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ब्रिटेन के बाशिंदों के लिए देशव्यापी संकट बनीं दांत की बीमारियाँ

raghvendra
Published on: 19 Jan 2018 9:58 AM GMT
ब्रिटेन के बाशिंदों के लिए देशव्यापी संकट बनीं दांत की बीमारियाँ
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ब्रिटेन के बाशिंदों के दांतों का क्या हाल है यह इसी से पता चलता है कि 2017 में देश भर के अस्पतालों में रोजाना औसतन 170 युवाओं ने अपने दांत उखड़वाए। देश की जनसंख्या के लिहाज से यह एक बहुत बड़ा संकट है और इसके लिये शक्कर को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।

ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विसेज द्वारा खर्च की गयी रकम के आंकड़े बताते हैं कि 2016-17 में 18 साल से कम उम्र के युवाओं के दांत उखाडऩे के लिए 42,911 ऑपरेशन किये गए जिस पर 36 मिलियन पौंड से ज्यादा लागत आयी। वर्ष 2012-13 के मुकाबले यह 17 फीसदी की वृद्धि है। अस्पताल में दांत के ऑपरेशन से मतलब है कि जब मरीज को जनरल अनेस्थेसिया देने की जरूरत पड़ी हो, जो किसी डेंटिस्ट द्वारा नहीं दिया जा सकता है।

आंकड़े के अनुसार 2012 से एनएचएस ऐसे इलाजों पर 165 मिलियन पौंड खर्च कर चुका है। एनएचएस के बाहर दांतों का कितना इलाज किया गया इसके आंकड़े जोड़ दिये जायेंगे तो स्थिति और भी विकराल रूप ले लेगी। ब्रिटिश डेंटल एसोसिएशन ने कहा है कि सरकार दांत संबंधी समस्या के प्रति उदासीन रवैया अपनाये हुए है और इससे निपटने के लिये कोई सख्त कदम नहीं उठा रही।

ब्रिटेन की लोकल गवर्नमेंट एसोसिएशन ने सेहत के लिए खऱाब चीज़ों और सॉफ्ट ड्रिंक्स पर बैन लगाने की मांग की है। यह भी मांग की जा रही है कि सॉफ्ट ड्रिंक्स में शक्कर की मात्रा सीमित की जाये और लेबल में यह लिखा जाये कि इसमें कितने चम्मच शक्कर है। बहरहाल, ये तो तय है कि ब्रिटेन में शक्कर युक्त खाने-पीने की चीजों के प्रति किशोरों और बच्चों में एडिक्शन जैसा है।

एनएचएस का कहना है कि दांत उखड़वाने की मौजूदा स्थिति ‘महामारी’ समान है जिसे टाला जा सकता है। इस दिशा में दांत के डाक्टरों, स्थानीय प्रशासन, अस्पताल के साथ मिल कर यह अभियान चलाया जा रहा है कि 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का डेंटल चेक अप समय रहते हो जाया करे।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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