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चीन की मजबूरी, CPEC के लिए आतंकी मसूद अजहर बहुत जरुरी
पुलवामा हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने जैश-ए-मोहम्मद का नाम लेते हुए इस आतंकी संगठन की निंदा की थी। जैश का सीधे तौर पर नाम लिए जाने के बाद चीन पर काफ़ी दबाव पड़ा था कि वो भी मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय चरमपंथी माने। ऐसा इसलिए है क्योंकि चीन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है और आतंक के खिलाफ वो दोहरा रुख नहीं अपना सकता।
लखनऊ : पुलवामा हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने जैश-ए-मोहम्मद का नाम लेते हुए इस आतंकी संगठन की निंदा की थी। जैश का सीधे तौर पर नाम लिए जाने के बाद चीन पर काफ़ी दबाव पड़ा था कि वो भी मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय चरमपंथी माने। ऐसा इसलिए है क्योंकि चीन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है और आतंक के खिलाफ वो दोहरा रुख नहीं अपना सकता।
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आप को बता दें, चीन हमेशा मसूद को बचाता रहा है, लेकिन जब सुरक्षा परिषद ने मसूद पर निशाना साधा तो चीन ने उसका विरोध नहीं किया। वहीं अब चीन टेंशन में है कि उसके महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट CPEC पर आतंक का साया पड़ सकता है।
आइए जानते हैं क्यों जरुरी है चीन के लिए मसूद
मसूद अजहर का आतंकी नेटवर्क पीओके से लेकर ख़ैबर पख़्तूनख़्वा और बलूचिस्तान तक ना सिर्फ फैला है बल्कि बहुत मजबूत भी है।
मसूद अजहर के आतंकियों की मौजूदगी वाले इलाकों में ही चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का काम चल रहा है।
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पाकिस्तान चीन को हमेशा ये समझाता रहा है कि यदि उसने मसूद को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करने में हामी भरी तो उसके आतंकी CPEC को निशाना बनाएंगे। चीन CPEC में करोड़ों डॉलर खर्च कर चुका है ऐसे में उसकी मज़बूरी रही है कि मसूद को बचाने के लिए वीटो का प्रयोग कराता रहे। लेकिन इस बार चीन पर भारी दबाव कि वो दुनिया के सामने ये साबित करे कि आतंकी गतिविधियों को लेकर वो गंभीर है।
सूत्रों के मुताबिक चीन जल्द ही बड़ी संख्या में ख़ैबर पख़्तूनख़्वा और बलूचिस्तान में अपने सुरक्षाकर्मी तैनात कर सकता है।