तबाह होती देश की जनता : अफगानिस्तान में बेची जा रही बच्चियां, एक-एक रोटी को तरस रहे लोग

Afghanistan Mein Bhukhmari : अफगानिस्तान अब पूरी तरह विदेशी सहायता के भरोसे हो गया है। अरबों डालर की विदेशी सहायता इसलिए नहीं मिल पा रही है क्योंकि दानदाता देशों को तालिबान शासन पर भरोसा नहीं है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Vidushi Mishra
Published on: 27 Oct 2021 9:16 AM GMT
तबाह होती देश की जनता : अफगानिस्तान में बेची जा रही बच्चियां, एक-एक रोटी को तरस रहे लोग
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Afghanistan Mein Bhukhmari : अफगानिस्तान में तालिबान का शासन (Afghanistan mein taliban Shasan) लौटने के साथ हालात दिन ब दिन बदतर होते चले जा रहे हैं। बिजली की किल्लत, खाने पीने की चीजों की कमी, चौपट होते धंधे, बेरोजगारी और चौबीसों घंटे की दहशत, ये अब अब रोज की जिन्दगी का हिस्सा बन गयी हैं।

आलम ये है कि कुछ महीनों पहले तक कुछ हद तक आराम से जिन्दगी गुजर बसर कर अफगानियों को अब अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए अपने बच्चों को बेचना (Afghanistan mein bachche bechane ko majboor janta) पड़ रहा है। जबसे तालिबान ने सत्ता संभाली है तबसे करीब 90 लाख और अफगानी इतनी गरीबी (Afghanistan mein gareebi) में धंस चुके हैं कि उनके खाने पीने के लाले पड़े हुए हैं। सरकारी कर्मचारियों तक को कई महीनों से तनख्वाह (Afghanistan Mein workers ko nahi mil rahi salary) नहीं मिली है।

आतंकी संगठन अफगानिस्तान में जड़ें जमाने की फ़िराक में

अफगानिस्तान में गरीबी का एक नतीजा ये भी हो सकता है कि आतंकवादी गुट बड़े पैमाने पर पनपने लगें। क्योंकि जब निराश लोगों को कोई चारा नहीं होगा तो वे आतंकी गुटों में शामिल हो सकते हैं।

आईएसआईएस जैसा दुर्दांत आतंकी संगठन अफगानिस्तान (Afghanistan Mein Atankwadi) में जड़ें जमाने की फ़िराक में लगा हुआ है और उसके लिए मौजूदा माहौल मुफीद साबित हो सकता है। इन हालातों में कम उम्र के लड़कों का भी शोषण (Afghanistan Mein Ladko Ka Bhi Shoshan) और भी बढ़ जाने की आशंका है।

(फोटो- सोशल मीडिया)

4 हजार में बेटी को बेचा

बताया जाता है कि अफगानी दम्पति अपने नवजात शिशुओं को चार-चार हजार रुपये (Afghanistan mein Char Hazar mein bech rahe navjaat bachche) में बेच रहे हैं ताकि कुछ महीनों के खाने का पैसा पा सकें। एक रिपोर्ट के अनुसार कूड़ा बीनने वाले एक व्यक्ति के परिवार में जब भुखमरी की नौबत आ गयी तो उसने कुछ महीने की अपनी बच्ची को 4 हजार रुपये में बेच दिया।

इस लाचार व्यक्ति के घर में जब खाने को कुछ नहीं बचा तब उसने किसी साहूकार से संपर्क किया और अपनी बच्ची बेचने की पेशकश की। साहूकार इस शर्त पर माना कि जब तक बच्ची चलने लगेगी तभी उसे वह ले जाएगा। तब तक पिता-माता ही बच्ची को पालेंगे।

कर्जा नहीं उतार पाए तो बच्ची दे दी

एक रिपोर्ट में पश्चिम अफगानिस्तान के एक अफगानी महिला सालेहा का जिक्र किया गया है जो हालात को बयां करने के लिए काफी है। घरों में साफ़ सफाई का काम करके रोजाना बमुश्किल 50 रुपाई कमाने वाली 40 वर्षीय सालेहा पर 550 डालर यानी करीब 41 हजार रुपये का कर्जा था।

सालेहा जब किसी भी तरह पैसे का इंतजाम नहीं कर पाई तो उसे मजबूरन अपनी तीन साल की मासूम बच्ची को कर्ज के पैसे के बदले देना पड़ गया। सालेहा का पति बेरोजगार है। इस परिवार को खाने के लाले हैं और किसी तरह ये लोग जी रहे हैं।

फोटो- सोशल मीडिया

इन हालातों में सालेहा का कहना है कि अगर जिन्दगी यूं ही चलती रही तो वह अपने बच्चों को मार कर अपनी जान दे देगी। सालेहा के पति अब्दुल वहाब ने रोते रोते कहा कि वह किसी तरह पैसे का इंतजाम करके अपनी बच्ची की जान बचाएगा।

खालिद अहमद नामक जिस व्यक्ति का कर्जा सालेहा पर था उसका कहना है कि कर्जा निपटाने के लिए उसे बच्ची को लेना पड़ा है। खालिद ने कहा कि सालेहा के पास कर्जा उतरने के लिए पैसा नहीं था सो उनसे बच्ची को लेने के अलावा कोई चारा नहीं था।

तनख्वाह नहीं मिल रही

अफगानिस्तान सरकार के लिए काम करने वालों की भी स्थिति कोई अच्छी नहीं है। कई प्रान्तों में अफगान पुलिस को चार महीने से वेतन नहीं मिला है। मिसाल के तौर पर नंगरहार प्रान्त के एक पुलिसकर्मी फरीद खान का कहना है कि उनके घर में खाने पीने का कोई सामान नहीं (Afghanistan mein bhukhi janta) है, कैंसर से पीड़ित पत्नी के इलाज के लिए पैसा नहीं है।

बीते दो महीने से फरीद फ्रिज, टीवी, कूलर जैसी अपने घर की चीजों को बेच कर पैसे का इंतजाम कर रहे हैं। मजबूरन उनको फेसबुक पर मदद की अपील करनी पड़ी है। ये हाल सिर्फ फरीद का ही नहीं बल्कि टीचरों, सरकारी कर्मचारियों, सेना, खुफिया एजेंसियों, दुकानदारों, मजदूरों आदि सबका है।

गरीबी का दलदल

ये वाकया दर्शाता है कि किस तरह गरीबी और निराशा के दलदल में अफगानी लोग धंसते चले जा रहे हैं। पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र डेवलपमेंट एजेंसी यूएनडीपी ने कहा था कि तालिबान के कंट्रोल के बाद अफगानिस्तान 'आम गरीबी' की ओर बढ़ रहा है। आम गरीबी से मतलब है कि जहाँ सभी लोग गरीब हों।

यूएनडीपी के अनुसार अबसे एक साल के भीतर अफगानिस्तान (Afghanistan Mein Bhukhmari) में गरीबी की दर 98 फीसदी तक हो जायेगी। संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम के अनुसार अफगानिस्तान की करीब चार करोड़ की जनसँख्या में से आधे भुखमरी (Afghanistan mein bhukhi janta)की कगार पर हैं। वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम के तहत संयुक्तराष्ट्र को हर महीने डेढ़ अरब रुपये अफगानिस्तान में खाद्य पदार्थ बांटने(Afghanistan mein bhukhi janta) के लिए चाहियें।

फोटो- सोशल मीडिया

अफगानिस्तान अब पूरी तरह विदेशी सहायता के भरोसे हो गया है। अरबों डालर की विदेशी सहायता इसलिए नहीं मिल पा रही है क्योंकि दानदाता देशों को तालिबान शासन पर भरोसा नहीं है। अफगानिस्तान में सर्दियों का मौसम शुरू हो चुका है और यहाँ के सख्त मौसम में बिना खाना-पानी, बिजली और हीटिंग के लोग कैसे रह पाएंगे, ये बहुत बड़ा सवाल है।

काम के बदले अनाज

अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने भुखमरी से निपटने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया है, जिसमें मजदूरी में गेहूं दिया जाएगा। तालिबान के मुख्य प्रवक्ता ने कहा है कि काम के बदले अनाज की योजना मुख्य शहरों और कस्बों में शुरू की जाएगी।

राजधानी काबुल में 40 हजार पुरुषों को काम दिया जाएगा। इस योजना का मकसद उन लोगों को काम देना है जिनके पास फिलहाल कोई काम नहीं है और सर्दियों में भुखमरी का खतरा झेल रहे हैं। यह योजना दो महीने चलेगी।

इस दौरान 11,600 टन गेहूं तो सिर्फ राजधानी काबुल में बांटा जाएगा। काबुल में मजदूरों को नहरें खोदने और बर्फ के लिए खंदकें बनाने जैसे काम दिए जाएंगे।

Vidushi Mishra

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