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मौसम की मार: गर्मी से हाल बेहाल अमेरिका-यूरोप, लोग हुए परेशान
अमेरिका और यूरोप के कई देश भीषण गर्मी से बेहाल हैं। पहली बार कई सालों बाद यूरोप के कुछ शहरों में तापमान ने वर्षों पुराने रिकॉर्ड तोड़े हैं और जर्मनी और फ्रांस में सरकार को गर्मी का अलर्ट जारी करना पड़ा है।
नई दिल्ली: अमेरिका और यूरोप के कई देश भीषण गर्मी से बेहाल हैं। पहली बार कई सालों बाद यूरोप के कुछ शहरों में तापमान ने वर्षों पुराने रिकॉर्ड तोड़े हैं और जर्मनी और फ्रांस में सरकार को गर्मी का अलर्ट जारी करना पड़ा है। पश्चिमी यूरोप के ज़्यादातर हिस्सों में तापमान रिकॉर्ड तोड़ रहा है। पिछले महीने भी वहां के लोगों ने भीषण गर्मी का सामना किया था। एक महीने में दूसरी बार हीटवेव लोगों का जीना मुहाल कर रही है।
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जर्मनी यूरोप का ऐसा ठंडा देश माना जाता है, जहां घरों में आम तौर पर पंखे नहीं लगाए जाते लेकिन बढ़ती तपन के चलते अब एसी और पंखे नार्मल चीजें हो गयीं हैं। जर्मनी में अब तक सबसे अधिक तापमान 38.2 डिग्री सेंटीग्रेड 1947 में दर्ज किया गया था, इस बार तापमान 40 डिग्री सेंटीग्रेड तक जाने के आसार हैं।
फ्रांस के मौसम विभाग ने भी अनुमान जताया है कि तापमान 40 डिग्री तक पहुंच सकता है। फ्रांस में लोगों को घर से बाहर ना निकलने की सलाह दी गई है। कहा गया है कि मुमकिन हो तो वो घर से ही काम करें। बच्चों की नर्सरियां भी बंद कर दी गई हैं। इस साल की भीषण गर्मी को देखकर साल 2003 की गर्मी को याद किया जा रहा है। उस वक़्त देश में क़रीब 15 हज़ार मौतें गर्मी की वजह से हुई थीं।
अमेरिका में 7 मौतें
अमेरिका में गर्मी से अब तक सात प्रवासियों की मौत हो चुकी है। ये वो लाग हैं अमेरिका में शरण लेना चाहते थे।
ब्रिटेन में पारा 39 डिग्री तक पहुंचने का अनुमान हैं। यहां ट्रेनों को कम गति में चलाने का आदेश दे दिया गया है, ताकि रेल पटरियों को बहुत ज़्यादा गर्म होने से बचाया जा सके। बेल्जियम और नीदरलैंड में भी गर्मी का रिकॉर्ड टूटने जा रहा है।
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जलवायु परिवर्तन है वजह
ज़्यादा गर्मी पड़ना आम बात है लेकिन ब्रिटेन के मौसम विभाग के मुताबिक़, रिसर्च बताती है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से ज़्यादा गर्मी पड़ने की घटनाएं बढ़ गई हैं। हर दूसरे साल लोगों को भयानक गर्मी का सामना करना पड़ रहा है। मौसम विभाग ने पिछले साल एक अध्ययन किया था, जिसके मुताबिक़ 1750 के मुक़ाबले अब ब्रिटेन में 30 गुना ज़्यादा गर्मी पड़ती है। इसकी वजह पर्यावरण में कार्बन डाइआक्साइड (ग्रीन हाउस गैस) का बढ़ना है। ब्रिटेन की नेशनल वेदर सर्विस के मुताबिक़ जलवायु परिवर्तन की वजह से यूरोप में हीटवेव की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है।
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