबाद रहने वाली हरदोई की हथौड़ा स्टेट की हवेली अब वीरानियों में खोने लगी है। आधी गंगा तक इस स्टेट की माल गुजारी वसूली जाती थी, परंतु अब वह अपनी पहचान को तरसने लगी है। यहां के राजा की रईसी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता कि उन्होंने एक कपड़ा कभी दुबारा नहीं पहना और उनके कपड़े इंग्लैंड की पर्ल हार्बर मिल से सिलकर आते थे।

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एक कपड़ा कभी दुबारा नहीं पहनते थे यहां के राजा

जिला मुख्यालय से 42 किलोमीटर दूर स्थित यह स्टेट अंग्रेजों के समय हथौड़ा स्टेट की गिनती रईस राज्यों में की जाती थी। यहां के राजा श्यामा कुमार वालीबॉल व क्रिकेट के राज्य स्तरीय खिलाड़ी थे। हथौड़ा रियासत की सीमा आधी गंगा की धारा तक थी और यहां तक इनके शासनकाल में राजस्व वसूली की जाती थी। उनकी खुद की कोर्ट व स्वयं के पुलिस कर्मी थे जो राज्य की शासन व्यवस्था देखते थे। राजा श्यामा कुमार कपड़ों के बेहद शौकीन थे। राजा एक बार जो कपड़े पहनते थे, वह दुबारा नहीं पहनते थे। सोने के काम की कारीगरी वाले कपड़े इंग्लैंड की पर्ल हार्बर मिल से आते थे, जिन्हें अंग्रेज टेलर सिलाई करते थे।

कारों के शौकीन राजा के पास दो राल्स रायल कारें थी

कारों के शौकीन राजा के पास दो राल्स रायल कारें थी। जिनकी कीमत उस समय कई करोड़ में बताई जाती है। उनके जमाने में आम के बाग काफी प्रसिद्ध थे। मलिहाबाद दूसरे स्थान पर था। राजा रास नृत्य के बेहद शौकीन थे। इनके महल में शाम होते ही घुंघरूओं की खनक व ढोलक की थापें गूंजती थीं। कई गानों की स्वर लहरियों से गली कूंचे भी गुंजायमान रहते थे।

तीन रानियां थी राजा श्यामा कुमार की

इनकी तीन रानियां थी। उड़ीसा के मालाजनी, बलरामपुर व बक्सखेड़ा की छोटी रानी विमला कुमारी आदि शामिल हैं। राजा के महल के समीप सटा एक बाग था, जिसे रानी बाग का नाम दिया गया था। इसमें कई किस्म के फूलों के पेड़ के साथ फलों के पेड़ थे। जिसमें महल से जुड़ी महिला ही चहलकदमी किया करती थी।

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महल से दक्षिण दिशा में स्थित है गंगा सागर, जिसमें रानियों का स्नानागार था। इसमें तीर्थों का जल मिलाया गया था। राजा की मौत 1975 में हुई थी। उसके बाद इनके पुत्र कुंवर दुर्गा प्रताप ने गद्दी को संभाला। जिनकी मौत 2003 में हुई। अब उनके वारिश कुंवर ललितेश्वर प्रताप सिंह हैं। लखनऊ का रानीगंज उन्हीं के नाम से जाना जाता है। कभी रानी बाग अब नेस्तनाबूद हो गया। भवन रख रखाव के अभाव में जर्जर हो गया। कभी यहां महफिलें सजती थी, कोर्टें लगती थी और अब सिर्फ वीरानियां व खंडहर दिखाई पड़ते हैं।लेकिन यहां की दीवारें बता रही है कि इमारत बुलन्द थी।

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