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Afganistan : अफगानिस्तान में डूबे भारत के इन्वेस्टमेंट प्रोजेक्टस

Afganistan : पिछले 20 सालों में भारत ने अफगानिस्तान में 23 हज़ार करोड़ का बड़ा निवेश किया है।लेकिन अफगानिस्तान अब पूर्ण रूप से तालिबान के कब्जे में आ चुका है।

Vidushi Mishra
Published on: 16 Aug 2021 3:26 PM IST
Taliban Afghan Kandahar
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अफगानिस्तान बनाम तालिबान (फोटो- सोशल मीडिया)

Afganistan : अफगानिस्तान अब पूर्ण रूप से तालिबान के कब्जे में आ चुका है।कल तालिबान प्रमुख अपने लड़ाकों साथ राष्ट्रपति भवन में पहुंचे।जिसके बाद वह की राजनीतिक पार्टियां अब तालिबान के आक़ाओं से वार्ता स्थपित करने को तैयार हो गयी हैं। अफगानिस्तान तेज़ी से हालात बिगड़ रहे हैं। कुछ दिन पहले अफगानिस्तान के वित्त मंत्री ने देश छोड़ दिया था।

कल की खबरों से ज्ञात है कि अब अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने भी देश छोड़ दिया है । जिस्क्स बाद अमेरिकी और यूएन ने चिंता व्यक्त की है।इस बीच तालिबान ने पूरे देश में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है।

तालिबान ने पिछले कुछ सप्ताह में कई रणनीतिक जिलों में नियंत्रण हासिल किया है, जिनमें विशेष रूप से ईरान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान की सीमाओं से लगे इलाके हैं।इस बीच वहां राजनयिक स्तर पर भारत के लिए भी हालात ठीक नहीं है। मौजूदा हालात में भारत को यहां अपनी कोई भूमिका नहीं दिख रही है।

हम जानते हैं कि तालिबान हमेशा से भारत विरोधी रहा है।अब अफगानिस्तान में भारत का प्रवेश मुश्किल ही है।पर हमने तालिबान के खात्मे के बाद पिछले करीब 20 सालों से अफगानिस्तान से रिश्ते बेहद मजबूत किये थे।।

पिछले 20 सालों में भारत ने अफगानिस्तान में 23 हज़ार करोड़ का बड़ा निवेश किया है।भारत ने यहां महत्वपूर्ण सड़कों, बांधों, बिजली लाइनों और सब-स्टेशनों, स्कूलों और अस्पतालों का निर्माण किया है। लेकिन भारत के इस निवेश का भविष्य क्या होगा इस पर गौर किया जाना जरूरी है।

फोटो- सोशल मीडिया

अफगानिस्तान में भारत के निवेश-

हर इलाके में हैं प्रोजेक्ट

साल 2011 के भारत-अफगानिस्तान रणनीतिक साझेदारी समझौते के तहत बुनियादी ढांचे और संस्थानों के पुनर्निर्माण में मदद करने के लिए सिफारिश की गई थी।लिहाज़ा कई क्षेत्रों में अफगानिस्तान में निवेश को बढ़ावा दिया गया।

दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार अब एक अरब डॉलर का है। नवंबर 2020 में जिनेवा में अफगानिस्तान सम्मेलन में बोलते हुए, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि अफगानिस्तान का कोई भी हिस्सा आज भारत के प्रोजेक्ट से अछूता नहीं है। उन्होंने कहा था कि यहां के 34 प्रांतों में 400 से अधिक प्रोजेक्ट्स हैं।

सलमान डैम

सलमान डैम अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में है।यहां भारत ने 42 मेगावाट का पावर प्रोजेक्ट लगाया गया है। कई मुश्किलों के बाद इस प्रोजेक्ट को पूरा किया गया। साल 2016 में इसका उद्घाटन किया गया। इसे अफगान-भारत मैत्री डैम के रूप में जाना जाता है।

जरांज-देलाराम हाईवे

ये दूसरा हाई-प्रोफाइल प्रोजेक्ट है, जिसे सीमा सड़क संगठन ने तैयार किया था।218 किलोमीटर लंबे इस राजमार्ग का ज़रांज इलाका ईरान के साथ अफगानिस्तान की सीमा के करीब स्थित है।150 मिलियन डॉलर का राजमार्ग खश रुड नदी के साथ जरंज के उत्तर-पूर्व में डेलाराम तक जाता है, जहां यह एक रिंग रोड से जुड़ता है, जो दक्षिण में कंधार, पूर्व में गजनी और काबुल, उत्तर में मजार-ए-शरीफ को जोड़ता है।

पाकिस्तान के रास्ते भारत का अफगानिस्तान के साथ व्यापार नहीं होता है, इसलिए इस हाइवे का नई दिल्ली के लिए काफी रणनीतिक महत्व का है।ये ईरान के चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान में एक वैकल्पिक रास्ता देता है।

संसद भवन

काबुल में अफगान संसद का निर्माण भारत ने 90 मिलियन डॉलर में किया था। इसे 2015 में खोला गया था।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भवन का उद्घाटन किया। इमारत के एक ब्लॉक का नाम पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखा गया है।

स्टोर पैलेस

साल 2016 में अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी और प्रधानमंत्री मोदी ने काबुल में स्टोर पैलेस का फिर से उद्घाटन किया।ये मूल रूप से 19वीं शताब्दी के आखिर में बनाया गया था। इस इमारत में 1965 तक अफगान विदेश मंत्री और मंत्रालय के कार्यालय थे। 2009 में, भारत, अफगानिस्तान और आगा खान डेवलपमेंट नेटवर्क ने इसकी बहाली के लिए एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए। आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर ने 2013 और 2016 के बीच परियोजना को पूरा किया।

स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रोजेक्ट

भारत ने एक बच्चों के अस्पताल का पुनर्निर्माण किया है, जिसे उसने 1972 में काबुल में बनाने में मदद की थी।इसका नाम 1985 में इंदिरा गांधी बाल स्वास्थ्य संस्थान रखा गया था। बाद में ये युद्ध के दौरान जर्जर हो गया था।भारत ने सीमावर्ती प्रांतों बदख्शां, बल्ख, कंधार, खोस्त, कुनार, नंगरहार, निमरूज, नूरिस्तान, पक्तिया और पक्तिका में भी क्लीनिक बनाए हैं।

परिवहन

विदेश मंत्रालय के अनुसार, भारत ने शहरी परिवहन के लिए 400 बसें और 200 मिनी बसें, नगर पालिकाओं के लिए 105 उपयोगिता वाहन, अफगान राष्ट्रीय सेना के लिए 285 सैन्य वाहन और पांच शहरों में सार्वजनिक अस्पतालों के लिए 10 एम्बुलेंस उपहार में दीं।

पावर इन्फ्रा के तहत ट्रांसमिशन लाइन

अफगानिस्तान में अन्य भारतीय परियोजनाओं में राजधानी काबुल को बिजली की आपूर्ति बढ़ाने के पावर इन्फ्रा प्रोजेक्ट पर काम किया। बघलान प्रांत की राजधानी पुल-ए-खुमरी से काबुल के उत्तर में 220kV डीसी ट्रांसमिशन लाइन का निर्माण भारत की तरफ से किया गया।

इन प्रोजेक्टस पर चल रहा है काम

नवंबर में जिनेवा सम्मेलन में जयशंकर ने घोषणा की थी कि भारत ने अफगानिस्तान के साथ काबुल जिले में शतूत बांध के निर्माण के लिए एक समझौता किया है।इससे 20 लाख लोगों को सुरक्षित पेयजल का लाभ मिलेगा।उन्होंने 80 मिलियन डॉलर की लगभग 100 सामुदायिक विकास परियोजनाओं की शुरुआत की भी घोषणा की थी।

80 मिलियन डॉलर की 100 कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट

पिछले साल नवंबर में जिनेवा सम्मेलन में, जयशंकर ने घोषणा की कि भारत ने अफगानिस्तान के साथ काबुल जिले में शतूत बांध के निर्माण के लिए एक समझौता किया है। इस प्रोजेक्ट से 20 लाख लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध हो सकेगा। जयशंकर ने 80 मिलियन डॉलर की लगभग 100 कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट की शुरुआत की भी घोषणा की।

तालिबान से भारत को क्या खतरा है?

अफगानिस्तान में ऊर्जा संयंत्र, बांध का निर्माण, राजमार्ग के निर्माण, स्कूल, भवन, संसद भवन के निर्माण में भारत ने अहम भूमिका निभाई है। अफगानिस्तान के सैनिकों को ट्रेनिंग समेत अन्य तमाम सुविधाएं प्रदान की हैं।

भारत की योजना अफगानिस्तान में सड़क और रेल लाइन बिछाने तथा मध्य एशिया तक फर्राटा भरने की थी। ऐसा माना जा रहा है कि अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद इन सभी कोशिशों को करारा झटका लग सकता है।

तालिबान (फोटो- सोशल मीडिया)

सबसे बड़ा खतरा भारत के सामने तालिबान में अस्थिरता फैलने के बाद आतंकवाद, उग्रवाद, अलगाववाद फैलने का है। इससे वहां अस्थिरकारी ताकतें हावी हो सकती हैं और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई, पाकिस्तान से संचालित आतंकी संगठन इसके सहारे भारत में अस्थिरता की गतिविधियां बढ़ा सकते हैं।

भारत के माथे पर क्यों हैं चिंता की लकीरें?

भारत सरकार ने पिछले 20 साल में तालिबान और इसके नेताओं से कभी कोई संपर्क नहीं साधा। यहां तक कि 2008-09 में पाकिस्तान की तालिबान के नेताओं से अमेरिकी प्रतिनिधियों की बातचीत जैसे प्रयास का विरोध किया था। भारत ने अच्छे और बुरे तालिबान के तर्क को भी खारिज कर दिया था।

भारत सरकार ने अफगानिस्तान में अपने हित और अफगानिस्तान के निर्माण का रास्ता वहां की सरकार के माध्यम से तय किया। भारत की इस कोशिश के सामानांतर पाकिस्तान तालिबान की सरकार को सबसे पहले मान्यता देने वाले देशों में शामिल था। पाकिस्तान ने ही सबसे अंत में तालिबान सरकार के साथ अपने राजनयिक रिश्ते समाप्त किए।

विदेश, रक्षा, खुफिया जानकारों की मानें तो तालिबान के तमाम सैन्य कमांडरों और कई शीर्ष नेताओं को पाकिस्तान से सहायता मिलती है। चीन ने भी अफगानिस्तान में अपनी योजना को साकार करने के लिए पाकिस्तान का सहारा लिया है।

बताते हैं कि चीन के ही प्रयास से रूस ने पाकिस्तान के साथ संबंध ठीक किए हैं और चीन, रूस, ईरान, पाकिस्तान अपना हित साधने का रोडमैप बना रहे हैं। तुर्की ने अफगानिस्तान में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के प्रयासों को तेज कर दिया है।

उसने एक तरफ अमेरिका तो दूसरी तरफ पाकिस्तान को साधने की भी कोशिशें तेज की हैं। इस रोडमैप में भारत के पास सबसे विश्वस्त सामरिक साझीदार सहयोगी देश केवल रूस है। बताते हैं कि यह चिंता केवल भारत की नहीं है। उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान की भी है। हालांकि ये अफगानिस्तान के पड़ोसी देश हैं।

भारत के हाथ में क्या है?

इसका उत्तर किसी के पास नहीं है। विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की टीम इसी का जवाब तलाशने में लगी है।

अफगानिस्तान भारत की सुरक्षा की दृष्टि से हमेशा बहुत महत्वपूर्ण रहा है। अफगानिस्तान में अस्थिरता बढ़ने पर जिहादी और कट्‌टरपंथी ग्रुप कश्मीर में सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में भारत की रणनीति रही है कि अफगानिस्तान की उस राजनीतिक सत्ता से नजदीकी रखी जाए, जो वहां के कट्‌टरपंथी समूहों को काबू में रख सके।

इसके अलावा ईरान जैसे देशों के साथ व्यापारिक लिहाज से भी अफगानिस्तान भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा है।इस टीम को पता है कि अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता पर काबिज हुआ तो हालात 90 के दशक से कई गुना अधिक खराब हो सकते हैं।

अफगानिस्तान और तालिबान से संबंधों तथा हितों के मामले में भारत को ऐसी स्थिति में दूसरे देशों पर अधिक निर्भर रहना पड़ सकता है। सऊदी अरब, यूएई, रूस, ईरान अधिक महत्वपूर्ण हो सकते हैं।



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Vidushi Mishra

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