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यूपी में कौन बड़ा: राजनेता या अधिकारी? यहां छिड़ा अब ये...
पर इस सारे प्रकरण से एक बात तो पूरी तरह से साफ हो गयी है कि सरकार में सब कुछ ठीक ठाक नही चल रहा है। संगठन और सरकार में खींचतान जरूर है। पार्टी और सरकार के अंदर एक बार फिर से गुटबाजी का दौर शुरू हो गया है। गुटबाजी के कारण ही एक दूसरे गुट को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है।
श्रीधर अग्निहोत्री
हाल ही में यूपी विधानसभा में जो कुछ हुआ राजनीति में उसकी कल्पना कभी नहीं की गई थी कि सत्तापक्ष का विधायक ही अपनी सरकार के खिलाफ उठ खड़ा हो, और फिर समर्थन में उसके साथ एक दो नही बल्कि पचास से अधिक विधायक खडे हो जाए। यह सब कुछ जो हुआ उसे किसी तरह से भाजपा नेतृत्व ने फिलहाल तो संभाल लिया लेकिन राजनीति में एक बार फिर इस बात की बहस शुरू हो गयी कि जनप्रतिनिधि बड़ा है नौकरशाह? क्योंकि इस सारे प्रकरण के पीछे य
सब तथ्य छिपे हुए हैं। प्रदेश में अधिकारी जनप्रतिनिधयों की सुन नहीं रहे और जनप्रतिनिधियों को लग रहा है कि हमारी अपनी सरकार तो जनसमस्याओं की अधिकारी कैसे अन्देखी कर सकते हैं।
सरकार गठन के बाद अबतक दबी रही विधायकों की आवाज
प्रदेश में 19 मार्च 2017 को बहुमत वाली मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद एक साल तो सब कुछ ठीक ठाक रहा। कार्यकर्ताओं और विधायकों को इस बात का पूरा अहसास रहा कि उनकी पार्टी की सरकार चल रही है पर धीरे- धीरे अधिकारियों ने विधायकों की उपेक्षा शुरू कर दी और इस बात की चर्चा वह आपस में गुपचुप करते रहे परेपार्टी नेतृत्व के समक्ष अपनी जुबान खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थें लेकिन जब हद हो गयी तो यह गुस्सा आखिरकार फूट पड़ा।
यूपी में कौन बड़ा: राजनेता या अधिकारी? यहां छिड़ा अब ये...
विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन ही जब गाजियाबाद की लोनी विधानसभा क्षेत्र से पहली बार विधायक बने नंद किशोर गुर्जर ने सदन में अपनी बात रखनी चाही तो उन्हे रोका गया। क्योंकि संगठन की तरफ से उनको एक सप्ताह पहले ही अनुशासनहीनता को लेकर नोटिस जारी किया या । जब बार बार आग्रह के बाद भी उन्हे बोलने का मौका नहीं मिला तो अन्य भाजपा विधायक उनके समर्थन में आ गए और शोर शराबा करने लगे।
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यहीं नहीं, नेता प्रतिपक्ष रामगोबिन्द चौधरी ने भी उनके समर्थन में अपनी बात रखी। सरकार के लिए पहली बार इतनी असहज स्थिति पैदा हो गयी। विपक्षी दलों ने भी हाथ आए इस मौके का खूब लाभ उठाया और भाजपा विधायकों का पूरा साथ दिया। इसके बाद सदन में ही विधायकों का हस्ताक्षर अभियान शुरू हुआ जिसमें लगभग 100-150 विधायकों के हस्ताक्ष थे। कहा गया कि इस पत्र में 81 विधायक तो केवल भाजपा के ही थें बाकी विपक्ष के विधायक शामिल थें।
यूपी में कौन बड़ा: राजनेता या अधिकारी? यहां छिड़ा अब ये...
जो भी हुआ सरकार के लिए चेतावनी से कम नही है
विधानसभा में जो कुछ भी हुआ वह सरकार के लिए किसी चेतावनी से कम नही था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राजधानी के बाहर होने के कारण बात नहीं बन पा रही थी। अखिरकार जब देर शाम मुख्यंत्री वापस लखनऊ लौटे तब प्रदेश नेतृत्व के साथ बैठकर चर्चा हुई। इस दौरान प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह के भी लखनऊ से बाहर होने के कारण यहां सरकार की तरफ से योगी आदित्यनाथ के साथ उपमुख्यमंत्री डा दिनेश शर्मा और संगठन की तरफ से महामंत्री संगठन सुनील बंसल ने मोर्चा संभाला। बैठक में तय हुआ कि उन सभी विधायकों से बात की जाएगी जिनकी अधिकारियों से शिकायत है।
अधिकारी खुद कर रहे हैं रिश्वतखोरी पत्नियां चला रही हैं एनजीओ
अगले दिन जब विधानसभा में ही पार्टी नेतृत्व ने अपने नाराज विधायक नंद किशोर गुर्जर को बोलने का अवसर दिया तो गुर्जर ने अपनी पूरी दांस्ता सदन के समक्ष बयां की। भाजपा विधायक नंद किशोर गुर्जर ने प्रदेश में नौकरशाही की कार्यशैली और उसके रवैये को लेकर विधानसभा में जमकर अपनी भड़ास निकाली। उन्होंने कहा कि अधिकारी नेताओं को बेइमान समझते हैं जबकि अधिकारी खुद रिश्वतखोरी कर रहे हैं। यहां तक कि विधायक निधि में भी कमीशन लिया जा रहा है।
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यूपी में कौन बड़ा: राजनेता या अधिकारी? यहां छिड़ा अब ये...
गुर्जर ने कहा कि नेताओं की सम्पत्ति की जांच तो कराई जाती है पर इन अधिकारियों की भी सम्पत्ति की जांच कराई जानी चाहिए। गुर्जर ने कहा कि मुख्यमंत्री की ईमानदारी के बावजूद पूरे प्रदेश में अधिकारियों की कमीशनखोरी चल रही है। ये बात अलग है कि पिछली सपा बसपा सरकारों से योगी सरकार में कमीशनाजी का प्रतिशत थोड़ा कम जरूर हुआ है। इसी बात का विरोध करने पर मेरे खिलाफ अधिकारी लामबंद हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि पिछली सरकार में जितना उत्पीड़न नहीं हुआ उतना उत्पीड़न मेरा अपनी ही सरकार में किया जा रहा है।
गुर्जर की बात से सरकार हुई असहज
गुर्जर के इस बयान के बाद सरकार को आत्ममंथन करने के लिए मजबूर कर दिया। अगले दिन मुख्मयंत्री योगी आदित्यनाथ ने नाराज विधायकों को अपने कार्यालय बुलाकर उनसे वार्ता कर उनका दर्द जाना। इस दौरान करीब 60 विधायकों ने मुख्यमंत्री को जब प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी के हाल बताए तो उन्हे भी आश्चर्य हुआ। विधायकों ने बताया कि उनकी स्थिति जनता के बीच बेहद असहज हो गयी है। इसपर मुख्यमंत्री येगी आदित्यनाथ ने इन विधायकों को आश्वस्त किया कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा।
यूपी में कौन बड़ा: राजनेता या अधिकारी? यहां छिड़ा अब ये...
सरकार में सबकुछ ठीक नहीं
पर इस सारे प्रकरण से एक बात तो पूरी तरह से साफ हो गयी है कि सरकार में सब कुछ ठीक ठाक नही चल रहा है। संगठन और सरकार में खींचतान जरूर है। पार्टी और सरकार के अंदर एक बार फिर से गुटबाजी का दौर शुरू हो गया है। गुटबाजी के कारण ही एक दूसरे गुट को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है।
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जनता के बल पर विधायक, हमारे दम पर मुख्यमंत्री
बलिया से भाजपा के विधायक सुरेन्द्र सिंह ने कहा कि वह भी मुख्यमंत्री के साथ हुई बैठक में शामिल थें। मुख्यमंत्री के सामने हमने अपना दर्द रखा और कहा कि जनता की ताकत से हम विधायक बने हैं और विधायकों के बल पर ही आप प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं। इसलिए जनता के काम में किसी तरह की लापरवाही नहीं होनी चाहिए।
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सत्तापक्ष का यह हाल तो विपक्ष के हालात पर कल्पना
नेता प्रतिपक्ष रामगोबिन्द चौधरी ने इस सारे प्रकरण पर कहा कि जब सत्ता पक्ष के विधायकों का यह आलम है तो फिर विपक्ष के विधायकों के हालात की कल्पना की जा सकती है। उन्होंने कहा कि सरकार की यह हालत हो गयी है कि सदन की कार्यवाही भी तीन दिन के अंदर समाप्त कर दी क्योंकि उन्हे अपने पर भरोसा नहीं है कि सबकुछ सरकार में ठीकठाक चल रहा है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कि ये सरकार के अंदर की खींचतान का नतीजा है। भ्रष्टाचार, महिलाओं की सुरक्षा समेत तमाम महत्वपूर्ण मुद्दों पर योगी सरकार फेल हुई है। उन्होंने कहा कि ऐसे माहौल मे नैतिक आधार पर योगी आदित्यनाथ को इस्तीफा दे देना चाहिए।