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अफगानिस्तान में लोकतंत्र को बचाने के लिए तालिबान के सामने खड़ा ये योद्धा, जानिए कौन है ये सख्स
अफगानिस्तान के पहले और पूर्व उपराष्ट्रपति अमरूल्ला सालेह ने खुद को देश का कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित किया है। ये एक ऐसा नाम जिसने तालिबानियों के सामने हार नहीं मानी।
अमरुल्लाह सालेह एक ऐसा नाम जिसने तालिबानियों के सामने हार नहीं मानी भले ही अफगान की धरती पर तालिबान ने अपना कब्जा कर लिया है। वहीं, लोगों ने तालिबानियों के सामने घुटने टेक दिए हैं, यहां तक कि देश के राष्ट्रपति जिनके हाथों में देश को संभालने की जिम्मेदारी थी, वो भले ही ऐसे मुश्किल हालात में देश छोड़कर चले गए हों, लेकिन एक व्यक्ति जिसने तालिबानियों के सामने अपनी शिकस्त नहीं मानी है। लिहाजा अभी भी कहीं ना कहीं अफगानिस्तान के लोकतंत्र को बचाने की एक उम्मीद दिखाई दे रही है। वह व्यक्ति कोई और नहीं अफगानिस्तान के उप राषट्रपति अमरुल्लाह सालेह हैं। जिन्होंने अशरफ गनी की गैरमौजूदगी में खुद को देश का कार्यवाहक राष्ट्रपति बताया है और साथ ही अफगान को वियतनाम ना बनने की बात कही है।
कौन हैं अमरुल्लाह सालेह
दरअसर, अफगानिस्तान की सरजमीं पर जहां तालिबानियों का कब्जा हो गया है, वहीं अफगान में एक ऐसी घाटी है, जो तालिबानियों के कब्जे से दूर है। पंजशीर घाटी राजधानी काबुल के पास स्थित है । 1980 से 2021 तक कभी भी तालिबान का कब्जा इस घाटी पर नहीं हो पाया है। इसे नॉर्दन अलायंस के पूर्व कमांडर अहमद शाह मसूद का गढ़ माना जाता है। बता दें अमरुल्लाह सालेह भी यहीं से आते हैं। अब्दुल रशीद दोस्तम के बाद अमरुल्लाह सालेह फरवरी 2020 में अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति बने। इससे पहले 2018 और 2019 में अमरुल्लाह सालेह अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री रहे थे। वहीं साल 2004 से 2010 तक राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय (एनडीएस) के प्रमुख के रूप अपनी सेवाएं दी हैं।
कब हुआ अमरुल्लाह सालेह का जन्म
अमरुल्लाह सालेह का जन्म पंजशीर में अक्टूबर 1972 में हुआ था। ताजिक मूल के परिवार में जन्मे अमरुल्लाह सालेह कम उम्र में ही अनाथ हो गए थे। लेकिन उन्होंने कम उम्र में ही अहमद शाह मसूद के तालिबान विरोधी आंदोलन को जॉइन कर लिया था। अमरुल्लाह सालेह निजी तौर पर तालिबान का दंश झेल चुके हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक 1996 में तालिबानों ने उनकी बहन का अपहरण कर लिया था और हत्या कर दी थी। खुद सालेह ने टाइम मैगजीन के लिए लिखा था कि 1996 में जो हुआ, उसके बाद से तालिबान को लेकर मेरा नजरिया बदल गया था। इस घटना ने उनके मन में तालिबान के खिलाफ गुस्सा भर दिया था और वह मसूद के आंदोलन का ही हिस्सा बन गए। उनके प्रभाव को इससे भी समझा जा सकता है कि ताजिकिस्तान के दुशांबे में स्थित अफगानिस्तान दूतावास ने उनकी ही तस्वीर लगा ली है।
पाकिस्तान के विरोधी तो भारत के करीबी माने जाते हैं सालेह
बता दें सालेह ने गुरिल्ला कमांडर मसूद के साथ 1990 के समय युद्ध लड़ा था। 1990 में सोवियत समर्थित अफगान सेना में भर्ती होने से बचने के लिए सालेह विपक्षी मुजाहिदीन बलों में शामिल हुए थे। उन्होंने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त किया और मुजाहिदीन कमांडर अहमद शाह मसूद के तहत लड़ाई लड़ी. 1990 के दशक के आखिर में वे उत्तरी गठबंधन के सदस्य बने और तालिबान के विस्तार के खिलाफ भी जंग लड़ी. सालेह को खुले तौर पर पाकिस्तान का विरोधी माना जाता है, जबकि भारत का करीबी बताया जाता है।
देश का कार्यवाहक राष्ट्रपति है अमरूल्ला सालेह
अफगानिस्तान में तालिबान के नियंत्रण के बाद राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़ कर भाग गए थे, जिसके बाद अफगानिस्तान के पहले और पूर्व उपराष्ट्रपति अमरूल्ला सालेह ने खुद को देश का कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित किया है। उन्होंने कहा कि सभी नेताओं से संपर्क कर रहे हैं ताकि उनकी मदद और सहमति सुनिश्चित की जा सके।
अमरूल्ला सालेह ने गत मंगलवार को ट्विटर पर यह घोषणा की। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान का संविधान उन्हें इसकी घोषणा करने की शक्ति देता है। उन्होंने ट्विटर कहा- "अफगानिस्तान के संविधान के मुताबिक, राष्ट्रपति के इस्तीफे, उनके निधन, भागने या गैर-मौजूदगी में प्रथम उपराष्ट्रपति केयर टेकर राष्ट्रपति होंगे। उन्होंने आगे कहा- मैं वर्तमान में देश के अंदर हूं और 'वैध' कार्यवाहक राष्ट्रपति हूं. सभी नेताओं से संपर्क कर रहा हूं ताकि उनके समर्थन और सहमति बन पाए।
सालेह पर पाक में आतंकवाद को बढ़ावा देने का भी लगा आरोप
अमरुल्लाह सालेह पर अफगान नेशनल इंटेलिजेंस एजेंसियों का दुरुपयोग कर पाकिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप भी लगता है। अमरुल्लाह सालेह ने अक्टूबर 1996 में भारत से सहायता पाने के लिए भारतीय राजनयिक मुथु कुमार और मुजाहिदीन कमांडर अहमद शाह मसूद के बीच एक बैठक भी करवाई थी।