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Afghanistan Crisis: अमेरिका की वापसी ने चीन, रूस को अफगानिस्तान में फंसाया

Afghanistan Crisis: अमेरिका ने एक साथ अपने तीन बड़े विरोधियों–चीन, रूस और ईरान को मुसीबत में डाल दिया है और खुद वह किनारे हो गया

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Dharmendra Singh
Published on: 23 Aug 2021 12:26 PM GMT
Afghanistan Crisis
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व्लादिमीर पुतिन, जो बिडेन और शी जिनपिंग (काॅन्सेप्ट फोटो: सोशल मीडिया)

Afghanistan Crisis: किसी युद्ध में अमेरिका की पराजय चीन और रूस के लिए खुशी की बात होती है, क्योंकि इनको लगता है कि अमेरिका की प्रतिष्ठा और लीडरशिप को लगी कोई भी चोट उनके लिए एक जीत के सामान है। अब अफगानिस्तान में ऐसी ही चोट अमेरिका को लगी है और प्रतिद्वंद्वी खुश हैं। अफगानिस्तान में बीस साल तक चली कार्रवाई और बेहिसाब खर्च के बाद अमेरिका का जो हश्र हुआ उसके बाद चीन और रूस ने अमेरिका की खूब खिल्ली उड़ाई है। लेकिन खुशी के साथ साथ इन देशों में गुस्सा भी है और चिंता भी।

इन दोनों को पता है कि अब अमेरिका ने अपना पल्ला तो झाड़ लिया है, लेकिन तालिबानी शासन का बहुत बड़ा दुष्प्रभाव उन्हें झेलना पड़ सकता है। यही वजह है कि अमेरिका का मजाक उड़ाने के बाद अब चीन और रूस उसे कोसने में लगे हुए हैं। उधर ईरान भी चिंतित है। यानी अमेरिका ने एक साथ अपने तीन बड़े विरोधियों–चीन, रूस और ईरान को मुसीबत में डाल दिया है और खुद वह किनारे हो गया है।


चीन ने तो साफ कहा भी है कि विदेशी सेनाओं की हड़बड़ी में वापसी के कारण अफगानिस्तान में अफरातफरी मची हुई है। चीन ने यह भी कहा है कि अमेरिका को अफगानिस्तान में स्थितियां सामान्य करने और स्थिरता लाने के बाद वापसी करना चाहिए था। चीन की बातों से पता चलता है कि उसे अमेरिका की हार की खुशी से ज्यादा चिंता तालिबान का नियंत्रण हो जाने की है।

चीन की तरह रूस भी परेशान है। चीन और रूस यह कतई नहीं चाहते हैं कि अमेरिका की मौजूदगी अफगानिस्तान में बनी रहे, लेकिन दोनों को तालिबान की मौजूदगी और उसका नियंत्रण परेशान किये हुए है। उनको भय है कि अफगानिस्तान में फिर से मुस्लिम अतिवाद उभर कर सामने आ सकता है। जिस तरह तालिबान के हाथ में एक से एक आधुनिक सैन्य साजोंसामान, युद्धक जेट, हेलीकाप्टर और गोला बारूद लगा है वह भी अन्य देशों में गड़बड़ी फैलाने के उद्देश्य से इस्तेमाल किया जा सकता है।

चीन को शिन्जियांग की चिंता
चीन को चिंता है कि उसके शिन्जियांग क्षेत्र में मुस्लिम अतिवादियों की घुसपैठ शुरू हो जायेगी। उइगर मुस्लिमों की बहुलता अवाले शिन्जियांग की सीमा अफगानिस्तान से लगी हुई है। इस क्षेत्र में चीन ने उइगर मुस्लिमों को सख्ती से दबा कर रखा हुआ है, ऐसे में यहां मुस्लिम अतिवादियों और आतंकवादियों की घुसपैठ से न सिर्फ आतंकवाद को बढ़ावा मिलेगा बल्कि अलगाववादी आन्दोलन को भी हवा मिलेगी। चीन-अफगानिस्तान सीमा है तो सिर्फ 70 किलोमीटर लम्बी, लेकिन ताजिकिस्तान से चीन की सीमा बहुत लम्बी है। उधर अफगानिस्तान की भी लम्बी सीमा ताजिकिस्तान से मिलती है तो ऐसे में इस्लामिक आतंवादी ताजिकिस्तान के रास्ते शिन्जियांग में घुस सकते हैं।
बरसों से चीन ने ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटिम) नामक इस्लामी उग्रवादी गुट पर गहरी निगाह रखी हुई है। यह गुट चीन के बाहर से ऑपरेट करता है और चीन ने इसे आतंकवादी संगठन करार देकर उसे प्रतिबंधित कर रखा है। लेकिन अब चीन को सबसे ज्यादा परेशानी उइगर मुस्लिमों के अतिवादी संगठन तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी (टिप) से है। इस संगठन की स्थापना पश्चिमी चीन में हुई थी और इसके अधिकांश सदस्य बीजिंग से हैं। 'टिप' और 'ईटिम' एक ही जैसे संगठन हैं, लेकिन दोनों ही संगठनों के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है। इतना जरूर पता है कि सीरिया के गृह युद्ध में 'टिप' के हजारों लड़ाके शामिल रहे हैं। लेकिन हाल के दिनों में 'टिप' के लड़ाके सीरिया से निकलते देखे गए हैं और बताया जाता है कि इन लोगों ने अफगानिस्तान में अपना ठिकाना बना लिया है।

रूस भी तालिबान से डरा
चीन की तरह रूस को भी मुस्लिम आतंकियों की चिंता है। उसे डर है कि मुस्लिम आतंकवादी पूर्व सोवियत संघ के मध्य एशिया स्थित पांच गणराज्यों–कजाकस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान और तुर्कमेनिस्तान में फैल सकते हैं और फिर वहां अपनी शक्तिशाली और गहरी मौजूदगी बना सकते हैं। वैसे तो रूस ने तालिबान के बारे में नरम रुख अपनाया हुआ है और उसके साथ लम्बे समय से अच्छे संबंधों को आगे बढ़ाया है, लेकिन तालिबान के अनिश्चित व्यवहार को समझते हुए रूस ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन भी किया है। रूस ने ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के साथ मिलकर अफगान सीमा के किनारे किनारे संयुक्त सैन्य अभ्यास किया और इसके जरिये संदेश दिया कि तालिबान या तालिबान समर्थित आतंकवादी अगर रूस या उसके सहयोगी देशों में घुसे तो उनसे निपटने की तैयारी है।
ईरान ने तालिबान के पहले के शासन का असर देखा और झेला हुआ है। ऐसे तो ईरान ने अमेरिका के खिलाफ तालिबान का साथ दिया है और उससे ठीकठाक सम्बंध बना कर रखे हुए हैं, लेकिन ईरान जानता है कि तालिबान का कोई भरोसा नहीं और वह ईरान में घुस कर कोई भी गुल खिला सकता है।

अब क्या होगा
अफगानिस्तान और मध्य एशिया में वर्तमान स्थितियों को देखते हुए तीन संभावनाएं निकल सकती हैं।
-क्षेत्र में सुरक्षा और स्थायित्व बनाए रखने के लिए रूस और चीन के बीच सहयोग और भी बढ़ेगा। इसका नतीजा यह होगा कि इन दोनों के संयुक्त नेतृत्व में अमेरिका के खिलाफ एक नई व्यवस्था का उदय होगा। अगर चीन और रूस साथ मिल कर इस क्षेत्र में दबदबा बनाने लगे तो वह भी कोई अच्छी स्थिति नहीं होगी, क्योंकि मध्य एशिया से ही यूरोप को रास्ता निकलता है। इससे आर्कटिक महासागर से लेकर हिंद महासागर तक व्यापार और आवागमन का ट्रैफिक नियंत्रित किया जा सकेगा। चीन और रूस का नियंत्रण हो जाने पर पूरे यूरेशिया के आर्थिक हितों से लेकर राजनीतिक परिदृश्य पर उनका असर पड़ेगा।
-दूसरी सम्भावना यह है कि मध्य एशिया के पांच देश आपस में मिलकर क्षेत्रीय स्थिरता के लिए काम करेंगे। साथ ही यह इस क्षेत्र में रूस व चीन की दखलंदाजी रोकेंगे। यह स्थिति सबसे अच्छी मानी जायेगी, क्योंकि इससे चीन और रूस दोनों को मध्य एशिया पर नियंत्रण जमाने से रोका जा सकेगा। लेकिन इसमें भी अमेरिका, भारत समेत अन्य ताकतों को बड़ी भूमिका निभानी होगी।
-तीसरी स्थिति सबसे भयानक होगी, वह ये कि अफगानिस्तान में तालिबान के शासन से मुस्लिम आतंकवाद और उग्रवाद को बढ़ावा मिलेगा जिसके चलते पूरे क्षेत्र में अस्थिरता फैलेगी। इस स्थिति से बचने के लिए अब चीन, रूस और पूर्व सोवियत संघ के गणराज्यों में चिंता बनी हुई है। भारत भी ऐसी स्थित बनाने देना नहीं चाहेगा।












Dharmendra Singh

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