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अफगानिस्तान में शरिया कानून और अफगानी महिलाओं में डर

अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद अब अफगानी महिलाओं मैं डर है। अफगान में अब शरिया कानून आने वाला है...

AKshita Pidiha
Written By AKshita PidihaPublished By Ragini Sinha
Published on: 20 Aug 2021 1:08 PM IST
Sariya law in Afghanistan
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शरिया कानून क्या है ? (सोशल मीडिया)

तालिबानी अपनी पैठ अब अफगानिस्तान में बना चुका है।अफगानिस्तान के राष्ट्रपति जल्द ही तालिबान की ओर से बनाया जाना है जिसमे मुल्ला अब्दुल गनी बरादर का नाम सबसे आगे है ।इसके आलावा कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में अमरुल्लाह सालेह ने दावा किया है।इन सब के बीच अमेरिका की पूरी दुनिया मे किरकिरी हो रही है।

तालिबानियों ने सत्ता में काबिज होने के साथ ही ये एलान कर दिया है कि महिलाओं को शरिया कानून के तहत ही अधिकार दिए जायँगे।जिसकी वजह से महिलाओं में डर देखा जा सकता है।महिलाएं सड़को पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करने को मजबूर है।वे आज अपने हक़ की बात करने लगी है।20 साल पहले जैसा माहौल महिलाओं की जिंदगी को फिर से नासूर कर सकता है, जिसमें महिलाओं , बच्चियों तक को बुरखा पहनना अनिवार्य होगा।महिलाओं को मर्द के इजाजत के बिना जाने पर सरेआम कोड़े पड़ने जैसे रूढ़िवाद विचार फिर से जन्म ले लेंगे।इसी वजह से कई देशों के लोग इस कानून के जारी होने पर डर व्यक्त कर रहे हैं। नोबल शांति पुरष्कार विजेता मलाला यूसुफजई कहती हैं कि महिलाओं को फिर से पहली जैसी स्थिति में देखकर वे बहुत चिंतित हैं। अनेक सेलेब्रिटीज़ भी इस कानून के लिये सोशल मीडिया के जरिये चिंता जाहिर कर रहे हैं।

शरिया कानून क्या है?

शरिया के शाब्दिक अर्थ की बात करें तो इसका मतलब "पानी का एक स्पष्ट और व्यवस्थित रास्ता" होता है।वहीं शरिया कानून इस्लामिक कानूनी व्यवस्था है. इसे कुरान और इस्लामी विद्वानों के फैसलों यानी फतवों को मिलाकर तैयार किया गया है। कानून में इस्ला‍मिक समाज के उन नियमों का एक समूह है। जिससे पूरी दुनिया में इस्ला‍मिक समाज संचालित किया जाता है। शरीयत कानून इस्लाम के भीतर सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से जीवन जीने के व्याख्या करता है। शरीयत कानून के अनुसार बताया गया है कि इन तमाम नियमों के बीच एक मुसलमान को कैसे जीवन व्यतीत करना चाहिए। वैसे अगर देखा जाए तो हर समाज और धर्म के भीतर लोगों के रहने के तौर-तरीके, नियम होते हैं। उसी तरह मुसलमानों के लिए भी कुछ नियमों को तैयार कर शरीयत कानून बनाया गया है।

शरीयत कानून से इस्लाम धर्म के मुसलमानों के लिए उनके घरेलू से लेकर राजनैतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन पर बहुत ही गहरा से प्रभाव प्रभाव पड़ता है। बताया जाता है कि शरीयत उस नीति को कहा जाता है, जो इस्लामी कानूनी परम्पराओं और इस्लामी व्यक्तिगत और नैतिक आचरणों पर आधारित होती है। इस्लामिक कानून की चार प्रमुख संस्थाएं, हनफिय्या, मलिकिय्या, शफिय्या और हनबलिय्या है, जो कुरान की आयतों और इस्लामिक समाज के नियमों की अलग-अलग तरह से बखान करते हैं। ये सभी संस्थाएं अलग-अलग सदियों में विकसित की गई थी और बाद में मुस्लिम देशों ने अपने मुताबिक इन संस्थाओं के कानूनों को अपना लिया है।

शरीयत कानून को सिविल कोड भी कहा जाता है

जिस तरह से इस्लामिक समाज में समस्‍याओं के निपटाने के लिए शरीयत कानून बनाया गया है, वैसे ही दूसरे धर्मों के लिए भी ऐसा कानून बनाया गया है। इसे सिविल कोड भी कहा जाता है। जैसे 1956 का हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, इसके तहत हिंदू, बुद्ध, जैन और सिखों की पैत्रक संपत्ति का बंटवारा होता है। ऐसे ही शरीयत कानून द्वारा भी मुस्लिम समाज के भीतर कई मामलों का निपटारा किया जाता है। 2018 में उत्तरप्रदेश के मुसलमानों द्वाराशरियत कानून लागू करने की मांग अभी वर्तमान में भारत में शरियत कानून लागू नहीं है इसलिए ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा उत्तर प्रदेश सहित भारत के हर राज्य में शरियत कानून लागू करने की मांग की जा रही थी।

शरिया कानून में अपराध की श्रेणियां

शरिया कानून अपराधों को दो श्रेणियों में विभाजित करता है।पहली श्रेणी 'हद' है।इसमें गंभीर अपराध आते हैं और इसके लिए कठोर सजा तय की गई हैं और अपराध की दूसरी श्रेणी 'तज़ीर' है। इसमें न्यायाधीश के विवेक पर सजा छोड़ दी जाती है।

शरिया कानून के सिद्धांत कहां से आते हैं?

शरिया कानून प्रणाली भी अन्य कानून प्रणाली की तरह ही काफी जटिल है. इस कानून का लागू होना इस बात पर पूरी तरह से निर्भर करता है कि जानकारों के गुण और उनकी शिक्षा कैसी है?इस्लामी कानूनों के न्यायधीश मार्गदर्शन और निर्णय जारी करते हैं।मार्गदर्शन को फतवा कहा जाता है।इसे औपचारिक तौर पर कानूनी निर्णय माना जाता है।शरिया कानून के पांच अलग-अलग स्कूल हैं।जिसमें से 4 सुन्नी सिद्धांत हैं और एक शिया सिद्धांत।हनबली, मलिकी, शफी और हनफी ये चार सुन्नी सिद्धांत हैं। वहीं शिया सिद्धांत को शिया जाफरी कहा जाता है।ये पांचों सिद्धांत इस बात में एक-दूसरे से अलग हैं कि वे उन ग्रंथों की व्याख्या कैसे करते हैं, जिनसे शरिया कानून निकला है।

कौन-कौन से देश मानते हैं शरिया कानून

शरिया कानून का पालन करने वाले देशों की इसको लेकर अपनी-अपनी व्याख्याएं हैं। इसके आधार पर हम यह कह सकते हैं कि जरूरी नहीं है कि दो मुल्कों के शरिया कानून एक जैसे हों।जिन देशों में शरिया कानून लागू हैं वे धर्म निरपेक्ष नहीं हैं।कुछ ऐसे देश जहां सभी जगह शरिया कानून लागू हैं वे इस प्रकार से हैं :-अफगानिस्तान , मिस्र, इंडोनेशिया, ईरान, इराक ,मलेशिया, मालदीव, मॉरिटानिया, नाइजीरिया, पाकिस्तान, कतर, सऊदी अरब ,संयुक्त अरब अमीरात,यमन,बहरीन,ब्रूनेई आदि ।साथ ही अफ्रीका के कई देश शरिया कानून का पालन करते हैं, जिनमें नाइजीरिया, केन्या और इथियोपिया शामिल हैं।सूडान ने सितंबर 2020 में लगभग 30 साल शरिया कानून का पालन करने के बाद इसको समाप्त कर दिया, सूडान ने ऐसा तब किया जब वह आधिकारिक रूप से एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बन गया।

शरिया कानून का गलत इस्तेमाल करता तालीबान

तालिबान ने 1996 से 2001 के बीच अपने शासन की शुरुआत में अफगान को सुरक्षा तो दी थी, लेकिन शरिया कानून लागू करने की आड़ में उसकी क्रूरता से दुनिया दहल गई थी। हत्या और बलात्कार के दोषियों को सरेआम फांसी और चोरी जैसे अपराधों पर पत्थर से मारने जैसी सजाएं सुनाई गईं।उस दौर में तालिबानी शासन से अफगानी महिलाओं की आजादी पर सबसे गहरी चोट पहुंची थी।टीवी, संगीत और सिनेमा हराम हो गया। 10 साल से बड़ी लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक लग गई थी।तब औरतों को न पढ़ने का, न नौकरी करने का, न बाहर जाने का, ना खुलकर अपनी बात रखने का अधिकार था।उन्हें पूरा शरीर ढ़ककर रखना पड़ता था।बाहर जाना भी हो तो वो परिवार के किसी पुरुष रिश्तेदार के साथ ही बाहर जा सकती थीं।ज्यादातर समय वो अपने घरों में कैद होती थीं।



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Ragini Sinha

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