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चीन को चिढ़ाता छोटा सा अफ्रीकी देश
बीजिंग। अरबों डॉलर के निवेश और चीन की बढ़ती ताकत को देखते हुए सारे अफ्रीकी देश उसके साथ रिश्ते मजबूत करने में जुटे हैं। हैरानी की बात है पर अफ्रीकी महाद्वीप के दक्षिण में स्थित एक छोटा सा देश चीन को कोई तवज्जो नहीं देता। यह देश है ईस्वातिनी, जिसे कुछ समय पहले तक स्वाजीलैंड के नाम से जाना जाता था। यह देश क्षेत्रफल के हिसाब से नगालैंड राज्य के बराबर है और वहां राजा मसावती तृतीय का एकछत्र राज चलता है। अब अफ्रीकी महाद्वीप में सिर्फ ईस्वातिनी ही ऐसा देश है जो चीन की बजाय ताइवान के साथ रिश्ते बनाए रखने को प्राथमिकता देता है।
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चीन की 'वन चाइना पॉलिसी' के तहत कोई देश या तो चीन से रिश्ते रख सकता है या फिर ताइवान से। ताइवान दशकों से एक स्वतंत्र देश के तौर पर अपना अस्तित्व बनाए हुए है जिसकी अपनी सरकार, सेना और राजनीतिक व्यवस्था है। वहीं चीन उसे अपना एक अलग हुआ प्रांत मानता है, जिसे एक दिन चीन में मिल जाना है। फिलहाल ताइवान के सिर्फ 17 देशों के साथ राजनयिक रिश्ते हैं जिनमें बेहद छोटे और अविकसित देश शामिल हैं।
हाल के समय में कई देशों ने ताकतवर चीन से दोस्ती करने के लिए ताइवान के साथ अपने रिश्तों को कुर्बान किया है लेकिन ईस्वातिनी इन देशों में शामिल नहीं होना चाहता। वहां के विदेश मंत्री मगवागवा गामेद्जे ने ताइवान की तरफ इशारा करते हुए कहा, 'वे हमारे बड़े साझीदार हैं। इसलिए उन्हें (चीन को) भूल जाना चाहिए कि हम उनके अस्तबल में आएंगे।'
हालांकि घरेलू स्तर पर इस बात को लेकर कुछ आलोचना भी होती है कि ताइवान से रिश्तों का फायदा सिर्फ ईस्वातिनी के शाही परिवार को मिल रहा है। फिर भी ईस्वातिनी ताइवान के साथ खड़े रहना चाहता है। सरकारी प्रवक्ता पेरसी सीमेला ने कहा कि ताइवान के साथ रिश्तों बहुत अच्छे रहे हैं। उन्होंने कहा, '50 साल पहले आजादी के बाद से ताइवान के साथ सौहार्द्रपूर्ण रिश्तों का ईस्वातिनी के लोगों को बहुत फायदा हुआ है। देश को फायदा हुआ है और इसके साथ नेता को फायदा हुआ है। ताइवानी डॉक्टर हमारी स्वास्थ्य प्रणाली का अहम स्तंभ हैं। अगर कोई यह कहे कि इसका फायदा सिर्फ राजा को हुआ है तो यह आरोप लगाने वालों का राजनीतिक दिवालियापन है।'
ईस्वातिनी पर चीन की तरफ से काफी दबाव है कि वह ताइवान से रिश्ते खत्म करे। लेकिन ताइवान का कहना है कि ईस्वातिनी के साथ उसके रिश्ते मजबूत हैं। ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंगवे ने अप्रैल में ईस्वातिनी का दौरा किया था। इसके बाद ईस्वातिनी के राजा ने भी जून में ताइवान का दौरा किया। ताइवान 1975 से ही ईस्वातिनी में बहुत निवेश करता रहा है जिसमें अस्पताल बनाना, गांवों में बिजली पहुंचाना और एक नया एयरपोर्ट बनाने की योजना शामिल है।
चीन के पांच सिर दर्द
शिनचियांग : चीन का पश्चिमी प्रांत शिनचियांग अक्सर सुर्खियों में रहता है। चीन पर आरोप लगते हैं कि वह इस इलाके में रहने वाले अल्पसंख्यक उइगुर मुसलमानों पर कई तरह की पाबंदियां लगता है और उन्हें धार्मिक और राजनीतिक तौर पर प्रताडि़त करता है।
तिब्बत : चीन का कहना है कि इस इलाके पर सदियों से उसकी संप्रभुता रही है। लेकिन इस इलाके में रहने वाले बहुत से लोग निर्वासित तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा को अपना नेता मानते हैं। दलाई लामा को चीन एक अलगाववादी मानता है।
सिछुआन : इस प्रांत पर चीनी शासन के विरोध में 2011 के बाद से वहां 100 से ज्यादा लोग आत्मदाह कर चुके हैं। ऐसे लोग अधिक धार्मिक आजादी के साथ साथ दलाई लामा की वापसी की भी मांग करते हैं।
हांगकांग : 1997 तक ब्रिटेन के अधीन रहने वाले हांगकांग में 'एक देश एक व्यवस्थाÓ के तहत शासन हो रहा है। लेकिन अक्सर इसके खिलाफ आवाजें उठती रहती हैं। 1997 में ब्रिटेन से हुए समझौते के तहत चीन इस बात पर सहमत हुआ था कि वह 50 साल तक हांगकांग के सामाजिक और आर्थिक ताने बाने में बदलाव नहीं करेगा।
ताइवान : ताइवान 1950 से पूरी तरह एक स्वतंत्र द्वीपीय देश है, लेकिन चीन उसे अपना एक अलग हुआ हिस्सा मानता है और उसके मुताबिक ताइवान को एक दिन चीन का हिस्सा बन जाना है। चीन इसके लिए ताकत का इस्तेमाल करने की बात कहने से भी नहीं हिचकता है।