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कारसेवकों का मुकदमा वापस लेगी सरकार! हिन्दू महासभा ने पीएम को लिखी चिट्ठी
चिट्ठी में स्वामी चक्रपाणि ने लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद जिसमें साफ-साफ कहा गया है कि सबूतों के आधार पर पांचों जजों की पीठ ने पूर्ण सहमति से यह फैसला दिया है, कि वह जमीन श्री राम लला की है। वहां मंदिर तोड़कर एक ढांचा तैयार किया गया था। इसके बाद अब 1992 में रामसेवकों पर दर्ज किए गए मुकदमे वापस लिए जाने चाहिए।
नई दिल्ली: अयोध्या मामला का फैसला आने के बाद अब अखिल भारतीय हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि चाहते हैं कि इस मामले से सम्बंधित कारसेवकों पर चल रहे मुक़दमे भी खत्म हो जाय। जिसके संबंध में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी चिट्ठी लिखकर 1992 में कार सेवकों पर दर्ज किए गए मुकदमे वापस लेने की मांग की है।
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फैसले से यह स्पष्ट है कि मंदिर तोड़कर एक ढांचा तैयार किया गया था
बता दें कि चिट्ठी में स्वामी चक्रपाणि ने लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद जिसमें साफ-साफ कहा गया है कि सबूतों के आधार पर पांचों जजों की पीठ ने पूर्ण सहमति से यह फैसला दिया है, कि वह जमीन श्री राम लला की है। वहां मंदिर तोड़कर एक ढांचा तैयार किया गया था। इसके बाद अब 1992 में रामसेवकों पर दर्ज किए गए मुकदमे वापस लिए जाने चाहिए।
चिठ्ठी में स्वामी चक्रपाणि ने लिखा है कि अब स्पष्ट हो गया है कि वहां श्री राम लला निर्विवाद मंदिर है । इसलिए उसके ऊपर बना गुंबद मंदिर का शिखर था ना कि किसी बाबरी मस्जिद का शिखर था । इसलिए अब कार सेवकों और राम भक्तों के ऊपर से मुकदमे समाप्त किए जाए।
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कारसेवकों को शहीद का दर्जा दिया जाए
चिट्ठी में आगे स्वामी चक्रपाणि लिखते हैं कि वर्ष 1992 या अन्य कार सेवा या अन्य परिस्थितियों में कारसेवा के दौरान मारे गए, श्री राम भक्तों और कारसेवकों को शहीद का दर्जा दिया जाए। चक्रपाणि ने खत में यह भी लिखा है कि कार सेवकों की सूची पट्टिका तैयार कर अयोध्या में लगाई जाए।
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आर्थिक रूप से कमजोर धार्मिक सेनानियों को मासिक वेतन दिया जाय
शहीद हुए कार सेवकों के परिवार को आर्थिक सहयोग एवं नौकरी दी जाए। स्वामी चक्रपाणि ने खत में लिखा है कि श्री राम मंदिर निर्माण हेतु कार सेवा करने वाले जीवित सभी श्रीराम भक्तों या कारसेवकों को स्वतंत्रता सेनानी के तर्ज पर धार्मिक सेनानी घोषित किया जाय और आर्थिक रूप से कमजोर धार्मिक सेनानियों को मासिक वेतन या अन्य सरकारी सुविधाएं भी दी जाए।