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चीन की बेरहमी: जबरदस्ती बना रहा मजदूर, दे रहा ऐसी कठोर सजा

चीनी सरकार तिब्बत में बड़े पैमाने पर अनिवार्य ‘वोकेशनल ट्रेनिंग’ प्रोग्राम चला रही है। इस साल सात महीनों के भीतर पांच लाख से ज्यादा ग्रामीण मजदूरों को इन ट्रेनिंग सेंटरों में भेजा गया है। जर्मनी के मानवविज्ञानी डॉ एड्रिअन जेंज़ ने चीन की हरकतों के साक्ष्य एकत्र किये हैं।

Newstrack
Published on: 29 Sept 2020 7:14 PM IST
चीन की बेरहमी: जबरदस्ती बना रहा मजदूर, दे रहा ऐसी कठोर सजा
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चीन की बेरहमी: जबरदस्ती बना रहा मजदूर, दे रहा ऐसी कठोर सजा

नीलमणि लाल

चीन ने कम से कम 5 लाख तिब्बतियों को जबरदस्ती लेबर कैम्पों में भेज दियाहै। चीन ने इसके लिए पश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र में सेना की तरह के ट्रेनिंग सेंटर बनाये हैं। नयी जानकारियों के अनुसार, चीनी सरकार तिब्बत में बड़े पैमाने पर अनिवार्य ‘वोकेशनल ट्रेनिंग’ प्रोग्राम चला रही है। इस साल सात महीनों के भीतर पांच लाख से ज्यादा ग्रामीण मजदूरों को इन ट्रेनिंग सेंटरों में भेजा गया है। जर्मनी के मानवविज्ञानी डॉ एड्रिअन जेंज़ ने चीन की हरकतों के साक्ष्य एकत्र किये हैं। डॉ जेंज़ इस एपहले चीन के शिन्जियांग क्षेत्र में उइघुरों की बड़े पैमाने पर डिटेंशन सेंटरों में बंदी का खुलासा कर चुके हैं।

ब्रेनवाशिंग की जाती है

चीन के इन लेबर कैम्पों में रखे गए लोगों की ब्रेन वाशिंग की जाती है और उनको चीन की कम्यूनिस्ट विचारधारा में ढाला जाता है। इन कैम्पों में सघन निगरानी रखी जाती है और जो नियमों का उल्लंघन करने पर कड़ी सज़ा दी जाती है। डॉ जेंज़ की रिपोर्ट के मुताबिक बीजिंग ने तिब्बत के भीतर ग्रामीण श्रमिकों को व्यापक तौर पर इधर से उधर भेजने का कोटा तय कर रखा है। कोटा पूरा न होने पर सख्त सजा दी जाती है।

लेबर ट्रान्सफर पालिसी

श्रमिकों को एक इलाके से दूसरे इलाके में भेजने की नीति में कहा गया है कि किसान और कृषि मजदूर केन्द्रीयकृत मिलिट्री स्टाइल वोकेशनल ट्रेनिंग पाएंगे जिसका मकसद पिछड़ी सोच को बदलना है। ट्रेनिंग में कार्य अनुशासन के अलावा कानून और चीनी भाषा की जानकारी शामिल है। मजदूरों को सरकार और देश के साथ वफादारी की ट्रेनिंग भी दी जा रही है। इन कैंप्स के जरिए चीन अपने उद्योगों के लिए सस्ते और वफादार श्रमिकों को पैदा कर रहा है। चीन पर पहले भी अंतरराष्ट्रीय श्रमिक नियमों के उल्लंघन के कई गंभीर आरोप लग चुके हैं।

China force Tibetans into labor-3

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तिब्बत की क्षेत्रीय सरकार की वेबसाइट पर पिछले महीने पोस्ट किए गए एक नोटिस में कहा गया है कि साल 2020 के पहले सात महीनों में परियोजना के हिस्से के रूप में लगभग 5 लाख लोगों को प्रशिक्षित किया गया है। यह इस क्षेत्र की आबादी का 15 फीसदी हिस्सा है। इनमें से 50, 000 लोगों को तिब्बत के अंदर ही अलग-अलग कंपनियों में काम करने के लिए भेजा गया है। जबकि, बाकी बचे लोगों को चीन के अन्य हिस्सों में ट्रांसफर किया गया है। इनमें से अधिकतर को कम मजदूरी वाले टेक्सटाइल मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन और एग्रीकल्चर के फील्ड में काम पर रखा गया है।

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1966 से 1976 की चीन की सांस्कृतिक क्रांति के बाद से यह पारंपरिक तिब्बती आजीविका पर अबतक का सबसे मजबूत, सबसे स्पष्ट और लक्षित हमला है। इससे न केवल तिब्बती संस्कृति खत्म होगी बल्कि लोगों के सामने आजीविका का संकट भी खड़ा हो जाएगा। अमेरिका की जेम्सटाउन फ़ाउंडेशन की विस्तृत रिपोर्ट में भी कहा गया है कि यह तिब्बत के खानाबदोश और खेती करने वाले लोगों को दिहाड़ी मजदूर बनाने की साजिश है।

China force Tibetans into labor-2

आरोपों को किया खारिज

स्वाभाविक है कि चीन के विदेश मंत्रालय ने इन आरोपों को खारिज कर दिया है। मंत्रालय ने बयान में कहा कि चीन कानून के शासन वाला देश है और श्रमिक स्वैच्छिक हैं और उचित रूप से मुआवजा दिया जाता है। इन लोगों को उल्टे इरादों वाले लोग बंधुआ मजदूर कह रहे हैं जो उचित नहीं है। हमें उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय गलत से अलग होकर सही के पक्ष में खड़ा होगा। तथ्यों का सम्मान करेगा और झूठ से मूर्ख नहीं बनेगा।

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