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शी जिनपिंग के तिब्बत दौरे के पीछे खास रणनीति, भारत के लिए खतरे की घंटी

Xi Jinping Tibet Visit: चीनी प्रेसिडेंट शी जिनपिंग की तिब्बत यात्रा खास महत्व रखती है। जिनपिंग के सामरिक रूप से महत्वपूर्ण ठिकानों का दौरा करने से भारत के कूटनीतिक और सामरिक मामलों के हलकों में काफ़ी हलचल मचा दी है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Shreya
Published on: 24 July 2021 6:01 AM GMT
शी जिनपिंग के तिब्बत दौरे के पीछे खास रणनीति, भारत के लिए खतरे की घंटी
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शी जिनपिंग (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Xi Jinping Tibet Visit: चीनी प्रेसिडेंट शी जिनपिंग (Chinese President Xi Jinping) की तिब्बत यात्रा कोई सामान्य यात्रा नहीं है। जिनपिंग ल्हासा तक गए लेकिन अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) की सीमा से सटे तिब्बत के न्यिंग्ची शहर का उनका दौरा खास महत्व रखता है। न्यिंग्ची अरुणाचल प्रदेश की सीमा से मात्र 17 किलोमीटर दूर है, इसलिए ये इलाका सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।

हाल ही में मेनलैंड चीन से न्यिंग्ची तक बुलेट ट्रेन सेवा (Bullet Train Service) शुरू की गई है। जिनपिंग बीजिंग से विमान द्वारा न्यिंग्ची पहुंचे और फिर वहां से ट्रेन से ल्हासा गए। जिनपिंग का न्यिंग्ची जाना, एक दिन वहां बिताने और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण ठिकानों का दौरा करने से भारत के कूटनीतिक और सामरिक मामलों के हलकों में काफ़ी हलचल मचा दी है।

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party) का मुखपत्र माने जाने वाले 'ग्लोबल टाइम्स' (Global Times) ने भी ल्हासा की यात्रा से ज़्यादा महत्व जिनपिंग की न्यिंग्ची यात्रा को दिया है। जिनपिंग चीन के पहले बड़े नेता हैं जिन्होंने कई दशकों के दौरान भारत और चीन की सीमा के पास बसे इस शहर का दौरा किया है। चीन के सरकारी मीडिया का कहना है कि जिनपिंग की यात्रा तिब्बत की स्वायत्ता के 70 सालों के उपलक्ष्य में काफ़ी महत्वपूर्ण है।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

खास है रेलवे नेटवर्क

तिब्बत में और खासकर न्यिंग्ची तक रेलवे नेटवर्क बिछाने के पीछे चीन की सोची समझी दीर्घकालिक योजना है। नेपाल के साथ चीन के व्यापारिक और आर्थिक संबंधों को मज़बूत बनाने की दिशा में लहासा न्यिंग्ची-रेलमार्ग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस रेलमार्ग की शुरुआत पिछले महीने ही हुई जिसे 1740 किलोमीटर लम्बे सिचुवान-तिब्बत रेल खंड का एक सामरिक रूप से 'अति मत्वपूर्ण' हिस्सा माना जाता है। ये रेल लाइन सिचुवान से ल्हासा को जोड़ेगी। ल्हासा से न्यिंग्ची रेलमार्ग विद्युतीकृत है जिस पर अब 160 किलोमीटर की रफ़्तार से बुलेट ट्रेन भी दौड़ती है।

भारत की चिंता बढ़ी

भारत से लगी सीमा के इलाकों में चीन जिस तरह आधारभूत सुविधाएं विकसित कर रहा है वो पहले से भारत के लिए चिंता का विषय है। तिब्बत में शी जिनपिंग की अचानक बढ़ी रुचि को भी इसी रूप में लिया जा रहा है। जिनपिंग सिचुवान-तिब्बत रेल नेटवर्क (Sichuan Tibet Rail Network) में बहुत दिलचस्पी ले रहे हैं और उन्होंने ये काम समय से पूरा होने की ताकीद कर रखी है। अरुणाचल सीमा के पास तक चीन ने एक्सप्रेसवे भी बना दी है। न्यिंग्ची को ल्हासा से जोड़ने वाला ये एक्सप्रेसवे 250 किलोमीटर लंबा है।

बांध (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

चीन ब्रह्मपुत्र नदी (Brahmaputra River) पर एक बांध भी बना रहा है। ब्रह्मपुत्र चीन में निकलकर न्यिंग्ची होते हुए अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है। चीन इस नदी को बांध के जरिए नियंत्रित करके भारत को परेशानी में डालना चाहता है। भारत इस बांध पर कई बार चिंता व्यक्त कर चुका है। जिनपिंग ने इसी नदी के पास बने एक पुल और बांध का भी निरीक्षण किया। यहीं ओर ब्रह्मपुत्र नदी के पास एक बड़ा एयरपोर्ट भी बनाया गया है।

दरअसल, माओ त्से तुंग, लद्दाख, नेपाल, भूटान, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत की पांच उंगलियां मानते थे। इनमें से भूटान और नेपाल स्वतंत्र देश हैं, जबकि लद्दाख, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश भारत के अभिन्न अंग हैं। लेकिन चीन को लगता है कि एक न एक दिन वो तिब्बत के साथ साथ इन इलाकों को भी अपने कब्जे में ले लेगा।

चीन की रणनीति इसी दिशा में काम कर रही है। और यही भारत के लिए चिंता की सबसे बड़ी बात है। चीन हमेशा से अरुणाचल प्रदेश पर नजर गड़ाए हुये है और कई बार यहां घुसपैठ भी कर चुका है। जिस तरह चीन अपना इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाता और मजबूत करता जा रहा है उससे साफ है कि वो किसी बड़ी योजना पर काम कर रहा है।

तिब्बत में खास रुचि

जानकारों का कहना है कि तिब्बत में जिनपिंग की दिलचस्पी यह संकेत है कि चीन ऐसा कर भारत पर दबाव बनाना चाह रहा है। जिनपिंग बिना किसी पूर्व घोषणा या तय कार्यक्रम के ल्हासा पहुंचे। वे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी, सेना और तिब्बत के प्रशासन को संदेश देना चाहते थे कि तिब्बत का मुद्दा चीन के लिए ख़त्म नहीं हुआ है।

इसकी वजह ये हो सकती है कि इधर भारत का रुख तिब्बत के प्रति बदला है। इसी 6 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा के जन्मदिन पर फ़ोन कर बधाई दी थी। 2015 तक मोदी ट्वीट कर बधाई देते थे। 2016 से वो परंपरा भी बंद हो गई थी। लेकिन फोन करना भारत की बदलती नीति का संकेत है। दूसरा संकेत तब मिला जब भारत ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के 100 साल पूरे होने पर कोई संदेश चीन को नहीं भेजा।

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