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Babri Masjid Demolition History: बाबरी विध्वंस मामले में कब क्या हुआ, जानते हैं पूरी टाइम लाइन

Babri Masjid Demolition History: 1949 में अयोध्या में बाबा राघव दास की जीत से मंदिर समर्थकों के हौसले बुलंद हुए और उन्होंने जुलाई 1949 में उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर मंदिर निर्माण की अनुमति माँगी। 30 सितंबर 2020 को लखनऊ में सीबीआई के स्पेशल कोर्ट ने आज यानी 30 सितंबर को सभी आरोपियों को बरी कर दिया।

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Published on: 6 Dec 2022 3:54 AM GMT (Updated on: 6 Dec 2022 4:18 AM GMT)
Babri Masjid Demolition History: बाबरी विध्वंस मामले में कब क्या हुआ, जानते हैं पूरी टाइम लाइन
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Babri Masjid Demolition History: अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढाँचा बाबरी मस्जिद ढहा दी गयी थी। इस मामले की लिबरहान योग ने 17 साल तक जांच की, सीबीआई ने जांच की और कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की, मुकदमा चला और आज सीबीआई की एक स्पेशल अदालत ने विवादित ढाँचा बाबरी विध्वंस के सभी आरोपियों को सबूतों के आभाव में बरी कर दिया। जानते हैं इस मामले की पूरी टाइम लाइन।

6 दिसंबर 1992

अयोध्या में बाबरी मस्जिद को हजारों कारसेवकों ने घेर कर गिरा दिया।

दिसंबर 1993

विवादित ढाँचा बाबरी मस्जिद गिराने के मामले में दो केस दर्ज किए गए। पहला कारसेवकों की भीड़ के खिलाफ और दूसरा लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और दूसरे नेताओं के खिलाफ. इन नेताओं पर सांप्रदायिक भाषण देने और उकसाने का आरोप लगाया गया था।

मई 2001

सीबीआई के स्पेशल कोर्ट ने आडवाणी, जोशी, उमा भारती, बाल ठाकरे और दूसरे नेताओं के खिलाफ चल रही सुनवाई रोक दी।

नवंबर 2004

सीबीआई ने तकनीकी आधार पर भाजपा नेताओं के खिलाफ चल रहे केस की सुनवाई बंद करने को इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ बेंच में चुनौती दी।

जून 2009

बाबरी मस्जिद विवादित ढाँचा विध्वंस मामले में लिब्राहन आयोग ने 17 साल तक जांच के बाद अपनी रिपोर्ट सौंपी. इस रिपोर्ट में 68 लोगों को बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था जिनमें भाजपा, आरएसएस, शिव सेना आदि के नेता थे. इस रिपोर्ट के मुताबिक बाबरी मस्जिद गिराना अवैध था और योजना बनाकर इसे अंजाम दिया गया था।

सितंबर 2010

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पहले लोअर कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा जिसमें यह कहा गया था कि दोनों मामले दो अलग-अलग एफआईआर पर आधारित हैं तो सुनवाई भी अलग-अलग होनी चाहिए।

मार्च 2012

सीबीआई ने सभी मामलों में एक ही केस की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा जमा किया।

अप्रैल 2017

सुप्रीम कोर्ट ने लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती के खिलाफ साजिश रचने का केस दोबारा बनाया। इस मामले को कारसेवकों के साथ मिला दिया गया। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में रोज सुनवाई का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि इस मामले में सुनवाई कर रहे जज का ट्रांसफर नहीं हो सकता है।

सितंबर 2020

लखनऊ में सीबीआई के स्पेशल कोर्ट ने आज यानी 30 सितंबर को सभी आरोपियों को बरी कर दिया.

विध्वंस होने तक बाबरी मस्जिद के ख़ास पड़ाव

1949

इस साल कांग्रेस और समाजवादियों में टूट की वजह से अयोध्या में उप-चुनाव हुए, जिसमें हिंदू समाज के बड़े संत बाबा राघव दास को जीत मिली। बाबा राघव दास की जीत से मंदिर समर्थकों के हौसले बुलंद हुए और उन्होंने जुलाई 1949 में उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर मंदिर निर्माण की अनुमति माँगी।

उत्तर प्रदेश सरकार ने फ़ैज़ाबाद डिप्टी कमिश्नर केके नायर से रिपोर्ट माँगते हुए पूछा कि वह ज़मीन नजूल की है या नगरपालिका की। सिटी मजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह ने 10 अक्तूबर को सिफ़ारिश की कि यह नजूल की ज़मीन है और मंदिर निर्माण की अनुमति देने में कोई रुकावट नहीं है।

हिंदू वैरागियों ने अगले महीने 24 नवंबर से मस्जिद के सामने क़ब्रिस्तान को साफ़ करके वहाँ यज्ञ और रामायण पाठ शुरू कर दिया, जिसमें काफ़ी भीड़ जुटी। झगड़ा बढ़ता देखकर वहाँ एक पुलिस चौकी बनाकर सुरक्षा में अर्धसैनिक बल लगा दी गई। पीएसी तैनात होने के बावजूद 22-23 दिसंबर 1949 की रात अभय रामदास और उनके साथियों ने राम-जानकी और लक्ष्मण की मूर्तियाँ मस्जिद के अंदर रख दीं. मूर्ति स्थापना की वजह से पूरा मामला विवादित ढाँचे में तब्दील हो गया।

1984

साठ साल पहले गठित विश्व हिन्दू परिषद् का विकास और विस्तार इसी साल ज़्यादा हुआ। इसी साल वीएचपी ने एक धर्म संसद का आयोजन किया, जिसमें ये संकल्प लिया गया कि राम जन्म भूमि को मुक्त कराना है। इसके बाद से ही इस आंदोलन में संत-महात्मा शामिल हुए।

इसी साल राम जानकी रथ यात्रा भी निकाली गई। 27 जुलाई 1984 को राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ। एक मोटर का रथ बनाया गया, जिसमें राम-जानकी की मूर्तियों को अंदर क़ैद दिखाया गया। 25 सितंबर को यह रथ बिहार के सीतामढ़ी से रवाना हुआ, आठ अक्तूबर को अयोध्या पहुँचते-पहुँचते हिंदू जन समुदाय में आक्रोश और सहानुभूति पैदा हुई।

मुख्य माँग यह थी कि मस्जिद का ताला खोलकर ज़मीन मंदिर निर्माण के लिए हिन्दुओं को दे दी जाए। इसके लिए साधु-संतों का राम जन्मभूमि न्यास बनाया गया। इसी दौरान बजरंग दल की भी स्थापना 8 अक्तूबर 1984 को अयोध्या में हुई। इसका राष्ट्रीय संयोजक विनय कटियार को बनाया गया था।

1986

एक फ़रवरी, 1986 को ज़िला न्यायाधीश केएम पांडेय ने महज़ एक दिन पहले यानी 31 जनवरी 1986, को दाख़िल की गई एक अपील पर सुनवाई करते हुए तकरीबन 37 साल से बंद पड़ी बाबरी मस्जिद का गेट खुलवा दिया था।

इसकी प्रतिक्रिया में मुस्लिम समुदाय ने मस्जिद की रक्षा के लिए मोहम्मद आज़म ख़ान और ज़फ़रयाब जिलानी की अगुआई में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन कर जवाबी आंदोलन चालू किया। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन भी इसी साल फरवरी में हुआ।

1989

इलाहाबाद में कुंभ मेले का आयोजन हुआ जहाँ बड़ी संख्या में साधु संत जमा हुए। विहिप ने संतों का सम्मेलन आयोजित किया। वहीं पर 9 नवंबर 1989 को राम मंदिर शिलान्यास की पहली तारीख़ तय की गई।

इसके बाद मई के महीने में 11 प्रांतों के साधुओं की हरिद्वार में मीटिंग हुई और उसमें मंदिर निर्माण के लिए चंदा जमा करने की बात हुई। भारतीय जनता पार्टी ने 11 जून 1989 को पालमपुर कार्यसमिति में प्रस्ताव पास किया कि अदालत इस मामले का फ़ैसला नहीं कर सकती और सरकार समझौते या संसद में क़ानून बनाकर राम जन्मस्थान हिंदुओं को सौंप दे।

उत्तर प्रदेश की कांग्रेस सरकार की एक याचिका पर इलाहबाद हाईकोर्ट ने 14 अगस्त को स्थगनादेश जारी किया कि मामले का फ़ैसला आने तक मस्जिद और सभी विवादित भूखंडों की वर्तमान स्थिति में कोई फेरबदल न किया जाए। लेकिन इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने यह कहकर 9 नवंबर को शिलान्यास की अनुमति दे दी कि मौक़े पर पैमाइश में वह भूखंड विवादित क्षेत्र से बाहर है।

1990 से 1992

इस साल बीजेपी ने राम मंदिर आंदोलन को खुलकर अपने हाथ में ले लिया. लालकृष्ण आडवाणी उस वक़्त बीजेपी अध्यक्ष थे. वीपी सिंह प्रधानमंत्री थे और 1990 की फरवरी में उन्होंने साधुओं की कमेटी बनाई और कहा कि 4 महीने में समस्या का समाधान करें।

इसमें देर हुई तो कार सेवा कमेटियों का गठन शुरू हो गया और अगस्त 1990 से अयोध्या में मंदिर के लिए पत्थर तराशने का काम शुरू हो गया, जो आज तक जारी है। 1990 के अंतिम चार महीनों में मंडल विरोध और मंदिर आंदोलन से पूरे देश का राजनीतिक माहौल गरमा गया।

आडवाणी देश भर में माहौल बनाने के लिए 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ मंदिर से रथ यात्रा पर निकले। बिहार में 23 अक्तूबर को आडवाणी को गिरफ़्तार करके रथयात्रा रोक दी गई।

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दूसरी तरफ़ मुलायम सरकार की तमाम पाबंदियों के बावजूद 30 अक्तूबर को लाखों कार सेवक अयोध्या पहुँचे। लाठी, गोली के बावजूद कुछ कार सेवक मस्जिद पर चढ़ गए। प्रशासन ने कार सेवकों पर गोली चलवा दी, जिसमें 16 करसेवक मारे गए।

मुलायम सिंह हिंदुओं में बेहद अलोकप्रिय हो गए और अगले विधानसभा चुनाव में उनकी बुरी पराजय हुई। नाराज़ बीजेपी ने केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया, फिर सरकार गिर गई और फिर 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढहा दी गयी। उस वक़्त राज्य में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे और केंद्र में नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे।

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