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Afghanistan: Kabul अब 90 km दूर, Taliban ने सरकार बनाई तो China दे सकता है मान्यता
तालिबान अब काबुल से महज़ 90 km की दूरी पर पहुंच गया है जल्द ही काबुल पर भी तालिबान का नियंत्रण होगा, वहीं अगर तालिबानी सरकार बनती है तो उसे चीन मान्यता दे सकता है.
Afghanistan: समय बीतने के साथ-साथ अफगानिस्तान में तालिबान का कद और वर्चस्व दोनों ही बढ़ते जा रहे हैं। पिछले एक हफ्ते में तालिबान ने बहुत तेजी के साथ अफगानिस्तान के कई शहरों पर अपना कब्जा कर लिया है। अफगानिस्तान के कई बड़े शहर जैसे कंधार, हेरात, गजनी आदि समेत लगभग 13 प्रांतों में तालिबान ने कब्जा कर लिया है और वह अब काबुल से मात्र 90 किलोमीटर की दूरी पर है। जानकारी के अनुसार अगर काबुल पर तालिबानी कब्जा हो गया और सरकार बना ली गई तो उस तालिबानी सरकार को चीन मान्यता दे सकता है।
काबुल हाथ से गया तो गिर जाएगी अफगान सरकार
अफगानिस्तान में 20 साल से रही अमेरिकी सेना के वापस चले जाने के बाद अफगानिस्तान में तालिबान का वर्चस्व और बढ़ गया। तालिबान ने 34 प्रांतों में से लगभग 13 से अधिक प्रांतों पर अपना कब्जा कर लिया है। वैसे तो तालिबान की अफगानिस्तान के 73 जिलों पर पहले से ही मजबूत पकड़ थी अब उसने 160 से अधिक जिलों को भी अपने कब्जे में ले लिया है। जानकारी के अनुसार तालिबान काबुल से 90 किलोमीटर की दूरी तक पहुंच चुका है और बहुत ही जल्द तालिबान का काबुल पर भी वर्चस्व देखने को मिल सकता है। अगर तालिबान ने काबुल पर अपना कब्जा पा लिया तो अफगानिस्तान सरकार गिर जाएगी और तालिबान अपनी नई सरकार का गठन करेगा। बहरहाल दुनियाभर के देश तालिबान के द्वारा अफगानिस्तान में की जा रही हिंसा के खिलाफ हैं। लेकिन जानकारी यह भी आ रही है कि चीन तालिबानी सरकार को अपना समर्थन दे सकता है।
तालिबान की सरकार बनना चीन के लिए अवसर भी और चुनौती भी
जिस तरह से तालिबान अफगानिस्तान के प्रांतों पर धीरे-धीरे अपना कब्जा जमाता जा रहा है वह समय दूर नहीं जब अफगानिस्तान सरकार को गिरा कर तालिबान अपनी मनमानी सरकार बना लेगा। जानकारी के अनुसार तालिबानी सरकार को चीन अपनी मान्यता दे सकता है। 20 साल के बाद अमेरिकी सरकार ने अपनी सेना को अफगानिस्तान से वापस बुला लिया जिसे चाइना एक अवसर के रूप में इस्तेमाल कर सकता है और वह अमेरिकी सैनिकों की जगह अपने सैनिक भेज सकता है। वहीं दूसरी ओर असमंजस की स्थिति यह है कि तालिबान एक कट्टर इस्लामिक आतंकी समूह के साथ संबंध रखने वाला संगठन है वहीं चीन के पाकिस्तान को छोड़कर इस्लामिक देशों में से किसी के साथ भी संबंध कुछ खास नहीं है।