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एक वायरस ने बदल दी दुनिया, जिंदगी ढूंढ रही जीने के बहाने
लॉकडाउन और क्वारंटीन हमारी खुशहाल जिंदगी में ग्रहण की तरह आया जिसने एक झटके में सब कुछ बदल दिया। इन तेजी से बदले हालात को स्वीकार कर पाना आसान नहीं था। लेकिन बदलते परिवेश ने सामाजिक दूरी के साथ जीने का एक नया पाठ पढ़ाया है। और जिंदा रहने के लिए खुश रहना पहली और आखिरी शर्त है।
पूरी दुनिया का स्वरूप एक वायरस ने बदल कर रख दिया है। हर तरह अलग नजारा दिखाई देता है। संकट का दौर है लेकिन इसमें भी जीवन के विभिन्न रंग दिखाई देते हैं। दुनिया की रफ्तार थम जरूर गई है लेकिन ज़िंदगी तो चलती ही जा रही है। अपने ही रंग और ढंग में जहां थाईलैंड में बौद्ध भिक्षु मास्क और फेस शील्ड लगा कर अपनी प्रार्थना जारी रखे हुये हैं वहीं लंदन मैराथन रद होने के बावजूद एक महिला अपने घर ले लॉन में ही मैराथन दौड़ लगाती दिखती हैं।
अमेरिका के मिशिगन में लोगों को खुश करने के लिए भेष बना कर कुछ लोग परेड निकलते हैं तो चेक रिपब्लिक की राजधानी प्राग में एक ड्राइव-इन फेस्टिवल आयोजित किया जाता है जहां लोग अपनी कर में बैठ कर कलाकारों के करतबों का आनंद उठाते दिखते हैं।
लिवरपूल, ब्रिटेन में लॉकडाउन के बीच लोग सड़क पर ही दूरी बना कर बिंगो गेम का आनंद उठाते हैं। वहीं इन्डोनेशिया में मास्क पहन ही एक जोड़ा विवाह की रस्में पूरी करता है।
निकारागुआ में खेल के आयोजन हो रहे हैं लेकिन सख्त सोशल डिस्टेन्सिंग के साथ। एक बॉक्सिंग मैच में दर्शक दूरी बना कर बैठे हैं।
जिंदगी की तलाश
भारत में तो कोरोना वायरस की ‘संहारक’ शक्ल वाली मूर्ति भी बना दी गई है। ज़िंदगी और सेहत की फिक्र में अहमदाबाद के एक घर में सैनेटाइजेशन हो रहा है तो दिल्ली के एक मोहल्ले में मोबाइल कोरोना टेस्टिंग वैन घूमती दिखती है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि कोरोना वायरस ने हमारी आदतों, परंपराओं और सामाजिक शिष्टाचार के तौर तरीकों को बदल दिया है।
लॉकडाउन और क्वारंटीन हमारी खुशहाल जिंदगी में ग्रहण की तरह आया जिसने एक झटके में सब कुछ बदल दिया। इन तेजी से बदले हालात को स्वीकार कर पाना आसान नहीं था। लेकिन बदलते परिवेश ने सामाजिक दूरी के साथ जीने का एक नया पाठ पढ़ाया है। और जिंदा रहने के लिए खुश रहना पहली और आखिरी शर्त है।