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अफगानिस्तान में अमेरिका बुरी तरह फेल
वाशिंगटन। अफगानिस्तान में अमेरिका की लड़ाई की निगरानी करने वाले स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल फॉर अफगान रिकंस्ट्रक्शन (सिगार) की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहा है। अफगानिस्तान युद्ध की शुरुआत के बाद से अमेरिकी कांग्रेस को सौंपी गई ४०वीं रिपोर्ट में 'सिगार ' ने बताया गया है कि अफगानिस्तान में अमेरिका समर्थित सरकार का कंट्रोल मात्र ५६ फीसदी प्रशासनिक जिलों तक सीमित है। जबकि २०१५ में ७२ फीसदी जिलों पर सरकार का कंट्रोल था। इसकी तुलना में विद्रोही ताकतों का १४ फीसदी जिलों पर कंट्रोल है और ३० फीसदी जिलों की स्थिति अस्पष्ट है। ये हालत तब है जबकि युद्ध की शुरुआत से अमेरिका ९०० बिलियन डॉलर यहां खर्च कर चुका है और उसके २४०० सैनिक मारे जा चुके हैं।
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रिपोर्ट के अनुसार फरवरी से मई २०१८ के बीच अफगानिस्तान में औसतन रोजाना ६३ हिंसक वारदातें हुईं। २०१७ की इसी अवधि की तुलना में ये ७ फीसदी घटी हैं। लेकिन निशाना बना कर की गई हत्याएं ३५ फीसदी व सुसाइड बॉम्बिंग की घटनाएं ७८ फीसदी बढ़ी हैं।
अफगानिस्तान में आम नागरिकों की मौतें भी बढ़ी हैं। २०१८ की पहली छमाही में १६९२ नागरिक मारे गए। पिछले साल ये आंकड़ा १६७२ और २००९ में १०५२ का था। घायलों की बात करें तो इस साल के पहले ६ महीनों में ५१२२ लोग जख्मी हुए जबकि २०१७ में इसी अवधि में ५२७२ लोग जख्मी हुए थे। इन कैजुअल्टी के बारे में रिपोर्ट का कहना है कि ६७ फीसदी सरकार विरोधी ताकतों द्वारा की गईं जबकि २० फीसदी सरकार समर्थक ताकतों द्वारा हुईं।
हवाई हमलों के कारण ३५३ हताहत (१४९ मौतें व २०४ घायल) हुए। पिछले साल ये आंकड़ा २३२ का था।
अफगानिस्तान में जारी हिंसा के अलावा 'सिगार' ने पाया है कि इस देश में स्थायित्व लाने की अमेरिका की कोशिशें असफल रही हैं। जबकि २००२ से अमेरिका इसके लिए ४.७ बिलियन डॉलर खर्च कर चुका है। रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका ने अफगानिस्तान में सरकारी संस्थाओं के निर्माण और सुधार की दिशा में अपनी क्षमता को बहुत ज्यादा ओवरइस्टीमेट किया। अमेरिकी सहायता ने अफगान सरकार को मजबूत बनाने या हिंसा में कमी लाने की बजाए टकराव बढ़ाया, भ्रष्टïचार पैदा किया और विद्रोहियों के प्रति समर्थन मजबूत ही किया है।