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आतंकियों का बोल-बाला: तालिबानी शासन में अफगानिस्तान में आतंकवादी प्रबल, अलकायदा भी सक्रिय
Afghanistan: दुनियाभर के दूर्दांत आतंकी समूहों का अड्डा बने अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत खाद बीज का काम कर रही है।
Afghanistan: अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता हथियाने के बाद अंतराष्ट्रीय बिरादरी को जिस बात का अंदेशा था वो अब हकीकत में तब्दिल होता नजर आ रहा है। दुनियाभर के दूर्दांत आतंकी समूहों का अड्डा बने अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत खाद बीज का काम कर रही है। अमेरिकी सैन्य बलों की मौजूदगी के दौरान हाशिए पर गए आतंकी समूह अब अपनी मांदों से निकलने लगे हैं। संयुक्त राष्ट्र के एक रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया है। यूएन रिपोर्ट ऑन टेररिस्ट नामक एक रिपोर्ट में अफगानिस्तान में अलकायदा के फिर से सिर उठाने की बात कही गई है।
अफगानिस्तान में सक्रिय हुआ लादेन का बेटा
अलकायदा से जुड़ाव रखने के कारण 2001 में अमेरिका द्वारा अफगानिस्ता की सत्ता से बेदखल किया जाने वाला तालिबान इस बार बेहद सतर्कता बरत रहा है। स्वय़ं को आंतकी गुटों से अलग बताने की कोशिश करने वाला तालिबान इस वक्त अंतराष्ट्रीय बिरादरी में अपनी सरकार को मान्यता दिलाने के लिए हाथ पांव मार रहा है।
अलकायदा जैसे खतरनाक आतंकी संगठन तालिबान की इस कवायद में में कई खलल न पड़े, इसलिए वो अफगानिस्तान में हुए इस बदलाव पर चुप्पी साधे हुए है और उन्होंने अपनी गतिविधियों पर भी अंकुश लगा रखा है ताकि वो दुनिया की नजर में न आए। लेकिन यूएन की एक रिपोर्ट ने इस ढोंग का पर्दाफाश कर दिया है।
UN Report on Terrorists में बताया गया है कि अफगानिस्तान में तालिबान राज आने के बाद अलकायदा फिर से सिर उठाने लगा है। मोस्ट वांटेड रहे दुनिया के नंबर वन आतंकी ओसामा बिन लादेन का बेटा अब्दूल्ला अपनी इस कोशिश को अंजाम तक पहुंचाने के लिए तालिबान के नेताओं के साथ बैठक कर चुका है। रिपोर्ट में बताया गया है कि अलकायदा अपने लीडरशिप को हुए नुकसान और बड़े हमलों को अंजाम देने में उसकी कम हुई क्षमता को वापस दुरूस्त करने की कोशिश कर रहा है।
अलकायदा इन द इंडियन सबकांटीनेंट
आतंकवादी संगठन अलकायदा का एशियाई संस्करण अलकायदा इन द इंडियन सबकांटीनेंट की बेहद मजबूत मौजदूगी अफगानिस्तान में मानी जा रही है। यूएन की रिपोर्ट के अनुसार संगठन की बागडोर ओसामा महमूद और उसका कनिष्ठ आतिफ याह्या के हाथों में है। इसकी मौजूदगी अफगानिस्तान के गजनी, हेलमंद, कंधार, निमरुज, पक्तिका और जाबुल प्रांतों में है।
अलकायदा इन द इंडियन सबकांटीनेंट के दो सौ से चार सौ आतंकी अफगानिस्तान में हैं। जो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, बर्मा और अफगानिस्तान से ताल्लूक रखते हैं। आतंकियों की ये मौजूदगी बताती है कि तालिबान ने विदेश आतंकियों पर अंकुश लगाने के लिए कुछ भी नहीं किया है।
चीन विरोधी आतंकी समूह पर शिकंजा
तालिबान के सत्ता में आना चीन के लिए काफी फायदेमंद बताया जा रहा है। दरअसल दोनों देशों को एक दूसरे की जरूरत भी है। तालिबान को इस समय फंड की बहुत जरूरत है, जिसमे चीन उसकी मदद कर सकता है। वहीं बात करें चीन की हित को चीन वहां के खनिज संसाधनों का दोहन करना चाहता है। जिनका अभी तक दोहन नहीं हो पाया है।
साथ ही चीन अफगानिस्तान की सीमा से सटे उसके सीमाई इलाके में सक्रिय आतंकी संगठनों पर कार्रवाई चाहता है। जो अभी तक अफगानिस्तान से बैठकर अपनी गतिविधियों को अंजाम दिया करते थे।
तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी (टीआईपी), जिसे पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) भी कहा जाता है ऐसा ही आतंकी संगठन है। जिसपर चीन लगाम लगाना चाहता है। तालिबान ने सत्ता में आने के बाद चीन को खुश करने के लिए इस चरमपंथी संगठन पर लगाम लगाया है। बता दें कि ईटीआईएम चीन में रह रहे अल्पसंख्यक उड़गुर मुसलमानों पर हो रहे दमन के खिलाफ खड़ा हुआ आतंकी संगठन है।