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China COSCO: ग्रीस के सबसे बड़े पोर्ट का मालिक बना चीन
China COSCO: एक दशक पहले बुरे आर्थिक संकट में फंसे ग्रीस ने अपने करीब सारे अहम बंदरगाह और एयरपोर्ट विदेशी कंपनियों को बेच दिए हैं।
China COSCO: जर्मन के हैम्बर्ग पोर्ट में हिस्सेदारी खरीदने वाली चीनी कंपनी कॉस्को, 2016 से ग्रीस के सबसे बड़े पोर्ट परेयस की मालिक बन गयी है। यानी, ग्रीस का मुख्य पोर्ट एक विदेशी ताकत के हाथ में है। इसके पहले चीन ने श्रीलंका और घाना में बंदरगाहों को खरीद रखा है।
जर्मन सरकार ने देश के सबसे बड़े बंदरगाह हैम्बर्ग के एक टर्मिनल की आंशिक हिस्सेदारी चीन की सरकारी कंपनी कॉस्को को बेचने के सौदे को हरी झंडी दे दी है।
एक दशक पहले बुरे आर्थिक संकट में फंसे ग्रीस ने अपने करीब सारे अहम बंदरगाह और एयरपोर्ट विदेशी कंपनियों को बेच दिए हैं। कर्ज संकट से निपटने और यूरोपीय आयोग, यूरोपीय सेंट्रल बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की शर्तें पूरी करने के लिए ग्रीस को कई बदलाव करने थे। 2016 में एथेंस की सरकार ने देश के अहम परेयस पोर्ट की दो तिहाई हिस्सेदारी कॉस्को को बेच दी। परेयस ग्रीस का मुख्य बंदरगाह है।
ग्रीस की सरकार इस सौदे से अब भी संतुष्ट दिखाई पड़ती है। फरवरी 2021 में ग्रीस के प्रधानमंत्री किरियाकोस मिटसोटाकिस ने चीन और मध्य व पूर्वी यूरोप के 17 देशों के पहले सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था कि - परेयस में चीन का निवेश दोनों देशों के लिए फायदेमंद है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी परेयस में कॉस्को के निवेश को "मिसाल पेश करने वाला प्रोजेक्ट करार" दिया था। 2019 में शी ने खुद परेयस पोर्ट का दौरा किया और उसे "चीन और यूरोप के तेज भू-समुद्री लिंक का अहम ठिकाना" बताया था। बिल्कुल ऐसे दोतरफा फायदे की बात जर्मन सरकार ने भी कही है।
चीन ने परेयस के पोर्ट का आधुनिकीकरण किया है। अब यह पूर्वी भूमध्यसागर का सबसे बड़ा और यूरोप का सातवां बड़ा बंदरगाह है। लोगों का रोजगार सुरक्षित है और काम करने की परिस्थितियां बाकी ग्रीस जैसी ही हैं। कागजों में ग्रीस के प्रशासन को पोर्ट के निरीक्षण का अधिकार है, लेकिन अधिग्रहण के बाद ऐसा शायद ही हुआ है। असलियत में सब चीन के हाथ में जा चुका है। परेयस पोर्ट पर काम करने वाले कर्मचारियों की यूनियन बार बार बुरे हालात में काम करने शिकायतें करती रही है।
चीनी प्रोडक्ट्स के लिए अहम ठिकाना
कॉस्को के परेयस पोर्ट खरीदने के बाद ग्रीस के इस बंदरगाह पर चीनी सामान की बाढ़ सी आ गई है। इसका असर भूमध्यसागर के दूसरे बंदरगाहों पर भी पड़ा है और अब उनकी अहमियत बहुत कम हो गई है, उनके राजस्व में कमी आई है और नौकरियां खतरे में पड़ी हैं।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर किसी देश की अपनी राष्ट्रीय पोर्ट नीति को लेकर कोई नजरिया या पैसा नहीं है तो इस व्यवस्था को सफल कह सकते हैं। यूरोप में दूसरी जगहों पर जिस तरह चीन ने निवेश किया है, उसकी तुलना ग्रीस ने नहीं की जा सकती। यूरोपीय संघ के दूसरे देशों ने प्राइवेट कंपनियों को कुछ साल के लिए हिस्सेदारी बेची है। साथ ही कंटेनर टर्मिनल के भीतर कई कंपनियां प्रतिस्पर्धा के माहौल में काम करती हैं लेकिन ग्रीस में स्थिति पूरी तरह अलग है।
नियंत्रण तीसरे देश को
परेयस के अधिकतर शेयर कॉस्को के पास हैं। शुरू में यह हिस्सेदारी 51 फीसदी थी, जो बाद में 67 फीसदी हो गई। अब चीनी कंपनी इस पोर्ट का भविष्य तय कर सकती है। कॉस्को पोर्ट हर टर्मिनल और पियर (एक तरह का डॉकिंग स्ट्रक्चर) को कंट्रोल करती है। यानी परेयस का पोर्ट अब सीधे तौर पर पूरी तरह एक तीसरे देश, यानी चीन पर निर्भर है। इस बीच उत्तरी ग्रीस के एक और अहम पोर्ट आलेक्जांड्रोपोलिस का भी निजीकरण होने जा रहा है। इसे अमेरिका खरीदना चाहता है क्योंकि आलेक्जांड्रोपोलिस में अमेरिकी हथियारों की खेप आती है। आलोचक कहते हैं कि अहम आधारभूत ढांचे के निजीकरण वाले ऐसे सौदे, यूरोपीय संघ की भूरणनैतिक अहमियत खत्म कर तीसरे देश को बड़ी शक्ति दे देते हैं। जो आगे चल कर खतरनाक साबित हो सकता है। चीन की विस्तारवादी नीति पूरे अफीकी महाद्वीप में साफ़ देखी जा सकती है।
निजीकरण का सहारा
इस शताब्दी की शुरुआत से ही यूरोप ने आर्थिक समस्याओं से निपटने के लिए निजीकरण का सहारा लिया। इसके तहत पोर्ट, एयरपोर्ट, बिजली और पानी सप्लाई निजी हाथों में सौंप दी गई। निवेश के लिए छटपटाते ग्रीस ने भी यही किया। परेयस और थेसालोनिकी के पोर्ट को लेकर सबसे पहले चीन ने दिलचस्पी दिखाई। तब ग्रीस के कर्मचारियों ने दबाव बनाकर ऐसे सौदों को टलवा दिया। 2007 के आर्थिक मंदी और उसके बाद दिवालिया होने की हद तक पहुंचे ग्रीस में कोस्टास कारोमानलिस की सरकार ने परेयस का कंटेनर टर्मिनल 2009 में कॉस्को को बेच दिया। 2010 में ग्रीस बुरे कर्ज संकट में फंस गया। खराब आर्थिक संकट के कारण दूसरे देश ग्रीस में निवेश करने से हिचक रहे थे, चीन ने ऐसी झिझक नहीं दिखाई। चीन यही काम श्रीलंकामें बखूबी कर चुका है।
आर्थिक सुधारों के नाम पर यूरोपीय संघ, यूरोपीय सेंट्रल बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने ग्रीस पर निजीकरण का दबाव बनाया। इसके चलते एथेंस ने अपने 14 एयरपोर्ट भी बेच दिए। ये सारे एयरपोर्ट जर्मन कंपनी फ्रैपोर्ट को मिले। अब जर्मन कंपनी तय कर सकती है, उसे किस एयरपोर्ट से फायदा हो रहा है और किससे नहीं।