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Afghanistan में तालिबान का असर, गायब होती जा रहीं महिलाएं

अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) के कंट्रोल के साथ अब टीवी स्क्रीन, यूनिवर्सिटी, कॉलेज, बाजार और यहां तक कि होर्डिंग्स से भी अफगान महिलाएं गायब हो गईं हैं।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Ashiki
Published on: 29 Aug 2021 2:42 PM IST
Afghan women
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अफगानी महिलाएं (Photo- Social Media) 

काबुल: अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) के कंट्रोल के साथ अब टीवी स्क्रीन, यूनिवर्सिटी, कॉलेज, बाजार और यहां तक कि होर्डिंग्स से भी अफगान महिलाएं गायब हो गईं हैं। तालिबान के कब्जे के बाद तमाम संगठनों की वेबसाइटों से भी महिला लाभार्थियों, कर्मचारियों और अन्य स्थानीय महिलाओं की तस्वीरें हटा दी गईं हैं। संयुक्त राष्ट्र की कुछ वेबसाइटों से भी अफगान महिलाओं संबंधी फोटो और जानकारियां हटा दी गईं हैं।

इन संगठनों का कहना है कि ये सब महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के लिए किया गया है ताकि उनकी पहचान सार्वजनिक न होने पाए। अब अफगान महिलाएं लगभग पूरी तरह पर्दे में हैं और यह सिलसिला दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।

फिर बढ़ेंगे अत्याचार

अफगानिस्तान में तालिबान के शासन के दौरान महिलाओं की हस्ती एक तरह से खत्म ही हो गई थी। महिलाओं पर जमकर अत्याचार किये जाते थे। उनको कोई भी अधिकार नहीं था। तालिबान शासन के दौरान महिलाओं को शरीर और चेहरे को बुर्के से ढकने पड़ते थे। उन्हें शिक्षा से वंचित किया गया। काम नहीं करने दिया जाता था। महिलाएं बिना किसी पुरुष रिश्तेदार के घर से बाहर नहीं जा सकती थीं। यह सब शरिया कानून के बहाने किया गया, लेकिन अफगानिस्तान पर 2001 में अमेरिका के हमले के बाद वहां महिलाओं पर अत्याचार बंद हो गए थे। अब जो अफगान युवतियां हैं, जिनका जन्म 2001 के बाद हुआ वे तालिबान के शासन के बिना बड़ी हुईं हैं। उन्होंने अधिकार पाए हैं, शिक्षा और हुनर हासिल किए हैं। लड़कियां स्कूल जाती हैं। महिलाएं सांसद बन चुकी हैं। वे कारोबार में भी हैं। लेकिन अब इस स्थिति के फिर से बदल जाने की आशंका है। सार्वजनिक जीवन से महिलाओं को हटाने की विचारधारा को तालिबान के 1996-2001 के शासन के दौरान सख्ती से लागू किया गया था। अब दोबारा ऐसा हो सकता है।


सुरक्षा की गारंटी नहीं

तालिबान के साथ अमेरिका के शांति समझौते की एक शर्त यह भी है कि अफगानिस्तान में महिलाओं को समान अधिकार मिलना जारी रहेंगे। उनपर जुल्म ज्यादती नहीं की जाएगी। लेकिन इसका जमीनी स्तर पर पालन हो पाना मुश्किल है। इसका आगाज़ बीते दो हफ्तों में हो चुका है। शुरू में चंद महिलाओं के विरोध प्रदर्शन और महिला टीवी एंकर की रिपोर्टें आईं थीं लेकिन अब सब बन्द है। तालिबान ने पहले तो कहा था कि महिलाओं को शरीयत के दायरे में काम करने, आने जाने की इजाजत दी जाएगी । लेकिन अब तालिबान ने यह स्वीकार किया है कि उसके मौजूदा शासन में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं।

तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्ला मुजाहिद ने कहा है कि महिलाओं को काम के लिए घर से बाहर नहीं जाना चाहिए। मुजाहिद ने कहा है कि ऐसा करना जरूरी है क्योंकि तालिबानी 'बदलते रहते हैं। वे प्रशिक्षित नहीं होते हैं और बहुत से लोगों को महिलाओं का सम्मान करना नहीं आता है।' कुछ मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि तालिबान लड़ाके कम उम्र की लड़कियों को घरों से उठा कर ले जा रहे हैं।


जून महीने में ही खबरें आईं थीं कि तालिबान ने इमामों को आदेश दिया है कि वे तालिबान सैनिकों की शादी के लिए 12 साल से ज्यादा उम्र की लड़कियां और 45 वर्ष तक की विधवा महिलाओं को लाएं, क्योंकि उन्हें 'कहानीमत' या 'युद्ध की लूट' के तौर पर देखा जा रहा है। इमामों और मौलवियों से 15 से ज्यादा उम्र की लड़कियों और 45 वर्ष से कम उम्र की विधवा महिलाओं की लिस्ट बनाने के लिए भी कहा था।

खौफ में महिलाएं

तालिबान का इतना खौफ है कि अफगानिस्तान में बुर्के की मांग तेजी से बढ़ गई है। डिमांड के चलते काबुल में बुर्के की कीमतें 10 गुना से ज्यादा बढ़ गईं हैं। तालिबानी बुर्का भी ऐसा होता है जिसमें पूरा शरीर और चेहरा ढंका रहता है। अमेरिकी सेना की मौजूदगी के 20 वर्षों में महिलाओं के पहनावे में भी भारी बदलाव आया है। युवतियों में जीन्स जैसे पश्चिमी परिधान अब सामान्य हैं। लेकिन तालिबान के शासन में बुर्के और पारंपरिक पोशाक को ही पहनना होगा। इसके अलावा अब अफगानिस्तान में ब्यूटी सैलून आदि बड़ी तादाद में खुल चुके हैं, इनका भविष्य भी अनिश्चित है। तालिबान के आते ही ब्यूटी सैलूनों और कपड़े की दुकानों से महिलाओं के पोस्टर आदि फाड़े जा चुके हैं या उनपर पेंट कर दिया गया है।

बहरहाल, तालिबान और उसके जैसे अन्य कट्टर इस्लामी संगठनों के दौर में अफगानिस्तान की महिलाएं फिर दशकों पीछे चली जायेगी।



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Ashiki

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