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चीन हमले को तैयार: इंटरनेट से मचाएगा तबाही, निशाने पर सारे देश

ड्रैगन ने इंटरनेट टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की एक बड़ी योजना शुरू की है। इस योजना की शुरूआत बीजिंग में की गई है।

Vidushi Mishra
Written By Vidushi Mishra
Published on: 11 May 2021 7:55 AM GMT (Updated on: 11 May 2021 9:08 AM GMT)
भविष्य के इंटरनेट को हमलों से पूरी तरह सुरक्षित रहना होगा। इसका संबंध हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा से है।’
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चीन की नई योजना(फोटो-सोशल मीडिया)

नई दिल्ली: चीन (China) अपनी चालबाजियों से बाज नहीं आ रहा है। ऐसे में चीन ने एक बार फिर घातक योजना बनाई है। ड्रैगन ने इंटरनेट टेक्नोलॉजी (Internet Technology) के इस्तेमाल की एक बड़ी योजना शुरू की है। इस योजना की शुरूआत बीजिंग (Beijing) में की गई है। अपनी योजना के तहत टेक्नोलॉजी का सहारा लेते हुए चीन किसी नए मोड़ पर नए हमले की तैयारी में है।

ऐसे में जानकारों के अनुसार, चीन जिस तकनीक का प्रयोग कर रहा है, अगले दस साल तक उसकी ही मांग रहेगी। इस टेक्नोलॉजी परियोजना पर अमल के लिए शिंघुआ यूनिवर्सिटी में इसका मुख्यालय बनाया गया है। इसे 'भावी इंटरनेट टेक्नोलॉजी इऩ्फ्रास्ट्रक्चर' नाम दिया गया है।

चीन की इस परियोजना के तहत देश के 40 विश्वविद्यालयों को विशाल बैंडविड्थ वाले ऐसे इंटरनेट नेटवर्क से जोड़ा जाएगा। साथ ही इसमें यूजर के एक्शन और वेब एप्लीकेशन के रिस्पॉन्स के बीच का विलंब बुहत कम हो जाएगा।


बताया जा रहा कि चीन की योजना चीन के सबसे बड़े शहरों को नेटवर्क आविष्कार के एक एनवायरमेंट (चाइना एनवायरमेंट फॉर नेटवर्क इनोवेशन्स- सीईएनआई) से जोड़ने की है। जिसके चलते विश्वविद्यालयों के बीच बनाया जा रहा नेटवर्क इस प्रस्तावित नेटवर्क के बैकबोन (यानी रीढ़) का काम करेगा।

इंटरनेट के जरिए बड़ा खतरा

ये सीईएनआई 2023 में बन कर तैयार होगा। इस बारे में जानकारों का कहना है कि फ्यूचर इंटरनेट का ऐसा प्रतिरूप होगा, जिससे कंप्यूटर से लेकर कार तक लगभग सब कुछ जुड़े होंगे। इसका संचालन आर्टिफिशियल इंटलिजेंस (आईए) के जरिए होगा। साथ ही बताया जा गया है कि यह एक निर्बाध संचार का नेटवर्क बनेगा।


इसी कड़ी में शिंघुआ यूनिवर्सिटी में इस प्रोजेक्ट से जुड़े एक वैज्ञानिक ने कहा- 'इस प्रोजेक्ट में कई सुरक्षा इंतजाम करने होंगे। भविष्य के इंटरनेट को हमलों से पूरी तरह सुरक्षित रहना होगा। इसका संबंध हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा से है।'

तो ये बात बहुत ही ध्यान देने वाली है कि चीन में इंटरनेट का शुरुआती ढांचा पश्चिमी तकनीक से तैयार हुआ था। इस वजह से उसकी सुरक्षा के लिए चुनौतियां बनी रहीं। अमेरिका सरकार के प्रिज्म प्रोजेक्ट के तहत इन कमजोरियों का लाभ उठाया गया। साथ ही अमेरिका ने उसके जरिए चीन सरकार और उसके अनुसंधान संस्थानों में पैठ कर ली। बता दें, इस बात का खुलासा अमेरिकी ह्विसल्ब्लोअर एडवर्ड स्नोडेन ने किया था।

अमेरिका से इस खुलासे के बाद चीन ने पश्चिमी हार्डवेयर बदलने की विशाल परियोजना शुरू की थी। और ये काम तेजी से आगे बढ़ा। शायद उसी का परिणाम है कि हाल के वर्षों में चीन की हुवावे जैसी दूरसंचार कंपनियों ने 5जी तकनीक और कई अन्य तकनीकों के मामले में पश्चिमी कंपनियों को पीछे छोड़ दिया है। लेकिन अभी भी कई सॉफ्टवेयर और प्रोटोकॉल्स के मामले में पश्चिमी देशों का प्रभाव चीन के नेटवर्कों पर कायम है। लेकिन अब चीन उससे भी मुक्ति पाना चाहता है।


चीन की योजना में शामिल ये

बता दें, अमेरिका ने भी कई प्रायोगिक नेटवर्कों की शुरुआत की है। जिनमें ग्लोबल एनवायरमेंट फॉर नेटवर्क इनोवेशन्स (GENI) भी शामिल है। जिसके चलते अमेरिका का एकमात्र उद्देश्य इंटरनेट तकनीक के मामले में अपनी बढ़त कायम रखना है। यूरोपियन यूनियन, जापान और दक्षिण कोरिया ने भी ऐसी परियोजनाएं अपने यहां शुरू की हैं।

अमेरिकी जीईएनआआई के जवाब में चीन ने सन् 2019 में सीईएनआई परियोजना की शुरुआत की थी। इसके तहत चीन एक बिल्कुल नए ऑपरेटिंग सिस्टम को तैयार करने की कोशिश कर रहा है। इस कोशिश से डाटा प्रवाह और उपकरणों के बीच संवाद का प्रबंधन किया जाएगा।

वहीं सीईएनआई से ताल्लुक रखने वाले वैज्ञानिक तान हांग के अनुसार, इन सारे कार्यों में चीन के अंदर बने कंप्यूटर, राउटर, सर्व और कंप्यूटर चिप्स का इस्तेमाल होगा। चीन ने इस परियोजना के लिए 26 करोड़ डॉलर का बजट रखा है।

बता दें, चीन पहले ही दुनिया का सबसे बड़ा 5जी नेटवर्क बनाने का काम शुरू कर चुका है। इस पर विशेषज्ञों का कहना है कि निकट भविष्य में ही कई बिल्कुल नए प्रकार के उपकरण सामने आएंगे। इनमें इंटरनेट से जुड़ी खुद चलने वाली कारें भी हैं।

साथ ही ऐसे सभी उपकरणों की सफलता इस पर निर्भर करेगी कि विशाल मात्रा में बिना किसी पल की देर के डाटा का प्रवाह किस हद तक संभव होता है। चीन ने अब उसी दिशा में तैयारी शुरू कर दी है। जिसमें नेटवर्क पर अपनी अच्छी पकड़ बनाने में लगा हुआ है।


जैविक हथियार पर चीन के लेकर दावा सच या झूठ

दूसरी तरफ चीन से पूरी दुनिया में फैले कोरोना वायरस को लेकर कोई ये मानने को तैयार नहीं, कि जिस चीन में कोरोना वायरस पैदा हुआ है वो देश इसके असर से इतनी जल्दी और इतना सुरक्षित कैसे हो गया? आखिर कैसे चीन में 6 से 8 महीने में सब कुछ पहले जैसा हो गया। जबकि भारत और दुनिया के तमाम देश करीब 2 साल से इस बीमारी से जंग लगातार लड़ ही रहे हैं।

ऐसे में इस बारे में अब एक नई रिपोर्ट के खुलासे से कोरोना वायरस को लेकर चीन के इरादों पर शक और भी गहरा होता जा रहा है।

दरअसल ये रिपोर्ट 2015 के घटनाक्रम से जुड़ी है। इस दौरान जब दुनिया में कोरोना वायरस के घातक प्रभाव से लोग अनजान थे, लेकिन उसी समय ड्रैगन देश चीन कोरोना वायरस को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने के बारे में जांच कर रहा था।


और तो और यही नहीं, आशंका है तो ये भी है कि चीनी सैन्य वैज्ञानिकों ने तीसरा विश्व युद्ध जैविक हथियार से लड़े जाने की भविष्यवाणी की थी। बता दें, अमेरिकी विदेश विभाग को मिले खुफिया दस्तावेजों के हवाले से मीडिया रिपोर्ट में ये दावा किया गया है।

ऐसे में ब्रिटेन के 'द सन' न्यूजपेपर ने ऑस्ट्रेलिया के समाचार पत्र 'द ऑस्ट्रेलियन' की तरफ से ये दावा भी किया गया है कि अमेरिकी विदेश विभाग को हाथ लगे इस 'बॉम्बशेल' यानी कि विस्फोटक जानकारी के अनुसार चीनी सेना PLA के कमांडर ये कुटिल पूर्वानुमान लगा रहे थे।

वहीं अमेरिकी अधिकारी को मिले ये कथित दस्तावेज साल 2015 में सैन्य वैज्ञानिकों और चीन के स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा लिखे गए थे, जो कि खुद कोविड-19 के बारे में जांच कर रहे थे।

इस बारे में चीनी वैज्ञानिकों ने सार्स कोरोना वायरस की चर्चा 'जेनेटिक हथियार के नए युग' के तौर पर की है, कोविड इसका एक उदाहरण है। जबकि PLA के दस्तावेजों में इस बात की चर्चा है कि एक जैविक हमले से शत्रु की स्वास्थ्य व्यवस्था को ध्वस्त किया जा सकता है। जोकि इस समय भारत और कई देशों की स्थिति बनी हुई है।

Vidushi Mishra

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