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1943 Bengal Akal History: 1943 का बंगाल अकाल-30 लाख लोगों की मौत

1943 Bengal Akal Wiki in Hindi: 1943 के बंगाल अकाल ने बंगाल की सामाजिक संरचना को तहस-नहस कर दिया। गरीबी और भुखमरी ने समाज में असमानता को बढ़ा दिया।

AKshita Pidiha
Written By AKshita Pidiha
Published on: 4 Dec 2024 4:13 PM IST
1943 Bengal Akal Ka Itihas Wikipedia
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1943 Bengal Akal Ka Itihas Wikipedia 

1943 Bengal Akal Ka Itihas: 1943 का बंगाल अकाल, आधुनिक भारतीय इतिहास की सबसे भयावह त्रासदियों में से एक है। लगभग 30 लाख लोगों की मौत और अनगिनत लोगों की तबाही का कारण बने इस अकाल ने न केवल बंगाल, बल्कि पूरे देश के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक ताने-बाने को झकझोर कर रख दिया। यह अकाल मानवीय उपेक्षा और औपनिवेशिक नीतियों के साथ प्राकृतिक आपदाओं का संयोजन था। इस घटना ने दिखाया कि कैसे असंवेदनशील नीतियां लाखों लोगों के जीवन को संकट में डाल सकती हैं।यह अकाल केवल एक मानवीय त्रासदी नहीं था, बल्कि यह एक ऐसी घटना थी, जिसने औपनिवेशिक शासन की निर्ममता और नीतिगत विफलताओं को उजागर किया। इस त्रासदी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को बल दिया, क्योंकि जनता ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ और अधिक मुखर होकर आवाज उठाई। महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस और अन्य नेताओं ने इस आपदा को औपनिवेशिक शासन के अंत की आवश्यकता के रूप में देखा।

अकाल के मूल कारण (1943 Bengal Akal Causes in Hindi)

1. प्राकृतिक आपदाएं और फसल क्षति

1942 में बंगाल में अत्यधिक वर्षा और चक्रवात के कारण बड़ी मात्रा में धान की फसलें नष्ट हो गईं। इसके परिणामस्वरूप अनाज की उपलब्धता में भारी कमी हुई।


कई क्षेत्रों में जमीनें बंजर हो गईं, जिससे किसानों के पास जीविका का कोई साधन नहीं बचा।

2. औपनिवेशिक शासन की नीतियां

ब्रिटिश साम्राज्य की "विनाशकारी प्राथमिकताएं" इस अकाल का प्रमुख कारण थीं। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन ने भारतीय अनाज को सैनिकों और युद्ध के अन्य मोर्चों के लिए आरक्षित कर लिया।


इससे स्थानीय बाजारों में अनाज का भंडार खत्म हो गया।

3. जापान का बर्मा पर कब्जा

जापान ने 1942 में बर्मा पर कब्जा कर लिया, जो बंगाल के लिए चावल का प्रमुख आपूर्तिकर्ता था।


बर्मा से आने वाले चावल की आपूर्ति बंद हो गई, जिससे खाद्य संकट और गहरा गया।

4. कृत्रिम मुद्रास्फीति और जमाखोरी

ब्रिटिश सरकार की युद्धकालीन मुद्रास्फीति नीतियों ने वस्तुओं की कीमतें बढ़ा दीं। अनाज की जमाखोरी ने स्थिति को और विकट बना दिया। अनाज के दाम गरीब जनता की पहुंच से बाहर हो गए।


आपदा के बाद के दशकों में, यह तर्क दिया गया है, विशेष रूप से नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन द्वारा, कि अकाल भोजन की उपलब्धता में बड़ी गिरावट के कारण नहीं था, बल्कि खाद्य आपूर्ति को समान रूप से वितरित करने में विफलता के कारण था। हाल के वर्षों में, अतिरिक्त शोध ने ब्रिटिश सरकार की भूमिका और विशेष रूप से प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल की नीतियों पर ध्यान केंद्रित किया है , जो अकाल का कारण या उसे और बढ़ा रही हैं।

भयावह मानवीय त्रासदी

अकाल के दौरान बंगाल की जनता ने अभूतपूर्व पीड़ा का सामना किया। लोग भोजन की तलाश में अपने घरों और गांवों से निकलकर शहरों की ओर भागने लगे। लेकिन वहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी।


कई लोग घास, जंगली पौधे और जानवरों का मांस खाने को मजबूर हो गए।कुपोषण और इससे जुड़ी बीमारियों ने लाखों लोगों की जान ले ली। हैजा, मलेरिया और डायरिया ने अकाल से बचने की कोशिश कर रहे लोगों को अपनी चपेट में ले लिया।परिवारों के बिखरने और बच्चों के अनाथ हो जाने की घटनाएं आम हो गईं। महिलाएं और बच्चे विशेष रूप से असुरक्षित थे।

सरकार की उदासीनता

ब्रिटिश शासन ने इस त्रासदी के प्रति असंवेदनशीलता दिखाई। चर्चिल प्रशासन ने बंगाल के लिए सहायता भेजने की अपीलों को नजरअंदाज कर दिया। चर्चिल ने तर्क दिया कि "भारतीय खुद अपनी संख्या के लिए जिम्मेदार हैं।" ब्रिटिश सरकार ने अकाल के दौरान खाद्यान्न निर्यात जारी रखा, जिससे संकट और गहरा गया।

सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव

1943 के बंगाल अकाल ने बंगाल की सामाजिक संरचना को तहस-नहस कर दिया। गरीबी और भुखमरी ने समाज में असमानता को बढ़ा दिया। इस त्रासदी ने बिप्लव साहा, महाश्वेता देवी और सत्यजित राय जैसे कलाकारों को प्रेरित किया।


सत्यजित राय की फिल्म अशनि संकेत इस अकाल का सजीव चित्रण है। लोगों ने इसे प्राकृतिक आपदा के साथ-साथ ईश्वर के क्रोध के रूप में भी देखा।

राजनीतिक प्रभाव

इस अकाल ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा दी।इस त्रासदी ने ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों की क्रूरता को उजागर किया।महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस और अन्य नेताओं ने इसे ब्रिटिश शासन के अंत की दिशा में एक महत्वपूर्ण घटना माना।

मधुश्री मुखर्जी की किताब ‘चर्चिल्स सीक्रेट वार’ में अब तक उपयोग में नहीं लाए दस्तावेजों के हवाले से कहा गया है कि चर्चिल का यह दावा गलत था कि युद्ध की वजह से खाद्य परिवहन के लिए जहाज मुहैया नहीं कराए जा सकते थे। बल्कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भूले बिसरे दस्तावेजों और निजी संग्रहालयों के विश्लेषण दिखाते हैं कि ऑस्ट्रेलिया से अनाजों से भरे जहाज भारत के करीब से भूमध्य क्षेत्र की ओर जा रहे थे जहां खाद्यान्न का विशाल भंडार तैयार हो रहा था। जिसे भारत में पहुंचाया जा सकता था।


साथ ही चर्चिल ने अन्य साथियों को भी सहायता करने से इनकार कर दिया। बंगाल में राहत भेजने का मसला बार बार उठाया गया और उन्होंने तथा उनके निकट सहयोगियों ने हर प्रयास को नाकाम कर दिया।अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने सहायता भेजने की पेशकश की। लेकिन युद्धकालीन कैबिनेट जहाजों को भेजने के लिए तैयार नहीं थी और जब अमेरिका ने अपने जहाज पर अनाज भेजने की बात की तो ब्रिटिश अधिकारियों ने उस पेशकश को आगे नहीं बढ़ाया।”

मानवनिर्मित होलोकास्ट

आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. गिडोन पोल्या का मानना है कि बंगाल का अकाल ‘मानवनिर्मित होलोकास्ट’ है । क्योंकि इसके लिए सीधे तौर पर तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल की नीतियां जिम्मेदार थीं।1942 में बंगाल में अनाज की पैदावार बहुत अच्छी हुई थी। लेकिन अंग्रेजों ने व्यावसायिक मुनाफे के लिए भारी मात्रा में अनाज भारत से ब्रिटेन भेजना शुरू कर दिया। इसकी वजह से उन इलाकों में अन्न की भारी कमी पैदा हो गई।चर्चिल इस अकाल को बहुत आसानी से टाल सकते थे। महज कुछ जहाजों में अनाज भेजकर भारतीयों की बहुत बड़ी मदद की जा सकती थी। लेकिन ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने किसी की नहीं सुनी। न अपने दो वॉयसरायों की और न ही अपने भारत सचिव की। यहां तक कि चर्चिल ने अमेरिकी राष्ट्रपति तक की अपील को ठुकरा दिया।


1943 का बंगाल अकाल केवल एक भूखमरी नहीं थी; यह औपनिवेशिक शासन की नीतिगत विफलताओं और मानवता के प्रति उपेक्षा का प्रतीक था। इस त्रासदी ने सिखाया कि नीतिगत असफलताएं और प्रशासनिक लापरवाही मानव जीवन पर कैसे विनाशकारी प्रभाव डाल सकती हैं।

1943 का बंगाल अकाल हमें यह सिखाता है कि नीतिगत असफलताएं और प्रशासनिक लापरवाही कितनी विनाशकारी हो सकती हैं। यह त्रासदी आज भी भूख, गरीबी और असमानता के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा देती है। यह घटना इतिहास में एक महत्वपूर्ण चेतावनी के रूप में दर्ज है कि मानवीयता और करुणा के बिना शासन और नीतियां किस हद तक घातक हो सकती हैं।



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