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BJP Strategy: भाजपा चाहती है अब सिर्फ जीत की गारंटी, उम्र नहीं रह गई टिकट देने में बाधा, यूपी में भी दिख सकता है बड़ा असर
BJP Strategy: पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में टिकटों के बंटवारे से भाजपा की नीति में बड़े बदलाव का संकेत मिला है। दरअसल भाजपा अब चुनावी जंग के दौरान सिर्फ जीत की गारंटी को महत्व दे रही है। प्रत्याशी चयन में 75 वर्ष की आयु सीमा अब कोई बाधा नहीं रह गई है।
BJP Strategy: पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में टिकटों के बंटवारे से भाजपा की नीति में बड़े बदलाव का संकेत मिला है। दरअसल भाजपा अब चुनावी जंग के दौरान सिर्फ जीत की गारंटी को महत्व दे रही है। प्रत्याशी चयन में 75 वर्ष की आयु सीमा अब कोई बाधा नहीं रह गई है। पार्टी जिताऊ बुजुर्ग नेताओं पर भी दांव लगाने के लिए तैयार दिख रही है।
2014 में भाजपा ने 75 वर्ष से अधिक आयु के नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल न करने और उन्हें भविष्य में चुनावी जंग के दौरान टिकट न देने का बड़ा सैद्धांतिक फैसला किया था । मगर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने चुनावी समीकरणों के हिसाब से 75 वर्ष या उससे अधिक आयु के नेताओं को भी चुनावी जंग में उतार दिया है। देश में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा की नीति में आए इस बड़े बदलाव का उत्तर प्रदेश में भी बड़ा असर दिख सकता है।
तीन राज्यों के टिकट बंटवारे में दिखा बड़ा बदलाव
देश के पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने जीत हासिल करने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है। भाजपा नेतृत्व को इस बात का बखूबी एहसास है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव पर इन चुनावी नतीजों का खासा असर पड़ेगा। यही कारण है कि भाजपा की नीति में बड़ा बदलाव दिख रहा है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने ऐसे नेताओं पर भी दांव लगाया है जिनकी आयु 75 वर्ष या उससे अधिक हो चुकी है।
यदि चुनावी समीकरणों के लिहाज से ऐसे नेता जीतने की स्थिति में दिख रहे हैं तो भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें चुनावी जंग में उतारने से संकोच नहीं किया है। इसे पार्टी की नीतियों में बड़ा बदलाव माना जा रहा है। इसका असर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के दौरान भी दिखने की संभावना जताई जाने लगी है।
बुजुर्ग नेताओं पर भी पार्टी ने जताया भरोसा
भाजपा ने मध्य प्रदेश में 75 वर्ष से अधिक आयु के जगन्नाथ सिंह रघुवंशी को चंदेरी सीट से चुनावी मैदान में उतारा है । जबकि सतना जिले की नागौर सीट से 80 वर्षीय नागेंद्र सिंह चुनावी अखाड़े में उतारे गए हैं। रीवा जिले की गुढ़ विधानसभा से भी 81 वर्षीय नागेंद्र सिंह को और मध्यप्रदेश में श्योपुर जिले की विजयपुर विधानसभा सीट से 79 साल के बाबूलाल मेवरा को प्रत्याशी बनाया है।
राजस्थान के अजमेर जिले की अजमेर उत्तर सीट से 75 वर्षीय वासुदेव देवनानी को पांचवीं बार प्रत्याशी बनाया गया है। गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 76 वर्षीय योगेश पटेल को मांजलुपर से टिकट दिया था और वे चुनाव जीतने में भी कामयाब हुए थे।
2014 में बुजुर्ग नेताओं को कर दिया था किनारे
2014 में पार्टी ने 75 वर्ष या उससे अधिक आयु के नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया था। पार्टी के इस फैसले से भाजपा के संस्थापक सदस्य रह चुके लालकृष्ण आडवाणी और डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गज नेता भी किनारे हो गए थे। उन्हें चुनाव लड़ने का मौका भी नहीं मिल सका। 2014 में देवरिया से सांसद रहे और और केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र को भी 75 वर्ष से अधिक आयु होने के कारण 2018 में मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था। मौजूदा समय में कलराज मिश्रा राजस्थान के राज्यपाल के रूप में भूमिका निभा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भी 75 वर्ष से अधिक आयु वाले नेताओं को किनारे कर दिया गया था। पार्टी की इस नीति के कारण तत्कालीन मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा, राजेश अग्रवाल और विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित समेत कई विधायकों के टिकट काट दिए गए थे।
यूपी में इन नेताओं की चमक सकती है किस्मत
अब भाजपा की नीतियों में आए बदलाव का उत्तर प्रदेश में भी बड़ा असर दिख सकता है। आगामी लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी के कई बुजुर्ग सांसदों के टिकट पाने की संभावना बढ़ गई है। उत्तर प्रदेश में मथुरा से सांसद हेमामालिनी, कानपुर से सांसद सत्यदेव पचौरी और बरेली के सांसद संतोष गंगवार सहित अन्य सांसद जिनकी आयु 75 वर्ष या उससे अधिक हो चुकी है, उनके लिए भी टिकट पाने की संभावनाएं पैदा हो गई हैं।
दरअसल भाजपा अब पुरानी नीति से अलग हटते हुए चुनावी जंग में जीत की गारंटी पर भरोसा कर रही है। ऐसे में पार्टी की ओर से ऐसे नेताओं को भी चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है जो चुनावी समीकरणों के लिहाज से जीतने की स्थिति में दिखेंगे।