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कब खत्म होगा वाजपेयी का सियासी वनवास

raghvendra
Published on: 25 Oct 2019 9:03 AM GMT
कब खत्म होगा वाजपेयी का सियासी वनवास
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सुशील कुमार

मेरठ: भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रदेश ध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी का सियासी वनवास खत्म होने के संकेत नहीं दिख रहे हैं। विधानसभा चुनाव हारने के बाद से ही लगातार हाशिये पर चल रहे वाजपेयी के कई बार शाह की टीम में शामिल होने, राज्यसभा या विधान परिषद में भेजने के साथ योगी मंत्रिमंडल में शामिल होने की चर्चा उड़ती रही, लेकिन ये सब महज अफवाह ही साबित हुई। हालात ऐसे हो गए कि गत वर्ष बाजपेयी के खुद के घर के निर्माण को गिराने की तैयारी कमिश्नर ने कर दी, मगर बीजेपी साथ नहीं आई। उनको मीटिंगों में भी खास तवज्जो नहीं मिली।

शुरू से ही पार्टी के वफादार सिपाही

67 वर्षीय लक्ष्मीकांत वाजपेयी को कार्यकर्ताओं का प्रदेश अध्यक्ष कहा जाता था। वे शुरू से पार्टी के वफादार सिपाही रहे हैं। 1964 में हाईस्कूल के दौरान 14 साल की उम्र में ही उन्होंने जनसंघ के लिए काम करना शुरू कर दिया था।

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अपनी ईमानदार छवि और बेबाक व जुझारू शैली की राजनीति के लिए मशहूर वाजपेयी वर्ष 2012 में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बने। उनके कार्यकाल में लोकसभा 2014 के चुनाव में भाजपा ने यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 71 पर जीत हासिल की थी। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। हालांकि इससे पहले उन्होंने चार बार 1989, 1996, 2002 और 2012 में मेरठ शहर से ही विधायकी का चुनाव जीता था।

झूठे साबित हुए कयास

2017 की हार के बाद बाद तमाम मौकों पर यह कयास लगाए जाते रहे कि पार्टी अपने इस जुझारू नेता को कहीं न कहीं मौका देगी, लेकिन हर बार कयास झूठे ही साबित हुए। हालिया लोकसभा चुनाव में भी पार्टी ने उन्हें टिकट से दूर रखा।

2019 लोकसभा चुनावों के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने मेरठ में एमपी-एमलए की मीटिंग के बाद अचानक वाजपेयी को बुलाया और दिल्ली जाते वक्त अपने साथ कार में बैठाकर ले गए। वाजपेयी को इस तरह से शाह के अपने साथ ले जाने के बाद सियासी हलकों में चर्चाएं होने लगीं कि वाजपेयी को केन्द्रीय संगठन या सरकार में कोई अहम जिम्मेदारी मिलने वाली है। लेकिन कुछ ही दिनों बाद इस तरह की चर्चाओं पर विराम लग गया।

एमएलसी भी नहीं बन सके

वाजपेयी तेजतर्रार शैली और प्रभावी संबोधन के लिए जाने जाते हैं। फिर माना जा रहा था कि उन्हें एमएलसी बनाकर उनकी नाराजगी को दूर किया जाएगा। लेकिन वहां भी वाजपेयी के हाथ निराशा ही लगी। प्रदेश की पूर्ववर्ती सपा सरकार को उखाडऩे में प्रमुख भूमिका निभाने वाले वाजपेयी राज्यसभा सदस्य तो छोड़ो एमएलसी भी नहीं बन सके। सपा, बसपा की परिक्रमा कर भाजपा में शामिल होकर पवित्र होने वाले कई दलबदलू एमएलसी का प्रत्याशी बनने में कामयाब रहे। सपा से भाजपा में आने वाले इन नेताओं में प्रमुख रूप से यशवन्त सिंह, सरोजनी अग्रवाल व बसपा से आने वालों में जयबीर सिंह प्रमुख हैं। इससे पूर्व राज्यसभा चुनाव में भी सपा से भाजपा में आए डॉ.अशोक बाजपेयी व अनिल अग्रवाल को भाजपा ने राज्यसभा भेजकर उपकृत किया था।

वाजपेयी को कोई शिकायत नहीं

राज्यसभा व एमएलसी चुनाव में टिकट न मिलने के बारे में पूछने पर वाजपेयी ने कहा कि ऐसा नहीं सोचना चाहिए। पार्टी हमारी मां है। मुझे घर से बुलाकर आठ बार टिकट दिया गया, मंत्री बनाया गया। साथ ही घर से बुलाकर भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। वाजपेयी ने कहा कि मेरा मानना है कि जो भी दायित्व मिले, उसे पूरी जिम्मेदारी से निभाना चाहिए। हो सकता है कि पार्टी मेरे लिए कुछ और अच्छा सोच रही हो।

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भाजपा की निर्मल गंगा में पवित्र हो रहे दलबदलुओं को लोकसभा, विधानसभा, राज्यसभा, विधानपरिषद का टिकट मिलने के सवाल पर भाजपा के कई पदाधिकारियों से उनके मन की बात जानने का प्रयास किया गया तो ज्यादातर लोग इस मामले पर चुप्पी ही साधे रहे। कई पदाधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर इस बात को स्वीकारा किया पार्टी लगातार कर्मठ और संघर्षशील पदाधिकारियों की अनदेखी कर रही है जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ सकता है।

नहीं मिला राज्यसभा का टिकट

पिछले साल मार्च में वाजपेयी का नाम राज्यसभा की सदस्यता के लिए जोर-शोर उठा। लगा कि इस बार वाजपेयी का नाम राज्यसभा के लिए पक्का है। लेकिन भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति ने चर्चाओं पर विराम लगाते हुए मेरठ के सरधना से पूर्व विधायक विजयपाल सिंह तोमर और पूर्व मेयर प्रत्याशी व भाजपा की प्रदेश उपाध्यक्ष कांता कर्दम को राज्यसभा का प्रत्याशी घोषित कर दिया। बताया जा रहा है कि उनका नाम फाइनल था, किंतु ऐन मौके पर कोई खेल हो गया। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश की एक सीट के लिए जिन नामों की चर्चा थी, उसमें भी वाजपेयी का नाम पूरे जोर-शोर के साथ चला था। कुछ टीवी चैनलों ने तो उन्हें उम्मीदवार घोषित भी कर दिया था। सोशल मीडिया पर वाजपेयी को बधाई देने का सिलसिला भी शुरू हो गया था। लेकिन यूपी से राज्यसभा प्रत्याशी घोषित हुए सुधांशु त्रिवेदी जो कि काफी दिनों से पार्टी के प्रवक्ता के तौर पर काम कर रहे थे।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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