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पश्चिमी यूपी से तय होता है सत्ता का रास्ता, वोटों को तलाशने योगी-प्रियंका आज दौरे पर
इस पूरे क्षेत्र में ज्यादातर सैनी, मौर्य, कुशवाहा, लोधी, गुर्जर, जाट, कश्यप जातियां की संख्या अधिक आदि हैं। इसके अलावा दलितों में पासी, बाल्मीकि और खटिक जाति का भी अच्छा प्रभाव है।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: पश्चिमी उत्तर प्रदेश की फिजा इस बार कुछ बदली बदली नजर आ रही है। किसान आंदोलन के चलते राजनीतिक दृष्टिकोण से विपक्षी दल इसका लाभ उठाने की तैयारी में हैं। कांग्रेस के अलावा कभी पश्चिमी उप्र रालोद का एक गढ हुआ करता था पर पिछले तीन चुनावों में बेहद कमजोर हुए सपा कांग्रेस और रालोद को किसान आंदोलन से एक नई ताकत मिलती नजर आ रही है। वहीं सत्ताधारी भाजपा इस क्षेत्र में अपने वोट बैंक को सहेजने की कवायद में जुटी हुई हैं। रालोद नेता जयंत चौधरी यहाँ अपना डेरा लगातार जमाये हुए हैं। इसके अलावा आज जहां सीएम योगी आदित्यनाथ का मुरादाबाद दौरा करेंगे वहीं कांग्रेस महासचिव बिजनौर दौरे पर रहेंगी। जबकि बसपा सुप्रीमों मायावती भी जल्द ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश पहुंचने वाली हैं।
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इस पूरे क्षेत्र में ज्यादातर सैनी, मौर्य, कुशवाहा, लोधी, गुर्जर, जाट, कश्यप जातियां की संख्या अधिक आदि हैं। इसके अलावा दलितों में पासी, बाल्मीकि और खटिक जाति का भी अच्छा प्रभाव है। पश्चिमी यूपी में की तस्वीर देखे तो पता चलता है कि यह क्षेत्र में जाट बाहुल्य क्षेत्र है जिसमें बागपत में 14 प्रतिशत, मुजफ्फरनगर में 12 प्रतिशत, मेरठ में 13 प्रतिशत, हापुड में 11 प्रतिशत, बिजनौर में 8 प्रतिशत तक जाट है। वैसे यहां 149 सीटों पर जाट, जाटव, गुर्जर व मुस्लिम के अलावा यादव, कुर्मी व लोध मतदाता अधिक प्रभावी है।
पूरा क्षेत्र जाट बाहुल्य क्षेत्र कहा जाता है
पूरा क्षेत्र जाट बाहुल्य क्षेत्र कहा जाता है लेकिन इनमें से कई जिले ब्राम्हण और पिछड़ी जाति पर आधारित है। इस क्षेत्र का अधिकतर लाभ जाट नेता चै अजित सिंह उठाते रहे है लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से यहां का माहौल भाजपा के पक्ष में रहा जिसे वह अभी भी कायम रखना चाहती है। जहां तक दलितों की बात है तो इन सीटों पर भाजपा के लिए बसपा बड़ी टक्कर देने की तैयारी में है। जबकि गाजियाबाद मथुरा और आगरा ब्राम्हणों के प्रभाव वाला क्षेत्र कहा जाता है।
दोनों वर्गो को जमकर टिकट देने की तैयारी में है बसपा
2012 के चुनाव में बसपा के सत्ता से बाहर होने के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा के एक भी सीट न जीतने के बाद दलितों ने पिछले लोकसभा चुनाव में जरूर बसपा को समर्थन किया। पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जिस तरह ब्राम्हण मतदाता बसपा से छिटका है। उसे ध्यान में रखकर इसबार बसपा ने यहां दलित मुस्लिम गठजोड़ का फार्मूला निकालकर इन दोनों वर्गो को जमकर टिकट देने की तैयारी में है। साथ ही रालोद के जाट मुस्लिम समीकरण की भी काट का भी पूरा ख्याल रखने की रणनीति बनाने को तैयार है।
यहां मुसलमानां की संख्या करीब 20 प्रतिशत है
जहां तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जातिगत आंकड़ों की बात है यहां मुसलमानां की संख्या करीब 20 प्रतिशत है। पश्चिमी यूपी में एक दर्जन सीटे ऐसी है जहां मुसलमानों की आबादी 25 से 51 प्रतिशत तक है। मुसलमानों में कोई अनुसूचित जाति नहीं होती इसलिए इस वर्ग में कोई मुस्लिम जाति शामिल नहीं है। पिछड़ा वर्ग की जो सूची है। उसमें नाई अंसारी दर्जी रंगरेज, मिरासी, भिस्ती, कुंजडा, धुनिया फकीर घोसी डफाली धोबी और मलिहार शामिल हैं।
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लेकिन साक्षरता का प्रतिशत कम होने के कारण यह लोग आरक्षण का भी लाभ नहीं उठा पाते। हिन्दू वोटों में ब्राम्हण, पंजाजी, वैश्य, पाल, बघेल, यादव, कोरी, कश्यप,जाट, गुर्जर जातियां है। इस बेल्ट में 21 प्रतिशत के आसपास दलित है। 13 प्रतिशत यादव, 5 प्रतिशत कुर्मी 17 प्रतिशत जाटव, 15 प्रतिशत ब्राम्हण,13 प्रतिशत ठाकुर 19,3 प्रतिशत मुसलमान तथा 19, 7 प्रतिशत अन्य जातियां है।
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