भारतवंशी ही क्यों जीतते हैं स्पेलिंग प्रतियोगिता

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Published on: 8 Jun 2018 10:48 AM
भारतवंशी ही क्यों जीतते हैं स्पेलिंग प्रतियोगिता
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भारतवंशी ही क्यों जीतते हैं स्पेलिंग प्रतियोगिता

न्यूयार्क : अमेरिका में हाल में हुयी प्रतिष्ठित 'सिक्रप्स नेशनल स्पेलिंग बी' प्रतियोगिता में 14 वर्षीय इंडो-अमेरिकन कार्तिक नेम्मानी ने खिताब जीता और 42 हजार डॉलर से भी ज्यादा की पुरस्कार राशि अपने नाम कर ली। 2017 में ये प्रतियोगिता अनन्या विनय ने जीती थी, 2016 में निहार जंगा और जयराम हथवार ने संयुक्त रूप से, 2015 में गोकुल वेंटचलम और वान्या शिवशंकर ने, 2014 में अंसुन सुजोय और श्रीराम हथवार ने, 2013 में अरविन्द महंकली ने 2012 में स्निग्धा नंदीपति ने ये खिताब जीता था। ये सब इंडो-अमेरिकन हैं। इसके अलावा पिछले पांच 'नेशनल ज्योग्राफिक बी' प्रतियोगिताएं भी भारतीयों ने जीती हैं। 2005 से इन दोनों प्रतियोगिताओं में 80 फीसदी विजय भारतीय मूल के बच्चों ने दर्ज की हैं। 18 साल से नेशनल स्पेलिंग बी प्रतियोगिता पर भारतवंशियों का ही कब्जा है।

अमेरिका में स्कूल जाने वाले बच्चों में भारतीय मूल वालों की संख्या एक फीसदी से भी कम है। सो इन प्रतियोगिताओं में इनकी जीत की वजह क्या है?

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अमेरिका के दो छात्रों ने इस विषय पर रिसर्च की है। इन्होंने पाया कि गणित और विज्ञान से जुड़ी प्रतियोगिताओं में भी भारतीय मूल के बच्चे शानदार प्रदर्शन करते रहे हैं। लेकिन संगीत, एथलेटिक्स या अन्य क्षेत्रों में भारतीय मूल के बच्चे कहीं नहीं ठहर पाते। एथलेटिक्स तथा अन्य टीम स्पोट्र्स में भारत वंशी बच्चे हाईस्कूल तक तो सक्रियता से भाग लेते हैं लेकिन प्रोफेशनल स्तर कभी किसी ने हिस्सेदारी नहीं की है। खेलों में उभरती प्रतिभाओं में कोई भारतवंशी नहीं नजर आता है।

अगर संगीत के क्षेत्र की बात करें तो संवत: भारतवंशी अपने बच्चों को अपने देश के के पारंपरिक संगीत से ही जोड़े रखना चाहते हैं और जहां तक खेलों की बात है तो क्रिकेट के अलावा भारत बहुत कम ही किसी अन्य ग्लोबल खेल में शरीक होता है सो इंडो-अमेरिकी भी इसमें उत्कृष्टता दिखाएंगे इसकी उम्मीद करना ही गलत है।

अमेरिका जा कर बस गए भारतीयों में ज्यादातर के पास ऊंची डिग्रियां हैं। इन लोगों के पास जो डिग्रियां हैं उसमें 90 फीसदी से ज्यादा टेक्रिकल फील्ड की हैं। सो ये लोग अपने बच्चों को भी पढ़ाई में उत्कृष्टता के लिये प्रेरित करते हैं। स्पेलिंग बी प्रतियोगिता में भारवंशियों के प्रभुत्व पर रिचर्स कर रहीं एशियन अमेरिकन स्टडीज़ प्रोग्राम की शलिनी शंकर का कहना है कि इसके पीछे कई कारण हैं। जैसे कि छोटे लेवल से स्पेुलंग प्रतियोगिताओं में हिस्सेदारी, दिमागी खेलों के प्रति भारतवंशियों का लगाव और सामुदायिक सपोर्ट शामिल है। स्पेलिंग प्रतियोगिताओं में भारतवंशी बच्चों की जीत से इस प्रतियोगिता के प्रति एक क्रेज भी बन गया है। इसके अलावा भारतीय समाज में अकादमिक उपलब्धियों को बहुत ऊंचा दर्जा दिया जाता है। साथ ही उम्दा याददशाश्त और ऊंचे स्तर की जानकारी रखना एक प्रतिष्ठा की बात होती है।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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