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बोरिस जॉनसन हो सकते हैं ब्रिटेन के नए पीएम
लंदन: बोरिस जॉनसन के पूर्वज तुर्की से थे। माता-पिता अंग्रेज और जन्म उनका न्यूयॉर्क में हुआ। उनके बचपन का बड़ा हिस्सा बेल्जियम में बीता। बोरिस जॉनसन कंजरवेटिव पार्टी में ब्रेक्जिट के प्रमुख समर्थक माने जाते हैं। माना जा रहा है कि 7 जून को टेरीजा मे के प्रधानमंत्री पद छोडऩे के बाद वह ब्रिटेन का नेतृत्व कर सकते हैं। बोरिस जॉनसन का पूरा नाम एलेक्जेंडर बोरिस दे फेफेल जॉनसन है और राजनीतिक विश्लेषकों के पास उनकी आलोचना करने के लिए लंबी सूची मौजूद है।
वे अजीब सा बर्ताव करते हैं, कपड़े ढंग से नहीं पहनते और समय पर तो कतई नहीं पहुंचते हैं। 2012 के लंदन ओलंपिक के दौरान वे जिपवायर पर लटके थे लेकिन वहां भी चूक ऐसी हुई कि तस्वीर वायरल हो गई। खूबसूरत लड़कियां बोरिस जॉनसन की कमजोरी मानी जाती हैं। उनके इतने अफेयर चर्चित हो चुके हैं कि लंदन की एक मैग्जीन ने उन्हें 'बॉन्किंग बोरिस ' की संज्ञा दे दी। लोग भले ही उन्हें जोकर मानें लेकिन टेरीजा मे जानती हैं कि बोरिस जॉनसन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
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जॉनसन बेहद पढ़े लिखे हैं। उन्होंने कई ब्रिटिश प्रधानमंत्री देने वाले ईटन स्कूल से पढ़ाई की है और उच्च शिक्षा ऑक्सफोर्ड से ली है। अंग्रेजी के अलावा वे फ्रेंच और इतालवी भाषा भी बोल लेते हैं। पहले समझा जाता था कि उनका जीवन बड़ा आरामदायक रहा है लेकिन पिछले साल उनकी छोटी बहन रेचल जॉनसन ने बताया कि उनकी मां शार्लोट जॉनसन डिप्रेशन और ऑबेसिव कंपलसिव डिसऑर्डर की शिकार थीं। इसकी वजह से वे लंबे समय तक अस्पताल में भी भर्ती रहीं जिससे उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा। बोरिस और उनके तीन भाई-बहिनों को एक दाई ने पाला था। बहरहाल, राजनीति में आने से पहले बोरिस पत्रकार थे। मीडिया में उनका करियर भी विवादों से भरा रहा। ब्रसेल्स में रहने के दौरान बोरिस ने दूसरी शादी भी की। तलाक के 12 दिन बाद ही उन्होंने मरीना व्हीलर से शादी कर ली जो उस समय उनके बच्चे की मां बनने वाली थीं। आज दोनों के चार बच्चे हैं। लंदन लौटने के बाद वे 'टेलिग्राफ ' के मुख्य राजनीतिक लेखक बन गए। बाद में वह 'स्पेक्टेटर' के संपादक बन गए और राजनीति में अपनी जगह भी बनाई। हालांकि एक साथी पत्रकार के साथ उनके अफेयर के चलते उन्हें शैडो कैबिनेट से हाथ धोना पड़ा और इसके कारण वे घर से भी निकाले गए।
2005 में डेविड कैमरन द्वारा मौका न दिए जाने के बाद जॉनसन ने लंदन के मेयर का चुनाव लड़ा। वे जीत गए और 2012 के लंदन ओलंपिक के दौरान भी वहां के मेयर रहे। जब ब्रेक्जिट की बात आई तो बोरिस को लगा कि यह बेहद सही मौका है। ब्रेक्जिट के पक्ष में वोट पड़ते ही बोरिस की अहमियत बढ़ गई। कैमरन का इस्तीफा होने से बोरिस राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित हो गए। विदेश सचिव के रूप में उनके दो साल के कार्यकाल ने उन्हें बड़ा मुकाम दिला दिया था।