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हसीना के लिए बढ़ रहीं मुश्किलें
ढाका। बांग्लादेश में एक सड़क हादसे से शुरू हुआ बवाल खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। छात्रों का आंदोलन कवर करने के दौरान एक दर्जन से ज्यादा पत्रकारों पर पुलिस ने हमले किए और जाने-माने फोटो-पत्रकार शहीदुल आलम समेत कुछ को गिरफ्तार भी किया गया। अब पत्रकार भी आंदोलन की राह पर हैं। मौजूदा परिस्थिति में इस साल दिसंबर में होने वाले चुनावों से पहले प्रधानमंत्री शेख हसीना की मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं। देश में ब्लागरों और पत्रकारों की हत्या कोई नई बात नहीं है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि मौजूदा आंदोलन शेख हसीना के कथित तानाशाही रवैए के खिलाफ आम लोगों की नाराजगी का नतीजा है।
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देश में एक सड़क हादसे में दो छात्रों की मौत के बाद परिवहन व्यवस्था को नियंत्रित करने की मांग में पूरे देश मेन छात्र सड़कों पर उतर आए थे। लेकिन हसीना सरकार और उनकी पुलिस ने इस आंदोलन को दबाने के लिए जम कर बल प्रयोग किया। आंदोलन को कवर करने वाले पत्रकारों को भी निशाना बनाया। हालांकि बाद में सरकार ने अपना रुख नरम करते हुए ट्रैफिक कानून में जरूरी संशोधन जरूर कर दिया। लेकिन तब तक सरकार-विरोधी आंदोलन की यह आगे पूरे देश में फैल चुकी थी। इस आंदोलन ने दिसंबर में होने वाले आम चुनावों से पहले सरकार के लिए मुश्किलें तो पैदा कर ही दी हैं, इससे बांग्लादेश की मुख्य विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) को भी एक अहम मुद्दा मिल गया है।
बीती फरवरी में खालिदा जिया को जेल भेजे जाने के बाद पार्टी के हौसले कमजोर पड़ गए थे। सरकार अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज के लिए विपक्षी बीएनपी को जिम्मेदार ठहराती रही है। उसने उस पर छात्रों के आंदोलन को उकसाने का भी आरोप लगाया था। वर्ष 2009 में सत्ता में आने के बाद बीते लगभग एक दशक के दौरान प्रधानमंत्री शेख हसीना ने जिस तरह इस्लामी गुटों के खिलाफ कार्रवाई की है और 1971 के युद्ध अपराधों के अभियुक्तों को फांसी के तख्ते पर चढ़ाया है, उससे उसकी काफी आलोचना होती रही है। हसीना पर आंतकवाद, नशीली वस्तुओं और भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी अभियान के दौरान विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई के आरोप भी लगे हैं।
दूसरी ओर, बीएनपी ने हसीना के आरोपों का खंडन किया है। पार्टी का कहना है कि छात्रों के आंदोलन के पीछे उसका कोई हाथ नहीं है लेकिन इस मौके को भुनाते हुए खालिदा की रिहाई के लिए सरकार पर दबाव बनाने की खातिर पार्टी ने पूरे देश में रैलियां आयोजित करने का फैसला किया है। बीएनपी महासचिव मिर्जा फखरूल इस्लाम आलमगीर कहते हैं कि देश को बड़े पैमाने पर मरम्मत व सुधार की जरूरत है। भ्रष्टाचार के एक मामले में बीती फरवरी में बीएनपी नेता व पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया को पांच साल के लिए जेल की सजा सुनाई गई थी।
हसीना वर्ष 2014 में विवादों और खालिदा जिया की पार्टी के चुनाव बायकाट के बीच दूसरी बार जीत कर सत्ता में लौटी थीं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अब खालिदा की जीत इतनी आसान नहीं होगी जैसा कुछ महीने पहले अनुमान लगाया जा रहा था। भले ही विपक्षी बीएनपी बिखराव की शिकार है और उसके कई नेता विभिन्न आरोपों में जेल में हैं, लेकिन देश की मौजूदा परिस्थिति ने उसे एक संजीवनी मुहैया करा दी है। इस बीच, बांग्लादेश चुनाव आयोग ने दिसंबर के तीसरे सप्ताह में राष्ट्रीय चुनाव कराने का एलान किया है। हसीना का कार्यकाल अगले साल जनवरी में खत्म हो रहा है।
आयोग के सचिव हेलालुद्दीन ने इस सप्ताह ढाका में बताया कि दिसंबर का तीसरा सप्ताह चुनावों के लिए सबसे अनुकूल है। बीएनपी समेत 21 विपक्षी दलों ने वर्ष 2014 के चुनावों का बायकाट किया था। बहरहाल, हसीना के लिए अगले कुछ महीने बेहद अहम हैं।