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वीगर मुस्लिम नेता डोल्कम ईसा पर इंटरपोल के फैसले से खफा चीन

raghvendra
Published on: 28 Feb 2018 9:33 AM GMT
वीगर मुस्लिम नेता डोल्कम ईसा पर इंटरपोल के फैसले से खफा चीन
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चीन ने इंटरपोल द्वारा निर्वासित वीगर मुसलमान नेता डोल्कम ईसा से वॉन्टेड का अलर्ट वापस ले लिये जाने पर गहरी नाराजगी जताई है। चीन का कहना है कि इंटरपोल ने जिस व्यक्ति से वॉन्टेड का अलर्ट वापस लिया है वो आतंकवादी है। वीगर समुदाय में चीन के पश्चिमी इलाके शिन्जियांग में रहता है और इनमें अधिकांश मुस्लिम हैं। पिछले कुछ सालों में सैकड़ों वीगर मुसलमानों की मौत हुई है।

असल में एक करोड़ वीगर और बहुसंख्यक हान चीनियों के बीच संघर्ष वर्षों से चल रहा है। चीन इस अशांति के लिए अलगाववादी इस्लामिक चरमपंथियों को जिम्मेदार ठहराता है। मानवाधिकार समूहों और निर्वासितों का कहना है कि धर्म और संस्कृति पर चीनी नियंत्रण के कारण लोगों में गुस्सा है।

इंटरपोल का रेड नोटिस वांछित व्यक्ति के लिए अंतरराष्ट्रीय अलर्ट होता है लेकिन यह कोई गिरफ्तारी वॉरंट नहीं होता है। चीन के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि ‘डोल्कम ईसा आंतकवादी है और उन्हें चीनी सरकार ने चिह्नित किया है।’ चीन का कहना है कि इंटरपोल की तरफ से रेड नोटिस जारी किए जाने के पक्ष में उसके पास पक्के सबूत हैं। जबकि इंटरपोल ने कहा है कि वो किसी खास केस में टिप्पणी नहीं कर सकता।

ईसा 2006 से जर्मन नागरिक हैं। वहीं, वल्र्ड वीगर कांग्रेस के प्रवक्ता दिल्श्यात रैक्शिट का कहना है कि ईसा पर आरोप पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है और चीन ईसा के खिलाफ ठोस सबूत पेश करने में नाकाम रहा है। रैक्शिट ने कहा कि ईसा शिन्जियांग के पूर्व छात्र नेता रहे हैं और वो हर तरह के आतंकवाद की निंदा करते हैं। राजनयिक सूत्रों का कहना है कि चीन लगातार यूरोपीय देशों पर ईसा को गिरफ्तार करने का दबाव बनाता रहा है, लेकिन उसने ईसा के खिलाफ कभी सबूत मुहैया नहीं कराए।

चीन के शिनजियांग में सरकार ने इस्लामी चरमपंथ के खिलाफ अभियान के तहत वीगर मुस्लिमों पर नए प्रतिबंध लगाए हैं। इनमें असामान्य रूप से लंबी दाढ़ी रखने, सार्वजनिक स्थानों पर नकाब लगाने और सरकारी टीवी चैनल देखने से मना करने जैसी पाबंदियाँ शामिल हैं। शिनजियांग में इस तरह की पाबंदियां कोई पहली बार नहीं लगी हैं, साल 2014 के रमजान में मुसलमानों के रोजे रखने पर रोक लगा दी गई थी।

शिनजियांग में चीनी प्रशासन और यहां के स्थानीय वीगर जनजातीय समुदाय के बीच संघर्ष का बहुत पुराना इतिहास है। वीगर असल में मुसलमान हैं और सांस्कृतिक और जनजातीय रूप से वे खुद को अरब देशों के नजदीकी मानते हैं। सदियों से इस इलाके की अर्थव्यवस्था कृषि और व्यापार केंद्रित रही है। यहां के काशगर जैसे कस्बे प्रसिद्ध सिल्क रूट के बहुत सम्पन्न केंद्र रहे हैं। बीसवीं शताब्दी के शुरुआती दिनों में वीगरों ने थोड़े समय के लिए खुद को आजाद घोषित कर दिया था। इस इलाके पर कम्युनिस्ट चीन ने 1949 में पूरी तरह नियंत्रण हासिल कर लिया था।

दक्षिण में तिब्बत की तरह ही शिनजियांग भी आधिकारिक रूप से स्वायत्त क्षेत्र है। यहांचीन ने बड़े पैमाने पर निवेश कर रखा है और साथ ही बड़ी तादाद में सुरक्षा बल भी तैनात किए हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि चीन सरकार की नीतियों ने धीरे-धीरे वीगरों के धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को दरकिनार कर दिया है। बीजिंग पर आरोप है कि 1990 के दशक में शिनजियांग में हुए प्रदर्शनों और दोबारा 2008 में बीजिंग ओलंपिक के रन अप के दौरान हुए प्रदर्शनों के बाद सरकार ने दमन तेज कर दिया था।

पिछले दशक के दौरान अधिकांश प्रमुख वीगर नेताओं को जेलों में ठूंस दिया जाता रहा या चरमपंथ के आरोप लगने के बाद वे विदेशों में शरण मांगने लगे। बीजिंग पर यह भी आरोप लगा कि इस इलाके में अपने दमन को सही ठहराने के लिए वो वीगर अलगवावादियों के खतरे को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करता है। चीन सरकार कहता है कि वीगर चरमपंथी अलग होने के लिए बम हमले, अशांति और तोड़ फोड़ की कार्रवाइयों के मार्फत हिंसक अभियान छेड़े हुए हैं।

चीन ने वीगर अलगाववादियों को अधिकाधिक रूप से अल-कायदा का सहयोगी सिद्ध करने की कोशिश की है। अफगानिस्तान पर हमले के दौरान अमरीका सेना ने 20 से ज़्यादा वीगरों को पकड़ा था। साल 2009 की जुलाई में शिनजियांग की प्रशासनिक राजधानी उरुमुची में हुए जातीय दंगों में करीब 200 लोग मारे गए थे। चीनी प्रशासन इस अशांति के लिए देश से बाहर के शिनजियांग अलगाववादियों को जि़म्मेदार ठहराता है और निर्वासित वीगर नेता राबिया कदीर को दोषी मानता है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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