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सांसद, महंत और फिर बन गए सीएम योगी, ऐसे बने हिंदुत्व के 'पोस्टर ब्वॉय'
यूपी सरकार के चार वर्ष पूरे होने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल की समीक्षा की जा रही है। बीजेपी सरकार की उपलब्धियों को गिना रही है। लेकिन इस बात की भी समीक्षा होनी चाहिए कि योगी सरकार में प्रदेश की राजनीति में क्या परिवर्तन हुए।
राघवेंद्र प्रसाद मिश्र (Raghvendra Prasad Mishra)
लखनऊ। यूपी सरकार के चार वर्ष पूरे होने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल की समीक्षा की जा रही है। बीजेपी सरकार की उपलब्धियों को गिना रही है। लेकिन इस बात की भी समीक्षा होनी चाहिए कि योगी सरकार में प्रदेश की राजनीति में क्या परिवर्तन हुए। महंत योगी आदित्यनाथ से सीएम योगी तक के सफर और उनके हिंदुत्व की छवि पर इसका कया पड़ा असर इसकी भी समीक्षा होनी चाहिए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हिंदुत्व छवि और बेबाक राय उन्हें अन्य मुख्यमंत्रियों से अलग बनाती है। राजनीति में अवसर के हिसाब से नेताओं के बयान बदलते रहते है। दल कोई भी हो सबके नेता से लेकर मुखिया तक मौके के हिसाब टोपी पहनने में गुरेज नहीं किए। मगर योगी आदित्यनाथ टोपी पहनने से इनकार करके विपक्ष के आलोचना का केंद्र भी बन चुके हैं।
हिंदुत्व से बनी पहचान
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की राजनीति का केंद्र हमेशा से हिंदुत्व रहा है। यही उनकी पहचान भी है। हिंदुत्व के मुद्दे पर उन्होंने हर बार चुनाव लड़ा और लगातार चुनाव जीतते भी आए। सांसद रहते हुए उन्होंने पूर्वांचल में हिंदुत्व के लिए कई लड़ाइयां भी लड़ीं। इसके लिए उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी का गठन किया और जहां कहीं से भी हिंदुत्व के प्रताड़ित होने की सूचना मिली हिंदू युवा वाहिनी हिंदुओं के साथ खड़ी नजर आई। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उनका हिंदुत्व का वही चेहरा आज भी कायम है। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने मंच से कहा था कि वह उस तरह के हिंदू नहीं हैं, जो घर पर जनेऊ और बाहर निकलने टोपी पहनते है। उन्होंने कहा था कि मैं हिंदू हूं और हिंदू होने पर मुझे गर्व है। इस बयान के बाद वह विपक्ष के निशाने पर आ गए थे। विपक्षी दलों का कहना तो बतौर मुख्यमंत्री उन्हें ऐसा बयान नहीं देना चाहिए। लेकिन मुख्यमंत्री ने अपने बयान पर कोई सफाई नहीं दी।
राजनीति के भी बने पोस्टर ब्वॉय
मुख्यमंत्री बनने के बाद हिंदुत्व का कायम रखना मुख्यमंत्री के लिए किसी चुनौती से कम नहीं रहा। बावजूद इसके उन्होंने कोई समझौता नहीं किया। शायद यही कारण है कि प्रदेश की नहीं देशभर में लोकप्रिय मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ को देखा जाता है। फायर ब्रांड नेता की छवि के चलते वह न सिर्फ हिंदुत्व के पोस्टर ब्वॉय के रूप में जाने जाते है, बल्कि अब राजनीति के भी पोस्टर ब्वॉय बन गए हैं। बीजेपी के अंदर उनकी अलग छवि हमेशा से रही है। तभी तो उत्तर प्रदेश में बीजेपी जब अपने अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी, योगी आदित्यनाथ उस दौर में भी चुनाव जीतते रहे। चार वर्षों में उन्होंने बेहतर शासन चलाने का प्रयास किया। अधिकारियों को नेताओं के दबाव से मुक्त कराया, जिसके चलते उन्हें अपने ही विधायकों का विरोध झेलना पड़ा।
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दूसरे राज्यों ने भी की नकल
सिक्के के दो पहलू होते है। ठीक इसी तरह सीएम योगी आदित्यनाथ के चार वर्ष के कार्यकाल को भी देखा जा रहा है। विपक्ष को जहां योगी आदित्यनाथ का कार्यकाल नाकामियों भरा नजर आ रहा है। वहीं दूसरा पहलू यह है कि सीएम योगी ने शासन करने का तरीका ही बदल दिया है। प्रदेश में जहां हर मौके पर टोपी पहनने की राजनीति में कमी आई है, वहीं उन्होंने लव जिहाद के खिलाफ कानून लाकर शादी के लिए धर्मपरिवर्तन कराने वालों को कानूनों के दायरे में ले आया है। योगी सरकार के कड़े और बड़े फैसलों को देखते हुए पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश और उत्तराखंड भी हिंदुत्व की राह पर चल पड़े हैं।
झेलनी पड़ी आलोचना
अयोध्या में हिंदुओं के पक्ष में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मंदिर निर्माण का कार्य तेजी से शुरू हो गया है। ऐसा तब है जब प्रदेश में सीएम योगी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार है। मुख्यमंत्री रहते हुए योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या के विकास को लेकर न सिर्फ कई बड़े फैसले लिए बल्कि कई बार अयोध्या का दौरा भी किया। उनके इस दौरे पर भी विपक्ष को आपत्ति हुई। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ किसी की बातों की परवाह न करते हुए अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण पर अपनी निगाह बनाए हुए है। इतना ही नहीं पर्व व त्योहार पर गोरखनाथ के महंत की भूमिका निभाते हुए वहां भी पूजा—पाठ के कार्यक्रम में शामिल होते रहते है।
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