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नेपाल में चुनाव के सिवा नहीं बचा विकल्प, ओली और प्रचंड को मनाने में चीन नाकाम

प्रधानमंत्री ओली के प्रतिनिधि सभा भंग करने की सिफारिश के बाद ही चीन सक्रिय हो गया था। नेपाल में चीन की राजदूत होऊ यांकी ने दोनों दलों के नेताओं से बातचीत कर विवाद सुलझाने की कोशिश की थी मगर वे नाकाम रहीं।

SK Gautam
Published on: 2 Jan 2021 10:00 AM GMT
नेपाल में चुनाव के सिवा नहीं बचा विकल्प, ओली और प्रचंड को मनाने में चीन नाकाम
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नेपाल में चुनाव के सिवा नहीं बचा विकल्प, ओली और प्रचंड को मनाने में चीन नाकाम

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली। नेपाल में तमाम कोशिशों के बावजूद चीन सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) में विभाजन रोकने में नाकाम रहा है। नेपाल में चीन की राजदूत के अलावा चीन से आए कम्युनिस्ट नेता प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली तथा असंतुष्ट धड़े के नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड को मनाने में पूरी तरह नाकाम रहे। चीन की इस नाकामी और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन के बाद अब देश में चुनाव के अलावा दूसरा विकल्प नहीं बचा है। चीन की यह नाकामी भारतीय नजरिए से अच्छी मानी जा रही है क्योंकि भारत भी नेपाल में नए सिरे से चुनाव चाहता था।

ओली के इस कदम के बाद सक्रिय हुआ चीन

प्रधानमंत्री ओली के प्रतिनिधि सभा भंग करने की सिफारिश के बाद ही चीन सक्रिय हो गया था। नेपाल में चीन की राजदूत होऊ यांकी ने दोनों दलों के नेताओं से बातचीत कर विवाद सुलझाने की कोशिश की थी मगर वे नाकाम रहीं। इसके बाद चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के वाइस मिनिस्टर गुओ येझोऊ की अगुवाई में चीन से कम्युनिस्ट नेताओं का एक दल नेपाल पहुंचा।

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अब ओली भी चीन से नाराज

चीनी कम्युनिस्ट नेताओं के दल ने ओली और प्रचंड दोनों से बातचीत के साथ ही कम्युनिस्ट पार्टी के अन्य नेताओं से भी बातचीत की मगर चीन के कम्युनिस्ट नेता भी दोनों दलों में एका कराने में पूरी तरह नाकाम रहे। चीन की मदद से अभी तक सत्ता चला रहे पीएम ओली भी अब चीन से नाराज हो गए हैं। प्रतिनिधि सभा भंग करने की ओली की सिफारिश के बाद चीन ने ओली से किनारा करने और उनकी जगह प्रचंड को आगे करने की रणनीति अपनाई थी।

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प्रचंड ने भी नहीं दिखाई दिलचस्पी

चीन ने इस रणनीति के तहत ओली और प्रचंड दोनों को मनाने की कोशिश की। चीन की ओर से ओली को किनारे करके प्रचंड के नाम पर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में आम सहमति बनाने के प्रयास से ओली भी नाराज हो गए। प्रचंड गुट ने भी चीन की कोशिशों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई। माना जा रहा है कि इसी कारण नेपाल में चीन की हर चाल नाकाम हो गई है।

चीन की नाकामी भारत के लिए अच्छी

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में खींचतान के बाद पैदा हुए सियासी संकट के बीच भारत चीन की हर चाल पर सतर्क नजर रखे हुए हैं। चीन की नाकामी भारतीय नजरिए से अच्छी मानी जा रही है क्योंकि भारत भी वहां नए सिरे से चुनाव चाहता है ताकि पड़ोसी मुल्क में भारत समर्थक ताकतों को जीत हासिल हो सके।

एनसीपी में विभाजन से चुनाव तय

ओली और प्रचंड गुटों के अपने-अपने रुख पर अड़े रहने के कारण अब एनसीपी में विभाजन तय है और ऐसी स्थिति में नेपाल में चुनाव के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है। इसका एक बड़ा कारण यह भी बताया जा रहा है क्योंकि ओली और प्रचंड दोनों अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं दिख रहे हैं।

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चुनाव में बंटेंगे कम्युनिस्ट वोट

सियासी जानकारों का कहना है कि दो साल पहले नेपाल में अलग-अलग कम्युनिस्ट पार्टियों का विलय होने के बाद भारत की परेशानी बढ़ी थी। ओली ने नेपाल के विवादित नक्शे के साथ ही अनेक ऐसे कदम उठाए जो भारत को मुंह चिढ़ाने वाले थे। अब ओली और प्रचंड की अगुवाई में कम्युनिस्ट पार्टी दो फाड़ हो चुकी है और ऐसी स्थिति में चुनाव होने पर कम्युनिस्ट वोट बंटना तय माना जा रहा है।

ओली के दावे को आयोग ने किया खारिज

इस बीच प्रधानमंत्री ओली ने दावा किया है कि उनके नेतृत्व वाली नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की असली है और चुनाव चिह्न सूर्य भी उन्हीं का है। उन्होंने दावा किया कि चुनाव आयोग ने प्रचंड और उनके गुट के वरिष्ठ नेता माधव नेपाल का दावा खारिज कर दिया है।

दूसरी ओर चुनाव आयोग का कहना है कि अभी तक नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के असली गुट और चुनाव चिह्न को लेकर कोई फैसला नहीं किया गया है।

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन के बाद दोनों गुटों की ओर से खुद को असली पार्टी बताने के साथ ही चुनाव चिह्न पर भी दावा किया जा रहा है। ऐसे में चुनाव आयोग के सामने भी बड़ी मुसीबत खड़ी हो गई है।

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nepal against china

चीन के बढ़ते दखल से लोगों में गुस्सा

दूसरी और नेपाल में चीन के बढ़ते दखल से लोगों में खासी नाराजगी दिख रही है। हाल के दिनों में चीन के खिलाफ काठमांडू में कई बार प्रदर्शन हो चुके हैं। इन प्रदर्शनों के दौरान लोगों ने चीन की बढ़ती घुसपैठ के खिलाफ बैनर और पोस्टर भी लहराए। इन पोस्टरों में नेपाल में चीनी हस्तक्षेप बंद करने के साथ ही चीन द्वारा कब्जा की गई जमीन को लौटाने की भी मांग की गई। प्रदर्शनकारियों ने चीन वापस जाओ के नारे भी बुलंद किए।

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