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Afghanistan: अफगानिस्तान में भीषण तबाही, कई शहरों पर तालिबान का कब्जा, लाखों लोग हुए बेघर

Afghanistan: तालिबान की बढ़ती ताकत की वजह से अफगानिस्तान में हालात दिन-प्रति-दिन बुरे होते जा रहे हैं। लगातार तालिबान एक के बाद एक करके शहर पर अपना कब्जा जमाए ले रहा है।

Vidushi Mishra
Written By Vidushi MishraNewstrack Network
Published on: 11 Aug 2021 12:33 PM IST
Taliban change sides after a pro-Afghan government commander
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अफगानिस्तान में तालिबान का आतंक (फोटो- सोशल मीडिया)

Afghanistan: अफगानिस्तान अब तालिबान के आगे बेबस पड़ता दिखाई दे रहा है। तालिबान की बढ़ती ताकत की वजह से अफगानिस्तान में हालात दिन-प्रति-दिन बुरे होते जा रहे हैं। लगातार तालिबान एक के बाद एक करके शहर पर अपना कब्जा जमाए ले रहा है। बीते दिन मंगलवार को तालिबान ने तीन और शहरों पर अपना कब्जा जमा लिया। तीन शहरों पुल-ई-खुमरी, फैजाबाद और फराह के बाद अब तालिबान चौथे सबसे बड़े शहर मजार ए शरीफ पर अपनी निगाहें टिकाए हुए है।

ऐसे में भारत ने मंगलवार को ही यहां के अधिकतर हिस्सों से अपने नागरिकों को निकालने का फैसला किया है। जिसके लिए स्पेशल फ्लाइट भी भेजी गई है। इनमें अभी तक तालिबान के डर से करीब 1 लाख 54 हजार लोग विस्थापित हुए हैं।

मुश्किल हालातों में अफगानिस्तान

बीते करीब दो-तीन दिनों में तालिबान ने लगभग एक दर्जन शहरों पर अपना अधिकार कर लिया है। जिसके बाद से अब अफगानी सरकार और अफगान की सेना के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं। जिन शहरों पर तालिबान अपना कब्जा जमा चुका है, उनमें से कुछ काबुल के बेहद नज़दीक हैं।

इस बीच अफगानिस्तान में हद से ज्यादा बुरे हालातों के बीच क्रिकेटर राशिद खान (Rashid Khan) ने दुनियाभर के नेताओं से मदद मांगी है। इस बारे में क्रिकेटर राशिद खान ने मंगलवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर लिखा-'डियर वर्ल्ड लीडर्स। मेरा देश इस वक्त मुश्किल में है, हज़ारों निर्दोष बच्चे, महिलाएं, लोग शहीद हो रहे हैं, घर बर्बाद हो रहे हैं। हमें ऐसे संकट में छोड़कर ना जाएं। हम शांति चाहते हैं, अफगानियों की मौत होने से बचाइए।'

जो बाइडन ने साफ किया इनकार

अफगानिस्तान से धीरे-धीरे अमेरिका की सेना के बाहर निकलने से तालिबान काफी आक्रमणकारी हो गया। जबकि अब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी को लेकर साफ तौर पर भेजने से इनकार कर दिया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा, 'अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के फैसले पर मुझे कोई अफसोस नहीं है। अफगान नेताओं और लोगों को अपने देश के लिए तालिबान से खुद लड़ना होगा। ये उनका ही संघर्ष है।'

आगे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा, 'हमने हजारों अमेरिकी सैनिकों को खो दिया। अफगान नेताओं को साथ आना होगा। उन्हें अपने और देश के लिए लड़ना होगा। हम अपनी प्रतिबद्धताओं को जारी रखेंगे, लेकिन मुझे अपने फैसले (अफगानिस्तान से सेना को बाहर निकालने पर) पर खेद नहीं है। तालिबान अफगानिस्तान के बड़े हिस्सों में काबिज होता जा रहा है।'

फोटो- सोशल मीडिया

अशरफ गनी का दौरा

ऐसे बुधवार को अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी (Ashraf Ghani) मज़ार-ए-शरीफ का दौरा कर रहे हैं। राष्ट्रपति यहां सेना के अधिकारियों से मुलाकात करेंगे। सूत्रों से सामने आई खबर के अनुसार, वरिष्ठ सदस्य की तरफ से कहा गया कि युद्ध के मैदान में मिल रही लगातार शिकस्त राष्ट्रपति अशरफ गनी का संकट बढ़ा सकती है। वह सलाहकारों की एक छोटी टोली पर भरोसा करते हैं और अक्सर प्रमुख मंत्रियों और सैन्य कमांडरों को बदलते रहते हैं।

इन हालातों में अशरफ गनी के सामने अब यह कड़ी चुनौती है कि वह मौजूदा हालात से निपटते हैं अथवा किनारा कर लेते हैं। इसके साथ ही सरकार के इस वरिष्ठ सदस्य ने चेतावनी दी कि अगर तालिबान विरोधी सभी राजनीतिक ताकतें मुकाबले के लिए नई योजना के साथ एकजुट नहीं हुईं, तो काबुल कुछ ही हफ्तों में आतंकी गुट के हाथों में जा सकता है और अशरफ गनी को इस्तीफा सौंपना पड़ सकता है।

तालिबान के हाथ पूरी तरह से खुल गए

तालिबान के आतंक के बारे में लंदन में पूर्व अफगान राजदूत और मुजाहिदीन कमांडर अहमद शाह मसूद के भाई अहमद वली मसूद कहते हैं, "यहां की भ्रष्ट सरकार और भ्रष्ट राजनेताओं की खातिर लड़ने को लेकर सेना के पास कोई प्रेरणा नहीं है। वे (सरकार समर्थक कमांडर या सरदार) गनी के लिए नहीं लड़ रहे हैं। उन्हें ठीक से खाना भी नहीं मिल रहा है। उन्हें क्यों लड़ना चाहिए? किस लिए? तालिबान के साथ उनका बेहतर संबंध है, यही वजह है कि वे इस तरह पाला बदल रहे हैं।"

सूत्रों से सामने आई रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान में 22,000 से अधिक परिवारों को कंधार में तालिबान के आतंकी हमलों से जान बचाने के लिए अपना घर छोड़ना पड़ा है। इधर 650,000 की आबादी का कंधार शहर, काबुल के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। यहां भी इस साल मई महीनें के बाद से खूनी हिंसा लगातार बढ़ती जा रही है। वहीं विदेशी सैनिकों की वापसी के कुछ दिनों बाद तालिबान के हाथ पूरी तरह से खुल गए।



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