अमेरिका ने किया 100 देशों के साथ गठबंधन, तालिबान पर दबाव बनाने की तैयारी

अमेरिका ने तालिबान के बारे में 100 देशों के साथ एक गठबंधन बनाया है। इन सभी देशों ने एक बयान पर हस्ताक्षर किये हैं कि उन्हें तालिबान से क्या-क्या अपेक्षाएं हैं। यानी तालिबान पर झुकने का पूरा दबाव बनाया जा रहा है।

Neel Mani Lal
Report Neel Mani LalPublished By Deepak Kumar
Published on: 3 Sep 2021 7:54 AM GMT
Taliban wants regime Afghanistan gets global recognition soon
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अमेरिका ने 100 देशों के साथ गठबंधन। (Social Media)

नई दिल्ली। तालिबान चाहता है कि अफगानिस्तान में उसके शासन को जल्दी से जल्दी ग्लोबल मान्यता मिल जाए। इसके लिए वह अपना नरम और उदार चेहरा दिखा रहा है। लेकिन भारत, अमेरिका समेत तमाम देश कोई निर्णय लेने में जल्दबाजी नहीं दिखा रहे हैं। अमेरिका ने तो तालिबान के बारे में 100 देशों के साथ एक गठबंधन बनाया है। इन सभी देशों ने एक बयान पर हस्ताक्षर किये हैं कि उन्हें तालिबान से क्या-क्या अपेक्षाएं हैं। यानी तालिबान पर झुकने का पूरा दबाव बनाया जा रहा है।

अमेरिका के जो बिडेन प्रशासन ने कहा है कि तालिबान से जो अपेक्षा है उसके बारे में दुनिया एकजुट है और अपेक्षा ये है कि अफगानिस्तान से जो लोग निकलना चाहते हैं, उन्हें तालिबान जाने दे। व्हाइट हाउस का यह भी कहना है कि जहाँ तक इस बारे में चीन के स्टैंड की बात है तो इस बारे में फैसला करना चीन के ऊपर है। अमेरिका का कहना है कि तालिबान को अमेरिका अपेक्षाकृत ज्यादा नियंत्रित कर सकता है। मिसाल के तौर पर अफगानिस्तान की ग्लोबल बाजार में पहुंच बनाना। सिर्फ चीन को ही बाजार मान लेना गलत है। इसके अलावा अफगानिस्तान को मिलने वाला धन न्यूयॉर्क फेडरल रिजर्व में रखा हुआ है। अमेरिका ने तालिबान पर लगे आर्थिक प्रतिबन्ध हटाने की संभावना से भी इनकार किया है। बिडेन प्रशासन ने साफ कहा है कि तालिबान पर लगे प्रतिबंधों हो हटाने या कम करने के बारे में कोई विचार नहीं किया जा रहा है। अमेरिका का कहना है कि तालिबान के बारे में निर्णय उसके व्यवहार को तौल कर किया जाएगा। अमेरिका ने यह भी कहा है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय अफगानी लोगों को मानवीय मदद जरूर मुहैया कराएगा।

भारत की पोजीशन

भारत ने तालिबान से आमने-सामने बातचीत के बावजूद यह बात साफ कर दी है कि तालिबान सरकार को मान्यता देने में कोई जल्दबाजी नहीं है। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि अफगानिस्तान में किस तरह की सरकार बनेगी इसके बारे में कुछ पता नहीं है।

जहां तक अफगानिस्तान में 1996 से 2001 के बीच तालिबान के शासन की बात है तो उसे मात्र तीन देशों ने ही मान्यता दी थी। इस बार ऐसे संकेत हैं कि पाकिस्तान, ईरान, चीन और रूस तालिबान शासन को मान्यता देने को तैयार हैं। भारत कि जहां तक बात है तो बीते समय में भारत ने फिजी, अब म्यांमार और अन्य देशों के मामले में फूंक-फूंक कर कदम उठाया है। भारत ने अमूमन स्थापित सिद्धांतों का अनुसरण किया है लेकिन कुछ मामलों में अलग निर्णय भी लिए हैं। भारत ने कभी भी तालिबान को मान्यता नहीं दी है। इससे पहले भी जब उनकी सरकार थी तब भी भारत ने तालिबान से संपर्क नहीं बनाया था। तालिबान से आखिरी बार तब बातचीत हुई थी जब इंडियन एयरलाइन्स के विमान का अपहरण कर उसे कंधार ले जाया गया था। तभी पहली और आखिरी बार भारत ने तालिबान के कमांडरों से औपचारिक बातचीत की थी।

क्या है मान्यता

जब कोई देश किसी अन्य देश की सरकार को मान्यता देता है तो उसका मतलब होता है कि उस देश पर शासन करने वालों को स्वीकार करता है। अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत किसी सरकार को मान्यता देने की सिर्फ एक शर्त होती है कि वह सरकार अपनी संप्रभु शक्ति का प्रभावी तरीके से इस्तेमाल कर रही हो। मतलब यह कि वह सरकार उस देश के अधिकांश हिस्से को नियंत्रित करती हो तथा उस सरकार के प्रशासन का एक तंत्र बना हुआ हो।

अफगानिस्तान में नया मोड़

दरअसल, अफगानिस्तान के घटनाक्रम में एक नए ध्रुव का उदय भी हुआ है जिसमें चीन, रूस और पाकिस्तान शामिल हैं। चूँकि ईरान के सम्बन्ध भी अमेरिका के साथ ठीक नहीं हैं इसलिए वह भी तालिबान को मान्यता देने के पक्ष में ही नज़र आ रहा है। यह भी भारत के लिए बड़ी चिंता की बात है।

सत्ता पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने कई घोषणाएं जरूर की हैं। अपना उदारवादी चेहरा दिखाने की भी कोशिश की है, लेकिन अफगानिस्तान के विभिन्न प्रांतों में तालिबान लड़ाकों की ज्यादती की वारदात भी बढ़ रही हैं। बताया जा रहा है कि तालिबान के लड़ाके घर घर की तलाशी ले रहे हैं। पूर्व की सरकार में काम करने वाले अधिकारियों और राजनेताओं को ढूंढ़ भी रहे हैं। जिन लोगों ने कभी तालिबान से लोहा लिया था वो अब सीधे तौर पर उसके निशाने पर आ गए हैं जबकि तालिबान ने कहा है कि वो बदले की कार्रवाई नहीं करेगा। इसी कड़ी में तालिबान से लोहा लेने वाली बल्ख प्रांत की गवर्नर सलीमा मज़ारी को भी तालिबान ने गिरफ़्तार कर लिया है। तालिबान लाख दावा करे कि वो अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी दूसरे देश पर हमलों के लिए नहीं होने देगा। लेकिन यह सच्चाई है कि चीन और पकिस्तान भारत के खिलाफ इसका पूरा फायदा उठाने के कोशिश करते रहेंगे। भारत के लिए चुनौती यह है कि तालिबान के आने के बाद जम्मू कश्मीर के रास्ते भारत में चरमपंथियों के घुसपैठ की घटनाएं बढ़ सकती हैं क्योंकि पकिस्तान ऐसा करने की पूरी कोशिश करता रहेगा।

Deepak Kumar

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