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Bangladesh Coup Update: आरक्षण आंदोलन ने ले ली हसीना की कुर्सी, मनमानी ने बढ़ाई रार

Bangladesh Violence News: यह बात जानने समझने के लिए बांग्लादेश के हालिया सियासी हालात को समझने की ज़रूरत है। बांग्लादेश में जो मंजर दिख रहा है वह ढाका और अफ़ग़ानिस्तान के दृश्य की याद ताज़ा कर रहा है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 6 Aug 2024 9:09 AM IST (Updated on: 6 Aug 2024 9:11 AM IST)
Bangladesh Coup Update
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Bangladesh Coup Update

Bangladesh Coup Update in Hindi: बांग्लादेश में विपक्ष सफ़ाया की राजनीति शेख़ हसीना को भारी पड़ी। किसी भी राजनीतिक दल के लिए जितना ज़रूरी चुनाव जीत कर सरकार बनाना है, उतना ही ज़रूरी विपक्ष को कायम रखना भी है। क्योंकि विपक्ष जनता की आवाज़ हैं। आवाज़ होता है। विपक्ष सरकार के लिए सेफ़्टी वॉल्व का काम करता है। हालाँकि इस बात का अहसास सत्ता पक्ष को होता नहीं है। विपक्ष की अनुपस्थिति सत्ता पक्ष को तानाशाह बना देती है। यह बात जानने समझने के लिए बांग्लादेश के हालिया सियासी हालात को समझने की ज़रूरत है। बांग्लादेश में जो मंजर दिख रहा है वह ढाका और अफ़ग़ानिस्तान के दृश्य की याद ताज़ा कर रहा है।

हुसैन मोहम्मद इरशाद बांग्लादेशी सैन्य अधिकारी थे। इन्होंने 1983 से 1990 तक बांग्लादेश के नौवें राष्ट्रपति के रुप में शासन किया। इरशाद ने 24 मार्च, 1982 को राष्ट्रपति अब्दुल सत्तार के खिलाफ रक्तहीन क्रांति के मार्फ़त तख्ता पलट सेना प्रमुख के रुप में सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया। 1983में खुद को राष्ट्रपति घोषित किया। फिर विवादास्पद ढंग से 1986 में जातीय पार्टी के मार्फ़त राष्ट्रपति का चुनाव जीता। 1989 में इरशाद ने संसद पर दबाव डाला कि वह इस्लाम को राज्य धर्म बनाये । जबकि बांग्लादेश का मूल संविधान धर्मनिरपेक्ष था।

Photo- Social Media

क्या है बांग्लादेश में तख्तापलट के कारण

नतीजतन, 1990 में ख़ालिदा जिया और शेख़ हसीना के नेतृत्व में जन विद्रोह के नाते इन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा। इस आंदोलन में यह समझौता हुआ कि जब भी बांग्लादेश में चुनाव होगा तब एक केयर टेकर सरकार बनेगी। इसी केयर टेकर सरकार के नेतृत्व में चुनाव संपन्न होंगे। इसे न्यूट्रल केयर टेकर गवर्नमेंट कहा गया। इसकी अगुवाई सुप्रीम कोर्ट के हालिया सेवा निवृत्त जज को करना था। इसे तीन माह में चुनाव संपन्न कराना था। इसे संविधान का हिस्सा भी बनाया गया। चुनाव हुए और बेगम ख़ालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी जीत गयी। ख़ालिदा जिया मार्च 1991 से मार्च, 1996 तक फिर जून, 2001 से 2006 तक बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री रहीं। ख़ालिदा पूर्व राष्ट्रपति ज़ियाउर रहमान की विधवा हैं।

शेख़ हसीना और ख़ालिदा जिया: Photo- Social Media

पर बाद में बेगम ख़ालिदा जिया की जगह शेख़ हसीना ने ली। शेख़ हसीना जून 1996 से जुलाई, 2001 तक फिर जनवरी,2009 से 5 अगस्त , 2024 तक प्रधानमंत्री रही । इन्होंने अपने लंबे कार्यकाल में कई संवैधानिक संशोधन किये। जो बांग्लादेश के लोगों को रास नहीं आये। इनमें से पाँच महत्वपूर्ण परिवर्तन की ताकि हम आज यहाँ करेंगे -

पहला, परिवर्तन यह किया कि चुनाव के लिए न्यूट्रल केयर टेकर सरकार के गठन की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया। जिसका फ़ायदा हालिया 2024 के चुनाव में शेख़ हसीना ने खूब उठाया। हालाँकि बांग्लादेश में हुए इस चुनाव का विपक्ष ने चुनाव का बायकाट किया। पर किसी तरह चुनाव कराने पर आमादा शेख़ हसीना ने पूरे चुनाव में मन मर्ज़ी की । उन्होंने चुनाव की निष्पक्षता दिखाने के लिए अपनी ही पार्टियों के तमाम उम्मीदवारों को बतौर स्वतंत्र उम्मीदवार उतारा। शेख़ हसीना की पार्टी से मोहभंग के चलते निर्दल साठ उम्मीदवार जीतने में कामयाब रहे। इनमें उनसठ उम्मीदवार ख़ालिदा जिया की पार्टी के थे। चुनाव की निष्पक्षता पर इसलिए भी सवाल उठा क्योंकि चार बजे तक 28 फ़ीसदी वोट पड़ने के दावों के महज़ एक घंटे बाद पाँच बजे 40 फ़ीसदी वोट पड़ जाने का दावा किया गया।

दूसरा, कारण बांग्लादेश की ख़राब आर्थिक हालात है। मुद्रा स्फीति व बेरोज़गारी वहाँ चरम पर है। लोगों के पास क्रय शक्ति लगातार घट रही थी।शेख़ हसीना लंबे समय ये सत्ता पर क़ाबिज़ है , पर वह इस पर कोई नियंत्रण कर पाने की स्थिति में नहीं रहीं।

तीसरा, कारण 1979 के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वालों के लिए नये देश में तीस फ़ीसदी का आरक्षण नौकरियों में तय किया गया। नव जवान यह माँग कर रहे थे कि जिन लोगों ने मुक्ति आंदोलन में हिस्सा लिया था, अब वे साठ पैंसठ के हो रहे होंगे। ऐसे में उन्हें नौकरियों की दरार नहीं रही। नाहक उनके परिजनों को आरक्षण मुहैया कराया जा रहा है। नव जवानों की इस माँग पर हसीना में 2018 में यह आरक्षण निरस्त भी कर दिया था। पर उस आरक्षण के लाभार्थी कोर्ट गये। अदालत ने लाभार्थियों के पक्ष में फ़ैसला सुना दिया। जून के पहले सप्ताह में आये फ़ैसले में कोर्ट का तर्क यह था कि यह आरक्षण संविधान संशोधन के मार्फ़त दिया गया था।

Photo- Social Media

लिहाज़ा इसे ऐसे समाप्त नहीं किया जा सकता। ऐसे में हसीना की सरकार दोनों तबकों के निशाने पर आ गयी। सवाल यह भी उठने लगा कि क्या बांग्लादेश के तीस फ़ीसदी लोगों ने मुक्ति संग्राम में भाग लिया था। यदि नहीं तो तीस फ़ीसदी आरक्षण किस आधार पर दिया गया। मुक्ति वाहिनी के लोगों को बांग्लादेश सरकार ने जो सार्टीफिकेट जारी किया वह एक हज़ार की जनसंख्या पर मात्र तेरह लोगों का बैठता है।

चौथा, कारण युवा आंदोलन को विपक्षी दलों व नेताओं द्वारा हवा देना है। जिस ख़ालिदा जिया व शेख़ हसीना ने कभी मिलकर बांग्लादेश में लोकतंत्र बहाली का आंदोलन लड़ा था। उसी में से एक ख़ालिदा जिया की अगुवाई में विपक्ष इकट्ठा होकर शेख़ हसीना की सरकार को पलीता लगा दिया। उन्हें अपनी बहन के साथ इस्तीफ़ा देकर देश छोड़ना पड़ा।

Photo- Social Media

पाँचवा, कारण जन विद्रोह के समय सेना का सत्ता का साथ न देना रहा। जन प्रदर्शन में एक सौ चालीस लोगों की जान जाने के बाद सेना ने गोली चलाने से मना कर दिया। सेना मुख्यालय में बांग्लादेश आर्मी चीफ़ ने बैठक के बाद यह एलान कर दिया कि अब प्रदर्शन कारियों पर एक भी गोली नहीं चलाई जायेगी।

इस एलान के बाद शेख़ हसीना सरकार के हाथ पाँव ढीले हो गये। उसके पास देश छोड़ कर भागने के सिवाय कोई विकल्प नज़र नहीं आया।



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Shashi kant gautam

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